हाय दोस्तो, मैं हूँ काजल चौधरी। उम्र मेरी 25 बरस की है, और फिगर मेरा 38-26-38, ऐसा माल कि गाँव के मरदों की आँखें फिसल जाएँ। रंग मेरा दूध सा गोरा, कद 5 फुट 4 इंच, और चूचियाँ ऐसी भारी-भरकम कि सारी फटने को होती है। आज मैं तुम्हें अपनी वो चटपटी कहानी सुनाने जा रही हूँ, जो मेरी चूत और मेरे बाबा के लौड़े की गर्मी से शुरू हुई।
मेरे बाबा, यार, एकदम देसी पहलवान टाइप के हैं। कभी अखाड़े में धूल उड़ाते थे, और आज भी उनका जिस्म ऐसा कि जवान मरद भी शरमा जाए। चौड़ा सीना, पत्थर जैसी बाजूएँ, और आँखों में वो भूख जो किसी की भी चड्डी गीली कर दे। गाँव की रंडियाँ तो उनके नाम की मुठ मारती हैं। ये कहानी ढाई बरस पुरानी है, जब मैं 22 की थी, और मेरी चूत में आग लगी थी।
हमारे घर में चार जन थे—मैं, मेरी बड़ी बहन मंजू, अम्मा, और बाबा। मंजू दीदी की शादी को अभी हफ्ता ही बीता था। दीदी के ससुराल जाने के बाद घर में सन्नाटा सा था, जैसे कोई मेला उजड़ गया हो। अम्मा और बाबा मेरी शादी की बातें करने लगे। मैं भी शादी की बातें सुनकर मन ही मन मजे लेती थी। सोचती थी, काश कोई ऐसा मरद मिले जो मेरी चूत की आग बुझा दे। लेकिन मेरे मन में कुछ और ही गुल खिल रहे थे।
हमारा गाँव शहर से दूर, जहाँ गन्ने के खेतों की हरियाली और सुबह की ठंडी हवा मन को ललचाती थी। पास में ही खेत थे, जहाँ सुबह-सुबह लोग टट्टी करने जाते। एक सुबह, करीब साढ़े चार बजे, मैं और बाबा खेत में गए। अंधेरा ऐसा कि हाथ को हाथ न सूझे। हम गन्ने के खेत में अलग-अलग बैठ गए, और अपनी जरूरत पूरी करने लगे।
जैसे ही सुबह की धुंधली रोशनी फैली, मैंने देखा कि मैं बाबा के ठीक सामने बैठी हूँ। मेरी चूत, जो बालों से भरी थी, बाबा की आँखों के सामने थी। वो टकटकी बांधे मेरी चूत को घूर रहे थे, जैसे कोई भूखा शेर मांस देख रहा हो। मेरी साँसें तेज हो गईं। मैंने उनकी ओर देखा, और मेरी नजर उनके 9 इंच के खड़े लौड़े पर टिक गई। यार, वो लौड़ा ऐसा था, जैसे कोई लोहे का डंडा! मोटा, लंबा, और नसों से भरा हुआ। मैं उसे देखकर पागल हो गई।
हमारी आँखें मिलीं, और मेरे जिस्म में आग सी लग गई। मैं खुद को रोक न सकी। मैंने झट से अपने होंठ बाबा के होंठों से चिपका दिए। बाबा भी तैयार थे। वो मेरे होंठों को ऐसे चूसने लगे, जैसे कोई आम का रस पी रहा हो। उनकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मैं उनकी जीभ को चाट रही थी। हम दोनों की साँसें गर्म थीं, और खेत की ठंडी हवा भी हमें ठंडा न कर सकी। कुछ देर तक हमने एक-दूसरे के होंठ चूसे, फिर जल्दी से टट्टी की।
बाबा ने देसी अंदाज में मुस्कुराते हुए कहा, “काजल, तेरी गांड धो दूँ, क्या?”
मैं शरम से लाल होकर बोली, “हाँ बाबा, धो दो ना!”
