जून का अंत या जुलाई की शुरुआत थी, वो एक ऐसी रात थी जब आसमान जैसे फट पड़ा था। बारिश की बूंदें इतनी तेज थीं कि मानो कोई बाल्टी उलट रहा हो। मैं, देवेंद्र जाधव, 28 साल का, मध्यम कद, गठीला बदन, गेहुंआ रंग, और मेरी बीवी, नेहा, 26 साल की, पतली कमर, गोरी रंगत, और शादी के बाद भारी हुए चूचे और गांड, मेरठ में अपने एक रिश्तेदार के घर से अपनी पुरानी ब्लैक यामाहा मोटरसाइकिल पर वापस अपने घर लौट रहे थे। हमारी शादी को अभी 5 महीने ही हुए थे, और हमारा रिश्ता अभी उस ताजगी में था जहां हर पल कुछ नया और रोमांचक लगता था। नेहा की हरी साड़ी हवा में लहरा रही थी, और उसका गोरा चेहरा हल्की चांदनी में चमक रहा था। मैं ड्राइव कर रहा था, और नेहा मेरे पीछे बैठी थी, उसकी बाहें मेरी कमर को कसकर पकड़े हुए थीं।
रास्ते में अचानक बारिश शुरू हो गई। पहले हल्की-हल्की बूंदें थीं, लेकिन कुछ ही मिनटों में मूसलाधार बारिश होने लगी। सड़क धुंधली हो गई, और मेरी मोटरसाइकिल के टायर कीचड़ में फिसलने लगे। मैंने स्पीड कम कर दी, लेकिन दूर-दूर तक कोई ढाबा, बस स्टॉप, या रुकने की जगह नहीं दिखी। अंधेरे में किसी अनजान घर का दरवाजा खटखटाना ठीक नहीं लगा। बारिश और तेज हो रही थी, और ठंड से नेहा की सांसें कांपने लगी थीं। मैंने सोचा, कहीं रुकना ही पड़ेगा। सड़क से थोड़ा हटकर, एक बड़े बरगद के पेड़ के नीचे मैंने मोटरसाइकिल रोक दी। पेड़ की घनी पत्तियां कुछ राहत दे रही थीं, लेकिन बारिश की बूंदें फिर भी हमें भिगो रही थीं। ठंड ऐसी थी कि मेरी गांड फट रही थी, और नेहा तो पूरी कांप रही थी। उसकी साड़ी बदन से चिपक गई थी, और उसकी गोरी त्वचा पानी में और निखर रही थी।
सुरक्षा के लिए मैंने मोटरसाइकिल की लाइट बंद कर दी। आसपास कोई नहीं था, सिर्फ बारिश की आवाज और हवा का शोर गूंज रहा था। मैंने बरसाती कोट पहन रखा था, तो मैं सूखा रहा, लेकिन नेहा की साड़ी पूरी तरह भीग चुकी थी। उसका ब्लाउज उसके चूचों से चिपक गया था, और ठंड से उसके निप्पल सख्त होकर उभर रहे थे। वो दांत किटकिटाते हुए बोली, “देवेंद्र, बहुत ठंड लग रही है।” मैंने उससे कहा, “नेहा, साड़ी का पल्लू उतार दे, और ब्लाउज भी निकाल दे। इसे थैले में रख लो, और मेरे बरसाती कोट में आ जाओ। इससे गर्मी मिलेगी। इस बारिश में कोई हमें देखने वाला नहीं है।”
नेहा ने पहले आसपास नजर दौड़ाई। सड़क सुनसान थी, सिर्फ बारिश की आवाज थी। उसने धीरे-धीरे साड़ी का पल्लू उतारा, फिर ब्लाउज के बटन खोले। मैं देख रहा था, उसकी गोरी त्वचा पर पानी की बूंदें मोतियों की तरह चमक रही थीं। उसने ब्लाउज उतारकर थैले में रखा और मेरे बरसाती कोट में घुस आई। कोट बड़ा था, हम दोनों आसानी से समा गए। उसका गीला बदन मेरे बदन से चिपक गया, और उसकी सांसों की गर्मी मेरे सीने पर महसूस हो रही थी। उसकी ठंडी त्वचा और मेरे गर्म बदन का मिलन एक अजीब सा करंट पैदा कर रहा था।
उसके आधे नंगे बदन को अपने से चिपकाए मैंने सोचा, इस रात को यादगार बनाना है। बारिश, सुनसान रास्ता, और हम दोनों का अकेलापन—ये मौका परफेक्ट था। मैंने धीरे से उससे कहा, “नेहा, इस बारिश में कुछ मस्ती कर लें? ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा।” उसने पहले तो शरमाते हुए ना-नुकुर की। बोली, “देवेंद्र, पागल हो गए हो? कोई देख लेगा।” मैंने हंसते हुए कहा, “अरे, इस जंगल में भूत भी नहीं घूमता, और बारिश में तो कोई आएगा भी नहीं। बस तू और मैं, और ये बारिश।”
काफी देर की बहस के बाद उसने हल्की छूट दी। बोली, “ठीक है, चूचे दबा लो, गांड सहला लो, लेकिन बस इतना ही। और कुछ मत करना।” मैंने मन ही मन सोचा, आज तो गांड मारने का मौका है। शादी के बाद से मैंने कई बार उसकी गांड मारने की कोशिश की थी, लेकिन वो हर बार टाल देती थी। आज मूड और माहौल दोनों सही थे। मैंने धीरे-धीरे उसकी गांड को सहलाना शुरू किया। मेरी उंगलियां उसकी गीली साड़ी के ऊपर से उसकी गांड की गोलाई पर फिसल रही थीं। फिर मैंने साड़ी को थोड़ा ऊपर उठाया और उसकी नरम, ठंडी गांड पर हाथ फेरा। वो हल्के से सिहर उठी, “उई… देवेंद्र, ये क्या कर रहे हो?”
