पहले भाग(सगी बहन से निकाह करके सुहागरात-1) में तुमने पढ़ा कि मेरी छोटी बहन ज़ेबा से मेरा निकाह पक्का हो गया था। मेरा 9 इंच का लंड उसकी सील-पैक चूत का दीवाना हो चुका था, और मैं उसकी जवानी का रस चखने को तड़प रहा था। अब आगे की कहानी सुन, जो तेरे जिस्म में आग लगा देगी।
उसी रात अम्मी ने खाला को फोन ठोक दिया और सारी बात खोलकर बुला लिया। अगले ही दिन खाला अपने देसी ठाठ-बाट के साथ आ धमकीं। उनके चेहरे पर वो चालाकी थी, जो पक्की देसी औरतों में होती है। अम्मी ने उन्हें सारा किस्सा सुना दिया—कैसे मैं ज़ेबा की चूत का भूखा हो गया था, और कैसे अम्मी चाहती थीं कि ज़ेबा मेरी बीवी बने। खाला ने ठहाका मारकर कहा, “अम्मी, तुमने तो कमाल कर दिया! चिंता मत करो, मैं सब संभाल लूँगी।” फिर उन्होंने जुमे को, यानी पाँच दिन बाद, निकाह की तारीख पक्की कर दी।
मोहल्ले वाले हमें जानते थे। सगे भाई-बहन का निकाह हमारे मज़हब में हराम माना जाता है, सो हमने खाला के गाँव में जाकर शादी करने का फैसला किया। मैंने ऑफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ली, घर में ताला डाला, और अम्मी, ज़ेबा, और मैं खाला के गाँव पहुँच गए। मैंने मन में ठान लिया था कि शादी के बाद नया घर लूँगा, ताकि कोई शक न करे।
खाला थीं तो थोड़ी लालची, लेकिन काम की पक्की। मैंने उनके हाथ में दो लाख का चेक थमाया और कहा, “खाला, शादी को ऐसा देसी जलवा देना कि गाँव वाले देखते रह जाएँ।” फिर चुपके से बोला, “और हाँ, रात को सबके सोने के बाद मुझे ज़ेबा से अकेले में मिलवा देना।” खाला ने आँख मारकर कहा, “अरे परवेज़, इतनी जल्दी क्या है? तीन दिन बाद तो तू उसकी चूत का किला फतह करेगा। अभी से लंड में खुजली क्यों?” मैंने शरारत से मुस्कुराया। खाला बोलीं, “ठीक है, रात को मिलवा दूँगी। मैंने ज़ेबा से बात की, वो तैयार है।”
खाला की बात सुनकर मेरा लंड पजामे में तंबू बन गया। मैंने उसी रात ज़ेबा से मिलने का पक्का कर लिया। रात जब गाँव में सन्नाटा छा गया, मैं चुपके से ज़ेबा के कमरे में घुसा। दरवाजा खुला था। ज़ेबा मुझे देखकर हड़बड़ा गई। उसने शरम से अपना चेहरा हथेलियों से ढक लिया, जैसे कोई कुंवारी दुल्हन। मैं धीरे से उसके पास गया और उसके कंधे पर हाथ रखा। वो शरम से दोहरी हो गई, उसका गोरा चेहरा लाल हो गया।
मैं उसके बगल में बैठा और उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए बोला, “ज़ेबा, क्या तुझे ये निकाह पसंद नहीं? या मैं तुझे अच्छा नहीं लगता?” ज़ेबा की आवाज़ काँप रही थी, “न…नहीं भाईजान… ऐसी बात नहीं… बस… मैं थोड़ा डर रही हूँ।” मैंने उसे अपनी बाँहों में खींच लिया। उसका गदराया जिस्म मेरे सीने से टकराया, और उसकी चूचियाँ मेरे खिलाफ दब गईं। वो काँप रही थी। मैंने उसके सिर को सहलाया, तो उसने अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया।
