Indian wife cheating – Boss Sex Story मेरा नाम रुचि सक्सेना है। मैं 38 साल की हूँ, एक पत्नी, एक माँ, और सबसे ऊपर, एक ऐसी औरत जो अपनी इच्छाओं को छिपाती नहीं। मेरी शादी प्रकाश से हुई है, जो 42 साल का है, एक साधारण सा इंसान, प्यार करने वाला, लेकिन बिस्तर पर वो जुनून नहीं जो मुझे चाहिए। मैं दिल्ली के एक मल्टीनेशनल कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर हूँ, और मेरा बॉस, अजय शर्मा, 52 साल का एक मर्द, जो अपनी उम्र के बावजूद जवान मर्दों को टक्कर देता है। उसकी कद-काठी, गहरी आवाज़, और वो आँखों में चमक जो मुझे हर बार कमज़ोर कर देती है, वो सब मेरे लिए एक नशा है। ये कहानी उस दिन की है जब मैंने एक शुभ हिंदू त्योहार को अपने तरीके से मनाया, और अपने पति को बिना बताए उसकी आँखों के सामने धोखा दिया।
बात उस रविवार की है, जब दिल्ली की गलियों में त्योहार की रौनक थी। सुबह-सुबह मैंने घर में पूजा का आयोजन किया। लाल साड़ी में मैंने मंदिर सजाया, दीये जलाए, और प्रकाश के साथ मिलकर भगवान से उसकी लंबी उम्र और सेहत की दुआ मांगी। मेरे दो बच्चे, 14 और 16 साल के, अपने दोस्तों के साथ त्योहार की मस्ती में व्यस्त थे। प्रकाश, जो एक सरकारी बैंक में मैनेजर है, हमेशा की तरह मुझे प्यार भरी नज़रों से देख रहा था। उसकी सादगी मुझे प्यार तो करती थी, लेकिन मेरे अंदर की आग को बुझाने के लिए वो काफ़ी नहीं था। मेरे मन में कुछ और ही चल रहा था।
पूजा के बाद, मैंने प्रकाश से कहा, “सुनो, मुझे ऑफिस का कुछ काम है। अजय सर के घर से कुछ फाइल्स लेनी हैं। आज तो ऑफिस बंद है, लेकिन वो फाइल्स कल सुबह की मीटिंग के लिए चाहिए।” मैंने अपनी बात को इतना सच्चा बनाया कि प्रकाश को शक का मौका ही नहीं मिला। उसने हल्की सी नाराज़गी दिखाई, “अरे, रुचि, आज तो त्योहार है, क्या ज़रूरत है?” मैंने उसका गाल सहलाते हुए कहा, “बस थोड़ी देर की बात है, मेरे राजा। मैं जल्दी वापस आ जाऊँगी।” मेरी मीठी बातों और हल्की सी मुस्कान ने उसे मना लिया। मैंने जानबूझकर एक टाइट ब्लाउज़ और हल्की सी साड़ी चुनी, जो मेरे कर्व्स को उभारे। मेरे बाल खुले थे, और मैंने हल्का मेकअप किया, ताकि अजय को मेरी मंशा साफ़ दिखे।
प्रकाश ने मुझे अपनी गाड़ी से अजय के घर तक छोड़ा। अजय का घर दिल्ली के पॉश इलाके, वसंत विहार में था। बड़ा सा बंगला, जिसके गेट पर गार्ड खड़ा था। प्रकाश ने गाड़ी रोकी और कहा, “मैं यहीं रुकता हूँ। जल्दी आना।” मैंने उसे चूमते हुए कहा, “हाँ, बिल्कुल। तुम चाय पी लो पास के ढाबे से।” वो मुस्कुराया और चला गया। मेरे दिल की धड़कनें तेज थीं, लेकिन ये डर की नहीं, बल्कि उत्तेजना की थीं। मैंने अजय को फोन किया, “सर, मैं बाहर हूँ।” उसकी गहरी आवाज़ ने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए, “आ जा, रुचि। दरवाजा खुला है।”
