मामा और मौसी का चुदाई राज़

नमस्कार, मेरा नाम सैम है, और मेरी उम्र 22 साल है। मैं अभी भरूच में रहता हूँ, पहले वडोदरा में था, लेकिन अब शिफ्ट हो गया हूँ। ये कहानी उस वक्त की है जब मैं 18 साल का था, और गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं। शहर की भागदौड़ और शोर-शराबे से दूर, मैं अपने मामा के गाँव के घर रहने गया था। मामा का घर एक छोटे से गाँव में था, जहाँ चारों तरफ खेत, पेड़-पौधे, और पुराने जमाने की सादगी थी। सुबह-सुबह गाय-भैंसों की आवाज़, खेतों से आती मिट्टी की सौंधी खुशबू, और वो पुराना सा मकान, जिसमें लकड़ी की खिड़कियाँ और मिट्टी की दीवारें थीं, सब कुछ मुझे अपनी ओर खींचता था। गाँव की वो शांति और हरियाली मुझे हमेशा सुकून देती थी।

मेरे मामा का नाम हितेश है, उस वक्त उनकी उम्र 28 साल थी। वो हट्टा-कट्टा मर्द था, थोड़ा मोटा, पेट बाहर निकला हुआ, लेकिन चेहरा ऐसा कि देखते ही लगता था कि वो बड़ा चालू और मस्तमौला है। उनकी हँसी में एक अजीब सा ठहाका था, जो पूरे मोहल्ले में गूँजता था। वो हमेशा अपनी जेब में कंडोम रखता था, जैसे हर पल किसी मौके की तलाश में रहता हो। मेरी मौसी का नाम दीप्ति था, उनकी उम्र 23 साल थी। वो देखने में साधारण थी, पतली सी, कद छोटा, बूब्स छोटे-छोटे, शायद 30 के आसपास, कमर पतली और गांड भी ज्यादा बड़ी नहीं, लगभग 32 होगी। वो हमेशा चश्मा पहनती थी, जो उनकी सादगी को और बढ़ाता था। लेकिन उनकी आँखों में एक चमक थी, जैसे कोई गहरा राज़ छुपा हो। वो ज्यादातर घर में जीन्स और टी-शर्ट पहनती थी, और कभी-कभी सलवार-कमीज में भी दिखती थी, जो उनकी पतली कमर को और उभारता था।

मामा और मौसी मेरे माँ के अंकल के बच्चे थे, और उनका घर मामा के घर के ठीक सामने था। दीप्ति मौसी के साथ मेरी अच्छी बनती थी। वो मेरे साथ गप्पे मारती थीं, कभी-कभी लूडो या ताश खेलती थीं, और उनकी हँसी इतनी प्यारी थी कि मैं उनके साथ वक्त बिताने के लिए हमेशा उत्सुक रहता था। गाँव में दिन ढलने के बाद लोग जल्दी सो जाते थे, लेकिन मैं शहर का लड़का था, मुझे दोपहर की नींद की आदत नहीं थी। एक दोपहर, जब गर्मी अपने चरम पर थी, और घर में सब लोग खर्राटे मार रहे थे, मैं बोर हो गया। मैंने सोचा, चलो मौसी के घर चलता हूँ, शायद कुछ मजा आए।

मैं उनके घर पहुँचा, तो बाहर से सब कुछ सूना-सूना सा लगा। धूप इतनी तेज थी कि सड़क पर कोई दिखाई नहीं दे रहा था। मैं बिना कुछ सोचे अंदर चला गया। हॉल में बा और दादा पुराने गद्दों पर लेटे खर्राटे मार रहे थे। उनकी खर्राटों की आवाज़ गूँज रही थी, और पास में एक पुराना पंखा धीरे-धीरे हवा दे रहा था। मैंने सोचा, मौसी शायद अपने कमरे में होंगी। मैंने एक-एक कमरे में झाँका, लेकिन कहीं कोई नहीं था। सारे कमरे खाली थे, सिर्फ़ पुराने सामान और धूल की गंध थी। तभी मेरी नज़र उस आखिरी कमरे पर पड़ी, जो स्टोर रूम जैसा था। उसमें पुराने बर्तन, टूटी-फूटी कुर्सियाँ, और कुछ बेकार का सामान पड़ा रहता था। कमरे की तरफ से कुछ अजीब सी आवाज़ आई, जैसे कोई धीरे-धीरे सिसक रहा हो, और साथ में थप-थप की आवाज़ भी।