मैंने कहा, “ज़ेबा, मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ,” और उसके रसीले गाल पर एक गर्म चुम्मी जड़ दी। वो सिहर उठी और बोली, “भाईजान, प्लीज़… आज नहीं।” मैंने हँसकर कहा, “अरे मेरी जान, आज तो बस तुझे प्यार करूँगा। मगर परसों सुहागरात है, उस दिन मेरा लंड तेरी चूत का मेहमान बनेगा।” ज़ेबा मेरे 9 इंच के लंड का ख्याल आते ही डर से सिहर गई। मैं उसकी गर्म साँसें और शरमाती आँखें देखकर और जोश में आ गया। कुछ देर तक उसे गले लगाकर मैं गुडनाइट बोलकर अपने कमरे में चला गया।
अगले दिन खाला ज़ेबा को गाँव के ब्यूटी पार्लर ले गईं। वहाँ उसकी चूत के आसपास के सारे बाल साफ करवाए, पूरा जिस्म वैक्स करवाया, और देसी जड़ी-बूटियों से मसाज करवाकर चमका दिया। ज़ेबा अब ऐसी लग रही थी, जैसे आसमान से उतरी हूर। उसका गोरा जिस्म चाँदनी की तरह चमक रहा था, और उसकी चूचियाँ ब्रा में उफान मार रही थीं। मैं उसे देखकर पागल हो रहा था।
जुमे का दिन आ गया। मेरा लंड पिछले एक साल से सूखा पड़ा था, और अब ज़ेबा की सील-पैक चूत का ख्याल मेरे जिस्म में आग लगा रहा था। मेरे सपनों में बस उसकी चूत की गुलाबी फाँकें और टाइट छेद घूम रहा था। शाम सात बजे सादगी से निकाह हुआ। मौलवी ने कुरान पढ़ी, और हमने कबूल-कबूल कहा। नौ बजे देसी खाने का दौर चला—बिरयानी, कबाब, और शाही टुकड़ा। ग्यारह बजे तक सारी रस्में खत्म हो गईं।
खाला और उनकी बेटियों ने मेरा हाथ पकड़कर मुझे उस कमरे में ले गए, जहाँ ज़ेबा लाल जोड़े में घूँघट डाले सिर झुकाए बैठी थी। कमरे में गुलाब की खुशबू फैली थी। टेबल पर केसर-बादाम वाला दूध, चाँदी के वर्क वाला पान, और नारियल तेल की शीशी रखी थी। तेल देखकर मेरा लंड फनफनाकर और तन गया। मैंने दरवाजा बंद किया और ज़ेबा के पास बैठ गया।
मैंने उसका घूँघट उठाया। उसका चेहरा देखकर मेरा दिल धक-धक करने लगा। उसकी आँखों में शरम और डर का मिश्रण था। मुँह दिखाई में मैंने उसे सोने की अँगूठी पहनाई। फिर उसके चेहरे को दोनों हाथों में लिया और उसके रसीले होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उसकी साँसें गर्म थीं, और होंठों का स्वाद ऐसा कि मैं पागल हो गया। मैंने उसके होंठ चूसे, उसकी जीभ को अपनी जीभ से लपेटा, और गालों पर चुम्मियों की बौछार कर दी। ज़ेबा शरम से सिहर रही थी।
मैंने धीरे-धीरे उसके ज़ेवर उतारे। उसकी लाल सलवार कमीज़ में उसका जिस्म और भी कड़क लग रहा था। मैंने उसका नाड़ा खींचा और कमीज़ उतार दी। उसकी लाल ब्रा में कसी चूचियाँ देखकर मेरा लंड पजामे में तड़पने लगा। मैंने ब्रा का हुक खोला, और ज़ेबा की गोरी, गोल, और टाइट चूचियाँ मेरे सामने थीं। मैंने एक चूची मुँह में ली और चूसने लगा। उसका निप्पल काला और सख्त था। मैंने जीभ से उसे चाटा, तो ज़ेबा सिहर उठी, “भाईजान… हाय… उफ्फ… गुदगुदी हो रही है।”