अंदर जाते ही मैंने देखा अजय अपने लिविंग रूम में था, सिर्फ़ एक ढीली कुर्ती और पायजामा पहने। उसकी छाती के बाल और मज़बूत कंधे मुझे हमेशा से ललचाते थे। उसने मुझे देखा और उसकी आँखों में वही भूख थी जो मुझे हर बार दीवाना बना देती थी। “रुचि, आज तो त्योहार है। फिर भी काम?” उसने मज़ाक में कहा, लेकिन उसकी नज़रें मेरी साड़ी के पल्लू से मेरी कमर तक भटक रही थीं। मैंने हँसते हुए कहा, “हाँ, सर, लेकिन काम तो काम है। और वैसे भी, आपके साथ काम करने में मज़ा आता है।” मेरी आवाज़ में वो शरारत थी जो उसे समझ आ गई।
उसने मुझे अपने पास बुलाया, और मैं उसके करीब गई। उसका हाथ मेरी कमर पर रखा गया, और मेरी साँसें तेज हो गईं। “प्रकाश बाहर है न?” उसने पूछा, और मैंने हल्का सा सिर हिलाया। “उसे कुछ नहीं पता, सर। वो बस चाय पी रहा है।” अजय ने हँसते हुए कहा, “तू तो बड़ी हरामिन है, रुचि।” मैंने उसकी आँखों में देखा और कहा, “हरामिन ही तो चाहिए आपको, सर।” बस, यही वो पल था जब हमारी नज़रें टकराईं, और कमरे में गर्मी बढ़ गई।
उसने मेरी साड़ी का पल्लू धीरे से खींचा, और मैंने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की। मेरी साड़ी फर्श पर गिरी, और मैं सिर्फ़ अपने टाइट ब्लाउज़ और पेटीकोट में थी। मेरे स्तन ब्लाउज़ में कसे हुए थे, और मेरी साँसों के साथ वो ऊपर-नीचे हो रहे थे। अजय ने मेरे ब्लाउज़ के हुक खोलने शुरू किए, एक-एक करके, और हर हुक के खुलने के साथ मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी। “रुचि, तेरे ये चूचे कितने मस्त हैं,” उसने कहा, और उसका हाथ मेरे स्तनों पर गया। मैंने हल्का सा कराहा, “आह्ह… सर, धीरे…” लेकिन मेरी आवाज़ में वो कमज़ोरी थी जो उसे और उकसा रही थी।
उसने मुझे सोफे की तरफ धकेला, और मैं चारों हाथ-पैरों के बल झुक गई, मेरी गांड हवा में थी, और मेरा चेहरा सोफे के मुलायम कुशन में दबा हुआ था। उसने मेरा पेटीकोट ऊपर उठाया, और मेरी पैंटी को एक झटके में नीचे खींच दिया। मेरी चूत पहले से ही गीली थी, और उसने अपनी उंगलियाँ मेरी चूत पर फिराईं। “आह्ह… सर… उफ्फ…” मैं कराह रही थी, और मेरी आवाज़ कमरे में गूँज रही थी। उसने मेरी गांड पर एक हल्का सा थप्पड़ मारा, “रुचि, तू तो पहले से तैयार है।” मैंने हँसते हुए कहा, “आपके लिए हमेशा तैयार हूँ, सर।”
उसने अपना पायजामा उतारा, और उसका लंड मेरे सामने था। करीब 7 इंच का, मोटा, और सख्त। मैंने उसे हाथ में लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगी। “सर, ये तो मेरे पति के लंड से कहीं बड़ा है,” मैंने शरारत से कहा। अजय ने मेरे बाल पकड़े और कहा, “तो फिर इसे चूस, रुचि। दिखा कितनी बड़ी रंडी है तू।” मैंने उसका लंड अपने मुँह में लिया, और धीरे-धीरे चूसने लगी। मेरी जीभ उसके लंड के सिरे पर घूम रही थी, और वो कराह रहा था, “उह्ह… रुचि… तू तो जादू करती है।” मैंने और जोर से चूसा, और मेरे मुँह से “म्म्म…” की आवाज़ निकल रही थी।