मैंने धीरे से दरवाज़े की ओर कदम बढ़ाए, और खिड़की की एक छोटी सी दरार से अंदर झाँका। जो देखा, उसने मेरे होश उड़ा दिए। दीप्ति मौसी एक पुराने लकड़ी के टेबल को पकड़कर झुकी हुई थीं। उनकी जीन्स और पैंटी घुटनों तक सरकी हुई थी, और उनकी टी-शर्ट ऊपर कमर तक उठी हुई थी। हितेश मामा उनके पीछे खड़े थे, उनकी पैंट भी नीचे थी, और वो अपना लंड मौसी की चूत में डालकर धीरे-धीरे धक्के मार रहे थे। हर धक्के के साथ थप-थप की आवाज़ गूँज रही थी, और मौसी के मुँह से “आह्ह… उह्ह…” की सिसकारियाँ निकल रही थीं। मामा का लंड, जो मैंने हल्का सा देखा, बड़ा और मोटा था, और वो हर बार उसे पूरा बाहर निकालकर फिर गहराई तक डाल रहे थे। मौसी की गांड हर धक्के के साथ पीछे की ओर हिल रही थी, जैसे वो मामा के रिदम के साथ ताल मिला रही हों।

इसे भी पढ़ें   कॉलेज डायरेक्टर को अपना शुगर डैडी बनाया

मैं वहीं छिपकर देखता रहा, मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। मेरे लिए ये सब नया था, और मेरा लंड भी पैंट में तन गया। मामा ने अब मौसी की कमर को दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया और धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी। मौसी की सिसकारियाँ अब और तेज़ हो गई थीं, “आह्ह… हितेश… और ज़ोर से… उह्ह… कितना मोटा है तेरा…” वो बार-बार कह रही थीं। मामा का चेहरा लाल हो रहा था, और वो भी सिसकारियाँ ले रहे थे, “दीप्ति… तेरी चूत तो आग है… आह्ह… कितनी टाइट है…”। कमरे में धूल की गंध थी, लेकिन उस पल में वो दोनों पूरी तरह से अपनी दुनिया में खोए हुए थे। टेबल हर धक्के के साथ चरमर रहा था, और मुझे डर था कि कहीं वो टूट न जाए।

कुछ देर बाद मामा का शरीर अकड़ने लगा। उन्होंने मौसी की कमर को और कसकर पकड़ा और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगे। मौसी भी अब पूरी तरह से उनके साथ थी, उनकी सिसकारियाँ अब चीखों में बदल रही थीं, “हाँ… हितेश… और ज़ोर से… आह्ह… फाड़ दे मेरी…”। अचानक मामा ने एक लंबी “आह्ह…” भरी और झड़ गए। उनका लंड अभी भी मौसी की चूत में था, और वो दोनों हाँफ रहे थे। मामा ने मौसी को पीछे से गले लगाया, और दोनों थोड़ी देर वैसे ही खड़े रहे, जैसे उस पल को जी लेना चाहते हों। फिर वो अलग हुए, और मैं जल्दी से वहाँ से हटकर बाहर बरामदे में जाकर बैठ गया।

थोड़ी देर बाद मौसी बाहर आईं। उनकी जीन्स और टी-शर्ट अब ठीक थीं, लेकिन उनके चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी, जैसे वो अभी भी उस मस्ती में डूबी हुई हों। उन्होंने मुझे देखा और मुस्कुराकर पूछा, “अरे सैम, तू कब आया?” मैंने हड़बड़ाते हुए कहा, “बस अभी, मौसी।” मेरे दिमाग में अभी भी वही सीन घूम रहा था, लेकिन मैंने चुप रहना ही बेहतर समझा। हम दोनों ने थोड़ी देर गप्पे मारीं, मौसी ने मुझे पानी पिलाया, और फिर मैं अपने घर चला आया। उस रात मैं सो नहीं पाया, बार-बार वही सीन मेरे दिमाग में चल रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या था, लेकिन मेरे अंदर एक अजीब सी उत्तेजना थी।

अगले दिन मैं जानबूझकर फिर मौसी के घर गया। मेरे अंदर एक जुनून सा था, मैं फिर से कुछ देखना चाहता था। मैं पिछले दरवाज़े से उनके घर में घुसा, लेकिन मौसी वहाँ नहीं थीं। मैंने देखा कि वो आगे के दरवाज़े से निकलकर पास ही विक्की के घर की ओर जा रही थीं। विक्की की बहन डिम्पी, जो 19 साल की थी, मौसी की अच्छी दोस्त थी। गाँव में डिम्पी के बारे में लोग तरह-तरह की बातें करते थे। कोई कहता था कि वो चालू है, कोई कहता था कि वो रंडी है। डिम्पी की बॉडी थोड़ी हैवी थी, उसके बूब्स बड़े-बड़े थे, गांड भारी और गोल थी, और पेट थोड़ा बाहर निकला हुआ था। उसका साइज़ शायद 36-32-36 होगा। वो हमेशा टाइट कपड़े पहनती थी, जो उसकी बॉडी को और उभारते थे।