मैंने कहा, “ज़ेबा, अब तू मेरी बहन नहीं, मेरी रानी है।” मैंने दूसरी चूची को ज़ोर से दबाया और निप्पल को दाँतों से हल्का सा काटा। ज़ेबा की सिसकारियाँ निकलने लगीं, “आह… भाईजान… धीरे…” मैंने उसकी नाभि को चाटा, उसकी पतली कमर को सहलाया, और उसका लहंगा खींचकर उतार दिया। उसकी लाल पैंटी में उसकी चूत का उभार दिख रहा था। मैंने पैंटी भी उतार दी।
ज़ेबा शरम से अपनी चूत को हथेलियों से ढक रही थी। मैंने चालाकी से कहा, “ज़ेबा, तेरी चूचियाँ तो रसीले आम जैसे हैं।” वो शरमाकर अपनी चूचियाँ ढकने लगी, और मैंने उसकी चूत देख ली। हाय, क्या मस्त नज़ारा था! गुलाबी, छोटी सी, और मक्खन जैसी चूत। उसकी फाँकें हल्की गीली थीं, और छोटा सा छेद खुल-बंद हो रहा था। मैं पागल हो गया।
मैंने अपने सारे कपड़े उतार फेंके। मेरा 9 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लंड तोप की तरह तना था। ज़ेबा उसे देखकर डर गई, “भाईजान… हाय… इतना बड़ा… प्लीज़, ये नहीं जाएगा।” मैंने कहा, “डर मत, मेरी जान, तुझे जन्नत दिखाऊँगा।” मैं उससे लिपट गया। उसकी चूचियों को चूसते हुए मैंने उसके पूरे जिस्म पर चुम्मियों की बौछार कर दी। उसकी नाभि में जीभ डाली, तो वो तड़प उठी। मैंने उसकी टाँगें फैलाईं और उसकी चूत की फाँक को उँगलियों से खोला।
वाह, क्या देसी माल थी! उसकी चूत का गुलाबी छेद मेरे लंड का इंतज़ार कर रहा था। मैंने जीभ से उसकी चूत चाटनी शुरू की। ज़ेबा “हाय… भाईजान… उफ्फ… क्या कर रहे हो…” करके तड़पने लगी। मैंने उसकी क्लिट को चूसा, और जीभ को चूत के छेद में डालकर चाटा। दस मिनट में ज़ेबा झड़ गई। उसकी चूत का रस मेरे मुँह में आया—हल्का नमकीन, लेकिन ऐसा मज़ा कि मैंने सारा चाट लिया।
मैंने उसे दो बार और झाड़ा। उसकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। फिर मैंने अपना लंड उसकी चूत की फाँक पर रगड़ा। ज़ेबा डर रही थी, “भाईजान, प्लीज़… धीरे… मुझे दर्द होगा।” मैंने टेबल से नारियल तेल लिया और अपने लंड पर खूब मला। उसकी चूत की फाँक पर भी तेल डालकर मसला, ताकि उसकी टाइट चूत में रास्ता बने।
पहली बार लंड फिसल गया। दूसरी बार भी इधर-उधर हुआ। लेकिन तीसरी बार मैंने लंड को चूत के छेद पर सैट किया और एक ज़ोरदार धक्का मारा। ज़ेबा की चीख निकलने वाली थी, लेकिन मैंने फटाक से उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। मेरा लंड “खच” की आवाज़ के साथ उसकी सील-पैक चूत को फाड़ता हुआ अंदर घुस गया। ज़ेबा छटपटाने लगी, मुझे धक्का देने की कोशिश की, लेकिन मैंने उसे बाँहों में जकड़ लिया।
उसकी आँखों में आँसू थे। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड रबरबैंड में फँसा हुआ सा लग रहा था। मैंने धीरे-धीरे लंड को इंच-इंच अंदर पेला। ज़ेबा कराह रही थी, “भाईजान… हाय… मर गई… दर्द हो रहा है।” मैंने उसके आँसू पोंछे और कहा, “बस मेरी रानी, अब मज़ा आएगा।” मैंने धीरे-धीरे धक्के शुरू किए। मेरा लंड उसकी चूत के खून से लथपथ हो गया।