कुछ देर बाद, उसने मुझे फिर से सोफे पर झुकाया। “रुचि, आज तेरी गांड मारूँगा।” मेरे दिल में एक हल्का सा डर था, लेकिन उत्तेजना उससे कहीं ज्यादा। मैंने कहा, “सर, धीरे करना… मेरी गांड अभी तक इतना बड़ा लंड नहीं ले पाई।” उसने मेरी गांड पर थोड़ा तेल लगाया, और अपनी उंगलियाँ अंदर-बाहर करने लगा। मैं कराह रही थी, “आह्ह… उफ्फ… सर…” फिर उसने अपने लंड को मेरी गांड के छेद पर रखा और धीरे से दबाव डाला। “आआह्ह…” मैं चीखी, लेकिन दर्द के साथ-साथ मज़ा भी आ रहा था। उसने धीरे-धीरे अपने लंड को मेरी गांड में घुसाया, और हर धक्के के साथ मेरी साँसें रुक रही थीं। “थप-थप” की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी, और मैं चिल्ला रही थी, “सर… और जोर से… मेरी गांड फाड़ दो… आह्ह…”
उसने मेरे बाल पकड़े और और जोर से धक्के मारने लगा। “रुचि, तेरा पति तो तुझे ऐसा मज़ा नहीं दे सकता।” मैंने कराहते हुए कहा, “नहीं, सर… वो तो बस नाम का मर्द है… आप ही मेरी चुदाई करो… मेरी चूत को आपके माल से भर दो…” मेरी गंदी बातों ने उसे और जोश में ला दिया। उसने मुझे पलटा और मेरी चूत में अपना लंड घुसा दिया। “थप-थप-थप” की आवाज़ और तेज हो गई, और मैं चिल्ला रही थी, “आह्ह… उह्ह… सर… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दो…” उसका हर धक्का मुझे जन्नत की सैर करा रहा था। मेरी चूत गीली थी, और उसका लंड अंदर-बाहर हो रहा था।
करीब 20 मिनट की चुदाई के बाद, उसने कहा, “रुचि, मैं झड़ने वाला हूँ।” मैंने चिल्लाते हुए कहा, “सर, मेरे अंदर ही झड़ जाओ… मेरी चूत को अपने माल से भर दो…” और फिर उसने एक जोरदार धक्का मारा, और मैंने महसूस किया कि उसका गर्म माल मेरी चूत में भर रहा था। “आह्ह…” मैंने एक लंबी सिसकारी भरी, और मेरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई।
चुदाई के बाद, मैंने अपनी साड़ी ठीक की, लेकिन मेरी पैंटी अभी भी गीली थी। अजय ने मेरे चूचों पर कुछ नोट फेंके और कहा, “ये ले, अपनी मेहनत की कमाई।” मैंने हँसते हुए नोट उठाए और अपनी साड़ी में रख लिए। मेरी चूत से उसका माल अभी भी टपक रहा था, और हर कदम के साथ मुझे एक अजीब सी उत्तेजना हो रही थी। मैं बाहर निकली, और प्रकाश गाड़ी में मेरा इंतज़ार कर रहा था। उसने नाराज़गी भरे लहजे में कहा, “इतनी देर क्यों लगी, रुचि?” मैंने हँसते हुए कहा, “अरे, सर के साथ कुछ जरूरी डिस्कशन था। ये लो, तुम्हारे लिए गिफ्ट।” मैंने उसे वो नोट दिए, जो अभी भी मेरे पसीने और अजय के माल की महक से सने थे।
मैंने प्रकाश को गले लगाया और उसके होंठों को चूमा। मेरी चूत से अजय का माल अभी भी रिस रहा था, और मेरे मन में एक शरारती मुस्कान थी। प्रकाश को कुछ नहीं पता था, और यही मेरी जीत थी।
क्या आपको लगता है कि मैंने गलत किया? या ये बस मेरी इच्छाओं को जीने का मेरा तरीका था? अपनी राय कमेंट में बताएं।