इसे भी पढ़ें   मेरी बीवी की स्कूल में पहली चुदाई

मैं चुपके से उनके पीछे-पीछे विक्की के घर की ओर चला गया। उनका घर छोटा सा था, सिर्फ़ एक कमरा और एक किचन। मैंने पीछे की खिड़की से अंदर झाँका। वहाँ का नज़ारा देखकर मेरे होश उड़ गए। हितेश मामा पहले से ही वहाँ थे, और वो डिम्पी के ऊपर लेटे हुए थे। डिम्पी की टी-शर्ट ऊपर उठी हुई थी, और उसकी स्लैक्स घुटनों तक सरकी हुई थी। मामा उसकी चूत में अपना लंड डालकर धीरे-धीरे धक्के मार रहे थे। डिम्पी “आह्ह… म्म्ह्ह… हितेश… उफ्फ…” की आवाज़ें निकाल रही थी, और उसकी भारी गांड हर धक्के के साथ हिल रही थी। मामा का लंड, जो मैंने अब साफ देखा, बड़ा और मोटा था, लाल रंग का टोपा चमक रहा था, जैसे उसमें कोई चमकदार तेल लगा हो। तभी दीप्ति मौसी वहाँ आईं और एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर बैठ गईं, जैसे वो इस तमाशे की दर्शक हों।

आप यह Family Sex Stories - Incest Sex Story हमारी वेबसाइट फ्री सेक्स कहानी डॉट इन पर पढ़ रहे है।

मामा ने अब डिम्पी को अपने ऊपर बिठा लिया। डिम्पी उनके लंड पर बैठ गई और उछलने लगी। उसने मामा की छाती पर दोनों हाथ रखे थे, और मामा ने उसके बड़े-बड़े बूब्स पकड़कर मसलना शुरू कर दिया। डिम्पी की सिसकारियाँ अब और तेज़ हो गई थीं, “आह्ह… हितेश… तेरा लंड तो मेरी जान ले लेगा… उह्ह… और ज़ोर से…”। बेड से चरमर-चरमर की आवाज़ आ रही थी, और डिम्पी इतनी ज़ोर से उछल रही थी कि लग रहा था बेड अब टूट जाएगा। मौसी बस बैठकर ये सब देख रही थीं, उनके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी, जैसे वो इस सब का मज़ा ले रही हों।

कुछ देर बाद मामा का निकलने वाला था। उनकी साँसें तेज़ हो रही थीं, और वो “आह्ह… डिम्पी… तेरी चूत तो जन्नत है… उह्ह…” कहते हुए ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगे। डिम्पी भी उनकी रिदम के साथ उछल रही थी, “हाँ… हितेश… और ज़ोर से… फाड़ दे मेरी…”। अचानक मामा ने एक लंबी सिसकारी भरी और झड़ गए। उन्होंने डिम्पी को अपने सीने से लगा लिया, और दोनों थोड़ी देर वैसे ही लेटे रहे। फिर मामा उठे, कंडोम निकाला, पैंट पहनी, और बाथरूम की ओर चले गए। मैं जल्दी से एक पेड़ के पीछे छिप गया। डिम्पी भी उठी, अपनी टी-शर्ट और स्लैक्स ठीक की, और बाथरूम की ओर चली गई। मैं फिर से अपनी जगह पर आ गया।

पाँच मिनट बाद विक्की आया, उसकी उम्र 20 साल थी। वो आते ही दीप्ति मौसी को होंठों पर चूमने लगा। मामा और डिम्पी अब कुर्सी पर बैठ गए, जैसे अब वो दर्शक बनने वाले हों। विक्की और मौसी बेड पर थे। विक्की लगातार मौसी को चूम रहा था, और मौसी भी उसकी बाहों में कसकर उसे चूम रही थीं, जैसे वो भी पूरी तरह से इस पल में डूब चुकी हों। फिर मौसी ने अपनी टी-शर्ट उतारी, विक्की की टी-शर्ट उतारी, और दोनों ने अपनी-अपनी पैंट भी उतार दी। मौसी ने विक्की की चड्डी निकाली और उसका लंड पकड़कर हिलाने लगीं। विक्की का लंड बड़ा और काला था, टोपा बड़ा और चमकदार। मौसी ने उस पर चुम्मा लिया, और फिर धीरे-धीरे उसे मुँह में लिया, जैसे वो उसका पूरा मज़ा लेना चाहती हों। फिर उन्होंने अपनी पैंटी उतार दी और बेड पर लेट गईं।