बाबा ने मेरी गांड पर पानी डाला और अपनी मोटी उंगली मेरे गांड के छेद पर रगड़ने लगे। उनकी उंगली की हरकत से मेरी चूत में चींटियाँ सी रेंगने लगी। मैंने भी हिम्मत करके उनका लौड़ा पकड़ लिया। वो इतना गर्म और सख्त था कि मेरी चूत से पानी टपकने लगा। बाबा मेरी गांड के छेद को उंगली से चोद रहे थे, और मैं उनके लौड़े को मुठ मार रही थी। हमारी आँखें एक-दूसरे में डूबी थीं, और हम दोनों की वासना आसमान छू रही थी। लेकिन सूरज की रोशनी बढ़ने लगी, और हमने खुद को सम्भाला। गाँव की मिट्टी से सने हम घर लौट आए।
घर पहुँचकर मैं बाथरूम में नहाने घुसी। पानी की बौछारें मेरे जिस्म पर पड़ रही थीं, लेकिन मेरे दिमाग में सिर्फ़ बाबा का लौड़ा था। मैं उसकी मोटाई, उसकी गर्मी, और उसकी ताकत को याद करके पागल हो रही थी। मेरी चूत बार-बार गीली हो रही थी। मैंने अपनी चूत में उंगली डालकर मजे लेने की कोशिश की, लेकिन बाबा के लौड़े का ख्याल मुझे चैन न लेने दे रहा था। तभी बाथरूम का दरवाजा खुला, और बाबा अंदर आ गए।
वो मुझे नंगी देखकर भूखे भेड़िए की तरह मुझ पर टूट पड़े। उन्होंने मुझे अपनी बाहों में कस लिया और मेरे होंठों को चूसने लगे। उनकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मैं भी उनका पूरा साथ दे रही थी। वो मेरे बूब्स को जोर-जोर से मसल रहे थे, और मैं सिसकारियाँ भर रही थी, “आह… बाबा… और चूसो!” लेकिन तभी बाहर से अम्मा की आवाज आई, “काजल, जल्दी नहा ले, काम पड़ा है!” हम दोनों घबरा गए। बाबा ने जल्दी से मेरी चूचियों को चूमा और बाहर निकल गए। मैं भी थोड़ी देर में नहाकर बाहर आई।
बाहर आते ही अम्मा बोली, “मैं नहाने जा रही हूँ। रोटी बना ले तब तक।”
मैंने कहा, “ठीक है, अम्मा।”
मैं अपने कमरे में कपड़े पहनने लगी। तभी बाबा फिर से आ गए। उन्होंने मेरे कपड़े छीनकर कोने में फेंक दिए और मुझे अपनी बाहों में भर लिया। मैंने डरते हुए कहा, “बाबा, अम्मा बाथरूम में हैं। अगर आ गईं तो गड़बड़ हो जाएगी।”
बाबा ने देसी ठसक के साथ कहा, “अरे, तेरी अम्मा को टाइम लगेगा। तब तक हम अपनी आग बुझा लेंगे।”
मैंने शरमाते हुए पूछा, “क्या, बाबा?”
बाबा ने मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया। उनके मोटे-मोटे हाथ मेरी चूचियों को दबा रहे थे, जैसे कोई आटा गूंध रहा हो। मैं सिसकारियाँ भर रही थी, “आह… बाबा… दबाओ… और जोर से!” बाबा ने मुझे चारपाई पर लिटाया और मेरे पूरे जिस्म को चूमना शुरू कर दिया। वो मेरी चूचियों के निप्पल्स को काट रहे थे, और मैं चिल्ला रही थी, “बाबा… आह… और काटो!” फिर वो मेरी नाभि में जीभ डालकर चाटने लगे, और मैं तड़प रही थी।
फिर बाबा नीचे आए और मेरी बालों वाली चूत को देखकर बोले, “काजल, ये तो एकदम जंगल है!” वो मेरी चूत को चाटने लगे। उनकी जीभ मेरी चूत के दाने को छू रही थी, और मैं चिल्ला रही थी, “बाबा… चाटो… मेरी चूत को चूस लो!” उनकी जीभ मेरी चूत के अंदर तक जा रही थी, और मैं अपनी गांड उछाल रही थी। मेरा पानी निकल गया, और बाबा ने उसे पूरा चाट लिया। वो बोले, “काजल, तेरी चूत का रस तो शहद से मीठा है!”
फिर बाबा ने अपना 9 इंच का लौड़ा मेरे मुँह के पास लाया। मैंने उसे देखकर कहा, “बाबा, ये तो गन्ने से भी मोटा है!” मैंने उनका लौड़ा मुँह में लिया और चूसने लगी। वो इतना मोटा था कि मेरा मुँह पूरा खुल गया। मैं उनके सुपारे को जीभ से चाट रही थी, और बाबा सिसकारियाँ भर रहे थे, “काजल… चूस… मेरे लौड़े को रंडी की तरह चूस!” मैंने उनके लौड़े को गले तक लिया, और वो मेरे मुँह में धक्के मारने लगे। कुछ देर बाद उनका माल मेरे मुँह में निकल गया, और मैंने उसे पूरा निगल लिया।
लेकिन हमारी भूख अभी बुझी नहीं थी। बाबा ने मुझे फिर से चारपाई पर लिटाया और अपना लौड़ा मेरी चूत पर रगड़ने लगे। मैं चिल्ला रही थी, “बाबा… अब डाल दो… मेरी चूत फट रही है!” बाबा ने अपना लौड़ा मेरी चूत के मुँह पर सेट किया और एक जोरदार धक्का मारा। उनका सुपारा मेरी चूत में घुस गया। मैं दर्द से चीख पड़ी, लेकिन मजे में थी। बाबा ने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। उनका लौड़ा मेरी चूत को चीर रहा था, और मैं सिसकारियाँ भर रही थी, “आह… बाबा… चोदो… मेरी चूत को फाड़ दो!”