मैंने मासूमियत से कहा, “कुछ नहीं, बस चूचे दबा रहा हूं।” उसने मुझे घूरा, लेकिन कुछ बोली नहीं। मैंने धीरे से अपनी एक उंगली उसकी गांड के छेद पर रखी और हल्का सा दबाव डाला। वो तुरंत पंजों के बल खड़ी हो गई और बोली, “देवेंद्र, ये क्या? गांड में उंगली? ये तो बहुत गलत है!” उसकी आवाज में गुस्सा कम, शर्मिंदगी ज्यादा थी। मैंने उसे शांत करते हुए कहा, “अरे, बस थोड़ा मजा ले रहा हूं। तुझे भी तो अच्छा लगेगा। आजमाकर तो देख।”
वो चुप रही, और मैंने फिर से उसकी गांड को सहलाना शुरू किया। इस बार मैंने अपनी उंगली को थोड़ा और अंदर धकेला। वो “उई माँ…” कहते हुए सिहर उठी, लेकिन उसने मुझे रोका नहीं। मैं समझ गया कि आज वो भी मूड में थी। उसने अचानक मेरी आंखों में देखा, उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। उसने मेरी गर्दन के पीछे अपना दायां हाथ डाला और बाएं हाथ से मेरी पैंट की चेन खोल दी। मेरा लंड, जो पहले से ही तन चुका था, बाहर आ गया। उसने उसे धीरे-धीरे सहलाना शुरू किया और बोली, “जो करना है, कर लो आज। लेकिन धीरे से।” ये कहते हुए उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और एक गहरी, गीली चुम्मी शुरू कर दी। उसकी जीभ मेरे मुंह में थी, और मैं उसकी सांसों की गर्मी महसूस कर रहा था।
मैंने उसकी गांड में उंगली और अंदर डालनी शुरू की, धीरे-धीरे जगह बनाते हुए। उसकी सांसें तेज हो रही थीं, और वो मेरे लंड को और जोर से सहला रही थी। मैंने देखा कि उसने अपनी साड़ी और पेटीकोट पूरी तरह उतार दिया था। अब वो मेरे बरसाती कोट में पूरी नंगी थी। उसने मेरी पैंट भी नीचे खींच दी थी, और मेरा लंड उसकी चूत पर रगड़ रहा था। मैंने अपनी बीच वाली उंगली उसकी गांड में पूरी डाल दी थी, और अब मैं अपने अंगूठे को भी अंदर डालने की कोशिश कर रहा था। वो पंजों के बल खड़ी थी, मेरे होंठों को चूस रही थी, और धीरे-धीरे मेरे लंड को अपनी चूत में लेने की कोशिश कर रही थी। “आह… देवेंद्र…” वो सिसकारी।
मुझे जोश का करंट सा लगा। मैंने उसे कसकर जकड़ा और एक ही झटके में अपनी उंगली और अंगूठा उसकी गांड में डाल दिया। दूसरी तरफ से मेरा 7 इंच का लंड उसकी चूत में घुस गया। वो जोर से चीखी, “उई माँ… मेरी गांड… देवेंद्र, ये क्या कर दिया!” उसकी आवाज में दर्द और मजा दोनों थे। मैंने उसकी चीख पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि आसपास कोई नहीं था। मैंने अपना बरसाती कोट और शर्ट उतार दी। अब हम दोनों पूरी तरह नंगे थे, बारिश में भीगते हुए। “पच… पच…” की आवाज बारिश के साथ मिल रही थी।
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नेहा ने थोड़ा पीछे झुककर मेरा सिर पकड़ा और मेरे मुंह को अपने चूचों की ओर खींचा। शादी के समय उसके चूचे 32 के थे, लेकिन अब 36 के हो गए थे। उसकी गांड भी पहले 34 की थी, अब 38 की हो चुकी थी। उसने पेड़ की एक नीची डाल पकड़ी और अपनी कमर को पीछे लचकाया। उसने अपने पैरों से मेरी कमर को जकड़ लिया। ये पोजीशन इतनी सेक्सी थी कि मेरा लंड और सख्त हो गया। मैंने उसके चूचों को चूसना शुरू किया, और वो “आह… उह… और जोर से…” की सिसकारियां लेने लगी। पेड़ की डाल हिल रही थी, और उसका पानी हम दोनों पर गिर रहा था। मैंने उसके निप्पल को दांतों से हल्के से काटा, और वो “सी… देवेंद्र…” कहते हुए सिहर उठी।