धीरे-धीरे चुदाई की रफ्तार बढ़ी। ज़ेबा का विरोध कम हो गया। वो अब सिसकारियाँ ले रही थी, “आह… भाईजान… उफ्फ…” मैंने उसकी चूचियाँ पकड़ीं और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगा। कमरा “फच-फच… पच-पच…” की देसी आवाज़ों से गूँज रहा था। ज़ेबा की चूत मेरे लंड को जकड़ रही थी, और हर धक्के में उसकी सिसकारियाँ तेज़ हो रही थीं।
मैंने उसकी टाँगें और फैलाईं और लंड को पूरा 9 इंच अंदर तक पेल दिया। ज़ेबा दो बार झड़ चुकी थी। उसकी चूत का रस और खून मेरे लंड पर चमक रहा था। मैंने उसकी चूचियों को चूसा, उसकी कमर को दबाया, और चुदाई का मज़ा लिया। करीब 50 मिनट तक मैंने 100 से ज़्यादा धक्के मारे। आखिर में 20 ज़ोरदार धक्कों के बाद मैंने अपने रस से उसकी चूत भर दी। मेरा लंड झटके ले रहा था, और ज़ेबा की चूत में मेरा माल बह रहा था।
मैं उस रात ज़ेबा को और तीन बार चोदना चाहता था। मैंने उसकी चूत को फिर से चाटा, लेकिन वो दर्द से कराह रही थी। उसने हाथ जोड़कर कहा, “भाईजान, बस… अब और नहीं… दर्द हो रहा है।” मैंने उसे प्यार से गले लगाया और बिस्तर पर लेट गया। सुबह बेडशीट पर खून और माल के धब्बे देखकर खाला मुस्कुराईं, जैसे सारी रात का किस्सा समझ गई हों।
दो दिन तक ज़ेबा लँगड़ाकर चल रही थी। उसकी चूत में सूजन थी, लेकिन उसकी शरम अब कम हो गई थी। तीसरे दिन मैंने उसे फिर चोदा। इस बार मैंने उसे घोड़ी बनाया और पीछे से उसकी चूत में लंड डाला। उसकी सिसकारियाँ सुनकर मेरा लंड और जोश में आ गया। दस दिन बाद मैंने उसकी गाँड की सील तोड़ी। ज़ेबा ने गाँड मरवाने में बहुत नखरे किए, “भाईजान, प्लीज़… गाँड में नहीं… बहुत दर्द होगा।”
मैंने नारियल तेल लिया, उसकी टाइट गाँड पर खूब मला, और धीरे-धीरे लंड का सुपारा अंदर डाला। ज़ेबा चीखी, लेकिन मैंने उसे दबोच लिया। धीरे-धीरे मेरा पूरा 9 इंच उसकी गाँड में समा गया। उसकी गाँड इतनी टाइट थी कि मेरा लंड स्वर्ग में था। मैंने ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारे, और ज़ेबा की चीखें सिसकारियों में बदल गईं। उस रात मैंने उसकी गाँड और चूत दोनों का मज़ा लिया।
वक़्त पंख लगाकर उड़ गया। एक दिन ऑफिस से लौटा, तो खाला ने चिल्लाकर कहा, “परवेज़, ज़ेबा पेट से है!” मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। नौ महीने बाद ज़ेबा ने आठ पौंड के मज़बूत बच्चे को जन्म दिया। अगले पाँच साल में ज़ेबा ने मेरे तीन बच्चों को जन्म दिया। आज हमारा परिवार देसी मस्ती में डूबा है।
ज़ेबा मेरी सगी बहन भी है और बीवी भी। शान को छोड़कर हमारे बच्चे मेरे बेटे भी हैं और भांजे भी। अम्मी दादी भी हैं और नानी भी। हमारे रिश्ते अनोखे हैं, लेकिन मज़ा ऐसा कि बस पूछो मत। सगी बहन की चुदाई का स्वाद ही निराला है, और जब वो तेरे बच्चों की माँ बने, तो बात जन्नत से कम नहीं।