बाबा ने अपनी स्पीड बढ़ा दी। उनका लौड़ा मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था, और मेरी चूचियाँ हिल रही थीं। मैंने अपनी टाँगें उनकी कमर पर लपेट दीं, ताकि उनका लौड़ा और गहराई तक जाए। बाबा मेरी चूचियों को मसल रहे थे, और मैं चिल्ला रही थी, “बाबा… और जोर से… मेरी चूत को रगड़ दो!” फिर बाबा ने मुझे घोड़ी बनाया। मैंने अपनी गांड ऊपर उठाई, और बाबा ने पीछे से अपना लौड़ा मेरी चूत में पेल दिया। उनके हर धक्के से मेरा जिस्म हिल रहा था। मैं चिल्ला रही थी, “बाबा… मेरी चूत को चोदो… रंडी बना दो मुझे!”
कुछ देर बाद बाबा बोले, “काजल, तेरी गांड भी मारूँ?” मैंने शरारती अंदाज में कहा, “मार ना, बाबा… मेरी गांड भी तेरी है!” बाबा ने मेरी गांड पर थूक लगाया और अपनी उंगली से उसे गीला किया। फिर उन्होंने अपना लौड़ा मेरी गांड के छेद पर सेट किया और धीरे से दबाया। मैं दर्द से चीख पड़ी, लेकिन बाबा ने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया। उनका लौड़ा मेरी गांड में आधा घुस गया। वो रुके, और फिर धीरे-धीरे धक्के मारने लगे। दर्द मजे में बदल गया। मैं अपनी गांड को पीछे धकेल रही थी, और बाबा मेरी गांड को चोद रहे थे। वो चिल्ला रहे थे, “काजल… तेरी गांड तो एकदम टाइट है!”
करीब 20 मिनट तक बाबा ने मेरी गांड चोदी। फिर वो वापस मेरी चूत में आए। उन्होंने मुझे चारपाई पर लिटाया और मेरी टाँगें अपने कंधों पर रखीं। उनका लौड़ा मेरी चूत में फिर से घुस गया, और वो पूरी ताकत से धक्के मारने लगे। मेरी चूचियाँ उछल रही थीं, और मैं चिल्ला रही थी, “बाबा… चोदो… मेरी चूत को अपना लौड़ा खिला दो!” तभी मेरा जिस्म अकड़ने लगा। मेरी चूत से पानी निकला, और मैं झड़ गई। लेकिन बाबा नहीं रुके। वो और तेज धक्के मारने लगे। कुछ देर बाद वो चिल्लाए, “काजल… ले मेरा माल!” और उन्होंने अपना सारा माल मेरी चूत में उड़ेल दिया।
हम दोनों नंगे ही चारपाई पर पड़े रहे। मैं बाबा के सीने पर सिर रखकर लेटी थी, और वो मेरी चूचियों को सहला रहे थे। लेकिन हमें जल्दी करनी थी, क्योंकि अम्मा कभी भी बाहर आ सकती थी। मैंने जल्दी से साड़ी लपेटी और रसोई में रोटी बनाने लगी। बाबा भी लुंगी बाँधकर खेत में काम करने चले गए।
उस रात जब बाबा खेत से लौटे, तो हम फिर से एक-दूसरे में डूब गए। अम्मा और गाँव के बाकी लोग सो गए, तो बाबा मेरे कमरे में आए। हमने दरवाजा बंद किया और चारपाई पर टूट पड़े। बाबा ने मुझे अपनी गोद में बिठाया और मेरी चूचियों को चूसने लगे। मैं उनके लौड़े को सहला रही थी। फिर उन्होंने मुझे दीवार के सहारे खड़ा किया और मेरी चूत में अपना लौड़ा पेल दिया। वो मुझे खड़े-खड़े चोद रहे थे, और मैं सिसकारियाँ भर रही थी, “बाबा… और पेलो… मेरी चूत को रगड़ दो!”
हमने कई पोजीशन बदलीं। कभी मैं उनके लौड़े पर उछल रही थी, कभी वो मेरी गांड मार रहे थे। हर बार मेरा पानी निकलता, और बाबा मेरी चूत को अपने माल से भर देते। हमारी सिसकारियाँ कमरे में गूंज रही थीं, और गाँव की रात की सन्नाटे में हमारी चुदाई की आवाजें मजे को दोगुना कर रही थीं।
ऐसा हफ्ते भर चला। हर रात हम चोरी-छिपे मिलते और अपनी प्यास बुझाते। लेकिन एक दिन सुबह मुझे उल्टी हुई। मैं हकीम के पास गई, और पता चला कि मैं पेट से हूँ। मैंने ये बात बाबा को बताई। वो खुशी से पागल हो गए, लेकिन हम दोनों को चिंता थी कि अब गाँव में क्या होगा। अम्मा को कैसे समझाएँ? बदनामी का डर था। लेकिन बाबा ने देसी जुगाड़ निकाला।
उन्होंने गाँव में खबर फैलाई कि मेरी शादी पक्की हो गई है। एक लड़के से मेरी सगाई कर दी, जो बाबा का पुराना दोस्त का बेटा था। बाबा ने उसे पहले ही सब समझा दिया था। वो मेरे बच्चे को अपनाने को तैयार था। इस तरह हमने अपनी चोरी छिपा ली, और गाँव की मिट्टी में हमारी गंदी बातें दब गईं।