मेरी माँ बहुत पहले गुजर चुकी थी। मेरी छोटी बहन श्वेता को मेरे पापा और मैंने ही पाला-पोसा है। हम उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करते हैं। इस प्यार ने आगे चलकर ऐसा रंग दिखाया कि मेरी जिंदगी बदल गई।
मैं रोहित, उम्र 29 साल, अपनी जिंदगी की एकदम सच्ची कहानी आपके सामने लाया हूँ। ये कहानी पिछले सात सालों, यानी 2012 से अब तक की है। चूंकि ये मेरी जिंदगी का सच है, तो ये थोड़ी लंबी हो सकती है और कई हिस्सों में आएगी। ये मेरे और मेरी छोटी बहन श्वेता के बीच की कहानी है। पहले मैं अपने बारे में बता देता हूँ, फिर पूरी बात विस्तार से बताऊंगा।
मेरा नाम रोहित है, और मेरी बहन का नाम श्वेता। हमारे अलावा इस दुनिया में सिर्फ हमारे पापा हैं। हम बिहार के एक गाँव में रहते हैं, जहाँ हमारी 8 बीघा जमीन है, जिस पर पापा खेती करते हैं। मेरी माँ तब गुजर गई थीं, जब श्वेता सिर्फ 3 साल की थी और मैं 6 साल का। यानी श्वेता मुझसे 3 साल छोटी है। माँ के जाने के बाद पापा और मैंने मिलकर श्वेता को बड़ा किया। हम दोनों उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करते हैं, उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं।
पापा ने हमारी पढ़ाई का पूरा ख्याल रखा। मैं 10वीं के बाद पढ़ाई के लिए उत्तर प्रदेश के एक शहर में चला गया, जो बिहार से सटा हुआ था। श्वेता तब गाँव में मुझसे छोटी क्लास में पढ़ रही थी। एक साल बाद पापा ने उसे भी मेरे पास उसी शहर में भेज दिया। हम दोनों एक किराए के मकान में रहने लगे और एक ही स्कूल में पढ़ने लगे। जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था, श्वेता 11वीं में थी। यहीं से हमारी कहानी शुरू होती है।
श्वेता बचपन से मेरे साथ ही सोती थी। एक ही बिस्तर पर, एक ही रजाई में, हम दोनों लेटकर सोते थे। हमारे बीच कोई पर्दा नहीं था। हम हर तरह की बात खुलकर करते—पढ़ाई, दोस्त, सपने, सब कुछ। श्वेता थोड़ी शरारती थी, कभी-कभी अजीब-अजीब सवाल पूछ लेती थी, जैसे “भैया, लड़के लड़कियों से इतना क्यों चिपकते हैं?” मैं हँसकर टाल देता।
बात उस सर्दी की रात की है। ठंड इतनी थी कि हड्डियाँ जम रही थीं। हम दोनों रजाई में दुबके हुए थे। मैं दाईं करवट लेटा था, और श्वेता मेरी गोद में उसी तरह चिपककर सो रही थी। अब श्वेता जवानी में कदम रख चुकी थी। उसकी चूचियाँ अब भरी-भरी और उभरी हुई थीं, जो टाइट कुर्ते में साफ दिखती थीं। उस रात वो मुझसे कुछ ज्यादा ही सटकर सोई थी। मैंने उसे पेट से पकड़ रखा था। सोते-सोते खुद को ठीक करने के चक्कर में मेरा बायाँ हाथ उसकी एक चूची से टकरा गया।
पहले तो मैं घबरा गया। सोचा, ये क्या हो गया! मैंने हाथ हटाने की कोशिश की, लेकिन उसकी चूची का नरम, गर्म अहसास मेरे दिमाग में चढ़ गया। मेरा लंड धीरे-धीरे तनने लगा। चूंकि श्वेता मेरी गोद में सटी थी, मेरा तना हुआ लंड उसके चूतड़ों से टच हो रहा था। उसकी शरारती आदत तो थी ही, उसने तपाक से पूछ लिया, “भैया, ये क्या चुभ रहा है? कुछ गर्म-गर्म सा लग रहा है।”
मैं सकपकाया, “अरे, कुछ नहीं है, पगली। तू मेरी गोद में है न, इसलिए गर्म लग रहा होगा।”
वो बोली, “नहीं भैया, कुछ तो है!”
और फिर उसने पीछे हाथ करके मेरे लंड पर सीधे पकड़ बना ली। मैं तो जैसे बिजली का झटका खा गया। मैंने झट से खुद को पीछे किया और कहा, “अरे, कुछ नहीं है, तू सो जा।”
लेकिन वो कहाँ मानने वाली थी। बोली, “भैया, मुझे पता है ये क्या है। ये आपका सुसु है न?”