काफी देर तक ऐसे ही चलता रहा। जब नेहा का हाथ थक गया, मैंने उसे मोटरसाइकिल के पास चलने को कहा। उसने मोटरसाइकिल की सीट पर एक टांग घुटनों के बल रखी और आगे झुक गई। उसकी गांड मेरी तरफ थी, और मैंने अपने लंड को उसकी गांड के छेद पर रखा। वो हिल गई और बोली, “पहले चूत मार लो, फिर गांड में डालना। धीरे से, प्लीज।” मैंने कहा, “ठीक है, बेबी।” मैंने अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया और धकाधक चोदना शुरू कर दिया। “पच… पच…” की आवाज बारिश की आवाज के साथ मिल रही थी। मैं बीच-बीच में उसके चूचों को दबाता, और वो “आह… उह… देवेंद्र… और तेज…” चिल्ला रही थी।
मैंने उससे कहा, “आज तू जितना चिल्लाना चाहे, चिल्ला। यहां कोई नहीं सुनेगा।” वो और जोश में आ गई। मैंने उसकी चूत को और तेजी से चोदा, और वो “आह… उई… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दो…” चिल्लाने लगी। कुछ देर बाद मैंने पूछा, “अब गांड मारूं?” उसने कहा, “बस थोड़ा और चूत में डालो।” मैंने उसे मोटरसाइकिल पर लिटाया, उसकी दोनों टांगें अपने कंधों पर रखीं, और चोदना जारी रखा। बारिश की बूंदें हमारे नंगे बदन पर गिर रही थीं, और मजा दोगुना हो रहा था। मैंने उसके चूचों को जोर-जोर से मसला, और वो “आह… सी… हाय…” की आवाजें निकाल रही थी।
आधा घंटा बीत चुका था, लेकिन मेरा जोश कम नहीं हुआ। नेहा थोड़ा थक गई थी। उसने जोश बढ़ाने के लिए कहा, “देवेंद्र, तुझे गांड मारनी है ना? मार ले। मेरी चूत अब थोड़ी ढीली हो गई है। गांड मारो, तो चूत फिर टाइट हो जाएगी।” मैंने उसकी गांड से उंगली निकाली और धीरे से लंड डालने की कोशिश की। उसका छेद इतना टाइट था कि लंड अंदर नहीं जा रहा था। मुझे हमारी सुहागरात याद आ गई, जब उसकी चूत में लंड डालने में इतनी दिक्कत हुई थी। मैंने थोड़ा जोर लगाया, और लंड का सुपारा अंदर चला गया। वो जोर से चीखी, “आह… सी… मेरी गांड फट गई!”
मैंने पूछा, “रहने दूं?” उसने कहा, “नहीं, बस थोड़ा प्यार से करो।” मैंने धीरे-धीरे लंड को अंदर-बाहर करना शुरू किया। “आह… उह…” वो हर धक्के पर सिसकारियां ले रही थी। बारिश अब हल्की हो गई थी, और उसकी रिमझिम मेरे धक्कों के साथ ताल मिला रही थी। मैंने उसे फिर से पोजीशन बदली। उसने मोटरसाइकिल पर एक टांग रखी, गांड मेरी तरफ की, और मैंने फिर से उसकी गांड में लंड डाला। बीच-बीच में मैं उसकी चूत में भी लंड डालता। जब उसका पानी निकल गया, मैंने आखिर में उसकी गांड को और जोर से चोदा। “पच… पच…” की आवाज के साथ वो “आह… बस… देवेंद्र… मेरी गांड…” चिल्ला रही थी।
आखिरकार, जब हम दोनों थक गए, मैंने अपना पानी उसकी गांड में ही छोड़ दिया। बारिश में हम दोनों पूरी तरह भीग चुके थे। नेहा की साड़ी और मेरी पैंट मिट्टी से सन गई थी। मैंने उसे सिर्फ बरसाती कोट पहनने को कहा, जो घुटनों तक था, ताकि कोई कुछ न देख सके। मैंने अपनी मिट्टी लगी पैंट और शर्ट पहनी, और हम घर की ओर चल पड़े। घर पहुंचकर हमने बहाना बनाया कि मोटरसाइकिल कीचड़ में फिसल गई थी।
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