इसे भी पढ़ें   गर्लफ्रेंड चुदी होटल में

मौसी ने विक्की को अपने ऊपर खींचा और उसके लंड पर बैठ गईं। वो उछलने लगीं, “आह्ह… उह्ह… विक्की… कितना मोटा है तेरा… आह्ह…”। विक्की ने मौसी की ब्रा खोल दी और उनके छोटे-छोटे बूब्स को मसलने लगा। मौसी की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “म्म्ह्ह… हाँ… और ज़ोर से… उह्ह… चोद मुझे…”। थोड़ी देर बाद मौसी उठीं और घोड़ी बन गईं। विक्की ने पीछे से अपना लंड उनकी चूत पर सेट किया और एक ज़ोरदार धक्का मारा। मौसी की चीख निकल गई, “आह्ह… धीरे… उफ्फ… कितना बड़ा है…”। लेकिन फिर वो भी अपनी गांड पीछे करके साथ देने लगीं। विक्की ने उनकी कमर पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने शुरू कर दिए। कमरा उनकी सिसकारियों और थप-थप की आवाज़ों से भर गया था। मौसी बार-बार कह रही थीं, “हाँ… विक्की… और ज़ोर से… मेरी चूत को फाड़ दे…”।

इधर, ये सब देखकर मामा का लंड फिर से खड़ा हो गया। उन्होंने जेब से कंडोम निकाला, डिम्पी की टी-शर्ट और स्लैक्स उतारी, अपनी पैंट उतारी, और डिम्पी को कुर्सी पर ही अपने लंड पर बिठा लिया। डिम्पी का मुँह मेरी तरफ था, और वो मामा के लंड पर उछलने लगी। मामा ने एक हाथ डिम्पी के पेट पर रखा और दूसरा उसके बूब्स पर, और उसे ज़ोर-ज़ोर से उछालने लगे। डिम्पी “आह्ह… म्म्ह्ह… हितेश… उफ्फ…” कर रही थी। उसकी भारी गांड हर उछाल के साथ हिल रही थी, और मामा के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी।

फिर मामा डिम्पी को लेकर कुर्सी से उठे और दीवार के पास ले गए। डिम्पी ने दीवार पर दोनों हाथ रखे और थोड़ा झुक गई। मामा ने पीछे से अपना लंड उसकी चूत में डाला और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगे। डिम्पी की सिसकारियाँ अब और तेज़ हो गई थीं, “आह्ह… हितेश… फाड़ दे मेरी… उह्ह… कितना मज़ा आ रहा है…”। मामा उसके बूब्स मसल रहे थे और पीछे से धक्के पे धक्के मार रहे थे।

इधर, विक्की का भी निकलने वाला था। वो “आह्ह… दीप्ति… बस अब…” कहते हुए ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगा और फिर झड़ गया। वो मौसी के ऊपर ही लेट गया, दोनों हाँफ रहे थे। उधर, मामा भी “आह्ह… डिम्पी…” कहते हुए झड़ गए और कुर्सी पर बैठ गए। डिम्पी दीवार का सहारा लेकर नीचे बैठ गई, उसका चेहरा लाल था और वो हाँफ रही थी।

पाँच मिनट बाद मामा ने कपड़े पहने और वहाँ से चले गए। मौसी भी कपड़े पहनकर चली गईं। मैं अभी भी वहीँ छिपा हुआ था। विक्की बेड पर ही सो रहा था, और डिम्पी उठकर बाथरूम की ओर चली गई। मैं भी चुपके से अपने घर की ओर निकल गया।

ये सब देखकर मेरे दिमाग पर जैसे जादू सा चढ़ गया था। मैं हर वक्त यही सोचता रहता था कि कब फिर से ऐसा कुछ देखने को मिलेगा। गाँव की वो शांति अब मेरे लिए एक राज़ बन चुकी थी, जिसमें हर कोने में कुछ न कुछ छिपा था। मैं हर दिन मौसी के घर के चक्कर लगाने लगा, ये सोचकर कि शायद फिर से कुछ ऐसा देखने को मिले। मेरे लिए ये सब एक नई दुनिया थी, जो मुझे हर पल अपनी ओर खींच रही थी।

Related Posts

Report this post

Leave a Comment