मैंने कहा, “नहीं, पगली, कुछ नहीं।”
वो हँसते हुए बोली, “भैया, मैं जानती हूँ, आपका सुसु ही है। पर ये इतना बड़ा और गर्म क्यों हो रहा है?”
मैंने बात टालने के लिए कहा, “अरे, ठंड का मौसम है न, इसलिए।”
वो और सटकर बोली, “अच्छा, तो अब आपको ठंड नहीं लगेगी।”
उसकी ऐसी हरकत से मेरा लंड और सख्त हो गया। मैं सोच में पड़ गया कि ये लड़की आज इतनी खुल कैसे रही है। खैर, किसी तरह हम दोनों सो गए।
सुबह उठा तो मुझे थोड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई। सोचा, रात को क्या-क्या हुआ। लेकिन श्वेता एकदम नॉर्मल थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो। हम दोनों अपने स्कूल-कॉलेज गए, शाम को लौटे, खाना खाया, पढ़ाई की, और फिर सोने चले गए। उस रात ठंड फिर से थी। मैं लेटा ही था कि रात का सीन याद आ गया। बस, लंड फिर से तन गया। मैंने खुद को कंट्रोल करने की कोशिश की, लेकिन श्वेता खुद ही मुझसे सट गई और बोली, “भैया, आज भी ठंड बहुत है।”
अब मेरा लंड उसके नरम चूतड़ों से टकरा रहा था। वो फिर बोली, “भैया, आपके सुसु को आज भी ठंड लग रही है न?”
मैंने हँसकर कहा, “हाँ, थोड़ी सी।”
उसने फिर से मेरा लंड पकड़ लिया और बोली, “इसको इतनी ठंड क्यों लगती है?”
मैंने कहा, “अरे, छोड़ न, पकड़ने की क्या जरूरत है।”
वो मासूमियत से बोली, “भैया, जब मुझे ठंड लगती है, तो आप मुझे गोद में पकड़कर सुलाते हैं न? तो मैं भी आपके सुसु को पकड़ लेती हूँ।”
मैंने उसे समझाने की कोशिश की कि ये गलत है, लेकिन उसकी मासूमियत के सामने मैं हार गया। हम वैसे ही चिपककर सो गए।
अगली सुबह मौसम खराब था। बारिश और ठंड की वजह से हम दोनों स्कूल-कॉलेज नहीं गए। नाश्ता किया, खाना खाया, और फिर बिस्तर पर लेटकर बातें करने लगे। लेकिन उन दो रातों का असर मेरे दिमाग पर चढ़ गया था। मैं अब श्वेता को सिर्फ बहन की नजर से नहीं देख पा रहा था। उसकी भरी हुई चूचियाँ, पतली कमर, और गोल चूतड़ मेरे दिमाग में घूम रहे थे।
मैंने उससे कहा, “श्वेता, अब हमें अलग-अलग बेड पर सोना चाहिए।”
वो चौंक गई और बोली, “क्यों भैया? ऐसा क्या हुआ?”
मैंने कहा, “देख, हम दोनों अब बड़े हो गए हैं। ये ठीक नहीं है।”
वो जिद करने लगी, “नहीं भैया, मैं आपके साथ ही सोऊँगी।” मैंने उसे समझाया कि कुछ साल बाद उसकी शादी हो जाएगी, तो उसे अपने पति के साथ रहना होगा। ये सुनकर वो उदास हो गई और बोली, “मुझे कोई शादी नहीं करनी। मैं तो आपके साथ ही रहूँगी, हमेशा।”
वो रोने लगी। मैंने उसे चुप कराया और कहा, “ठीक है, मेरे साथ ही रहना।” वो खुश होकर मुझसे लिपट गई। उसने एक पैर मेरे ऊपर फेंका और जोर से मुझे पकड़ लिया। लेकिन उसके पैर का झटका मेरे लंड पर ऐसा लगा कि मेरे मुँह से “आह” निकल गई।
वो घबरा गई, “भैया, क्या हुआ?”
मैंने कहा, “कुछ नहीं।”
वो बोली, “मुझे आपकी कसम, बताओ।”
मुझे मजबूरन कहना पड़ा, “तूने पैर से मेरे सुसु पर ठोकर मार दी।”
वो झट से उठकर बैठ गई और मेरे लंड की तरफ देखने लगी। मैंने लंड पकड़ रखा था। वो बोली, “दिखाओ न, कहाँ लगी है?”
मैंने मना किया, लेकिन वो जिद करने लगी। उसने बाम लाकर मेरी कसम दे दी। मैं शर्म से मर रहा था, लेकिन मजबूरन अपना लोअर नीचे किया। मेरा लंड बाहर आ गया। मैं हमेशा अपनी झांटें साफ रखता हूँ, तो गोटियाँ चमक रही थीं।
श्वेता ने मेरे लंड को गौर से देखा और बोली, “भैया, मुझे तो समझ नहीं आ रहा। बताओ न, कहाँ लगी है?”
मैंने गोटियों की तरफ इशारा करके कहा, “यहाँ।”
उसने बाम लिया और मेरी गोटियों पर जोर से मल दिया। मुझे दर्द हुआ। मैंने कहा, “अरे, हल्के से! गोटियाँ बहुत नाजुक होती हैं।”
वो मेरे लंड को देखकर बोली, “भैया, ये फिर से बड़ा और गर्म क्यों हो रहा है?”
मुझे अब शर्म कम लग रही थी। मैंने कहा, “तेरे छूने से अच्छा लग रहा है, इसलिए खड़ा हो रहा है।”
ये सुनकर वो थोड़ा शरमा गई और हाथ पीछे कर लिया। मैंने पूछा, “क्या हुआ?”
वो बोली, “कुछ नहीं।”
मैंने लोअर ऊपर किया और उसे बाँहों में लेकर लेट गया। मैंने कहा, “ये बात किसी को मत बताना।”
वो मेरे सीने में मुँह छिपाकर बोली, “ठीक है, भैया।”
थोड़ी देर बाद वो बोली, “भैया, आपका सुसु अब दर्द तो नहीं कर रहा?”
मैंने कहा, “नहीं।”
वो बोली, “पता नहीं क्यों, मुझे फिर से पकड़ने का मन कर रहा है।”
मुझे भी अब मजा आने लगा था। मैंने कहा, “पकड़ ले, तेरा ही है।”
उसने लोअर में हाथ डाला और मेरा लंड पकड़ लिया। मैंने कहा, “ऊपर-नीचे सहला।”
वो बोली, “क्यों?”
मैंने कहा, “अच्छा लगता है।”
वो मेरे लंड को सहलाने लगी। उसका नरम हाथ मेरे लंड पर ऊपर-नीचे हो रहा था, और मैं सातवें आसमान पर था। तभी उसने फिर सवाल किया, “भैया, आपके सुसु पर बाल क्यों नहीं हैं?”
मैंने कहा, “मैं साफ करता हूँ। तू क्यों पूछ रही है?”
वो बोली, “मेरी सुसु के ऊपर तो बहुत सारे बाल हैं।”
ये सुनकर मेरे दिमाग में शरारत जागी। मैंने कहा, “ऐसा कैसे? दिखा तो जरा।”
वो शरमा गई, “नहीं भैया!”
मैंने नकली गुस्सा दिखाया, “तू मुझसे प्यार नहीं करती। मैंने तुझसे कुछ नहीं छिपाया, और तू छिपा रही है।”
वो बोली, “अच्छा ठीक है, देख लो।”
उसने अपना लोअर नीचे किया, लेकिन पैंटी नहीं उतारी। मैंने पैंटी के ऊपर से उसकी बुर को छुआ। क्या गजब का अहसास था! उसकी बुर मुलायम और गर्म थी। मेरी धड़कनें तेज हो गईं। मैंने पैंटी के ऊपर से उसकी बुर की लकीर को उंगली से टटोला। वो हल्का सा सिहर उठी।
मैंने जानबूझकर कहा, “कहाँ बाल हैं? कुछ तो दिख नहीं रहा।”
वो गुस्से में बोली, “आपने सही से देखा ही नहीं।”
और उसने अपनी पैंटी नीचे खींच दी। उसकी बुर पर घने, काले बाल थे। मैंने पूरी हथेली से उसकी बुर को दबाया और चूत की लकीर को ऊपर-नीचे सहलाया। वो मचल उठी। उसके मुँह से “इस्स…” की आवाज निकली।
मैंने पूछा, “क्या हुआ?”
वो बोली, “पता नहीं, कुछ अजीब सा लगा।”
मैंने उसकी पैंटी और लोअर ऊपर किए और कहा, “इन बालों को साफ कर लिया कर। रेजर से हटा दे।”
वो बोली, “ठीक है, भैया।”
चूंकि ठंड बहुत थी, हम बिस्तर से निकलना नहीं चाहते थे। मैंने उसे बाँहों में लिया और हम सो गए। लेकिन मेरा दिमाग अब उसी अहसास में खोया था। मैं सोच रहा था कि ये सब क्या हो रहा है। क्या ये गलत है? पर उस पल में सब सही लग रहा था।
बाकी का हिस्सा अगले भाग में बताऊंगा, कि कैसे हमारा प्यार और करीब आया। अगला भाग: भाई बहन के प्यार से सेक्स तक-2