कुंवारी नौकरानी का शील भंग

आसाम की हरी-भरी वादियों में, जहाँ पेड़ों की हरियाली और फूलों की महक दिल को लुभाती थी, मेरे पति सुनील का तबादला हुआ था। वहाँ का माहौल ऐसा था कि हर जवान दिल बेकाबू हो जाए। हम दोनों इस नई जगह पर बेहद खुश थे। कंपनी की तरफ से हमें घर नहीं मिला था, इसलिए हमने पास ही एक खूबसूरत-सा मकान किराए पर ले लिया। किराया कंपनी देती थी, तो हमें कोई फिक्र नहीं थी। Kuwari kaamwali

सुनील की ड्यूटी शिफ्ट में थी। कभी दिन, कभी रात—उनका कोई ठिकाना नहीं। घर के कामों के लिए हमने एक नौकरानी रखी, जिसका नाम आशा था। वो करीब बीस साल की थी, जवान, सुंदर, और बदन ऐसा कि देखने वाले की साँसें थम जाएँ। उसकी जवानी चरम पर थी—गोरा रंग, भरा हुआ बदन, और एक अजीब-सी कशिश जो हर किसी को अपनी ओर खींच ले। उसके उभार छोटे मगर नुकीले, जैसे अभी-अभी जवानी ने उन्हें तराशा हो। होंठ पतले, गुलाब की पंखुड़ियों जैसे, जिन्हें देखकर मन डोल जाए।

सुनील तो पहले दिन से ही आशा पर फिदा था। वो अक्सर उसकी तारीफ करता, “नेहा, देखा है उसका फिगर? क्या माल है!” मैं हँस देती, क्योंकि मैं उसके दिल की बात समझती थी। उसकी नजरें आशा के बदन पर टिकी रहतीं, जैसे वो उसके कपड़ों के पार देखना चाहता हो। मैं भी उसकी जवानी से हैरान थी। उसका बदन इतना कसा हुआ था कि हर अदा में वासना झलकती थी।

एक रात, जब सुनील मुझे चोद रहा था, उसने अपने दिल की बात खोल दी। “नेहा, आशा कितनी सेक्सी है, यार! उसका बदन देखकर लंड तन जाता है।” मैंने हँसते हुए कहा, “हाँ, जवान लड़की है, सेक्सी तो होगी ही। बोलो, क्या चाहते हो?” वो थोड़ा झिझका, फिर बोला, “यार, उसे पटाओ ना… उसे चोदने का मन करता है।” मैंने मस्ती में कहा, “अच्छा जी, नौकरानी को चोदोगे? वैसे, वो चीज तो चोदने लायक है।” सुनील ने जोश में कहा, “तो मदद कर ना, नेहा!” मैंने हामी भर दी, “ठीक है, जानू, कल से उसे पानी-पानी कर दूँगी।”

बातों-बातों में मैं सोच में पड़ गई कि आशा को कैसे फँसाया जाए। सेक्स तो हर किसी की कमजोरी है, बस सही मौका चाहिए। अगले दिन मैंने एक तरकीब सोची। आशा के आने का समय था। मैंने टीवी पर एक हिंदी ब्लू फिल्म चला दी, जिसमें चुदाई के साथ-साथ गंदे डायलॉग थे। जैसे ही आशा कमरे में साफ-सफाई के लिए आई, मैं बाथरूम में चली गई। मैंने जानबूझकर वीडियो प्लेयर को लकड़ी के केस में छिपा रखा था, ताकि उसे लगे कि ये कोई चैनल है।

आशा ने जैसे ही कमरे में कदम रखा, उसकी नजर टीवी पर पड़ी। स्क्रीन पर चुदाई का सीन चल रहा था—लंड चूत में जा रहा था, और लड़की सिसकारियाँ भर रही थी। आशा ठिठक गई। वो सीन देखते-देखते बिस्तर पर बैठ गई। मैं बाथरूम से चुपके से सब देख रही थी। उसका चेहरा लाल हो रहा था, और आँखों में वासना की चमक साफ दिख रही थी। धीरे-धीरे उसका हाथ अपनी चूचियों पर चला गया। वो उन्हें सहलाने लगी, जैसे खुद को रोक न पा रही हो। मेरी तरकीब काम कर रही थी।

मैंने मौका देखकर बाथरूम से बाहर कदम रखा और नाटक करते हुए कहा, “अरे, ये टीवी पर क्या चल रहा है?” आशा थोड़ा सकपकाई, फिर बोली, “दीदी, साब तो हैं नहीं… चलने दो ना, बस हम दोनों ही तो हैं।” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं आशा, ये देखकर तो दिल में आग लग जाती है।” मैंने चैनल बदल दिया, लेकिन मैं जानती थी कि आशा के जवान जिस्म में वासना की चिंगारी भड़क चुकी थी।

उसने उत्सुकता से पूछा, “दीदी, ये किस चैनल पर आता है?” मैंने मस्ती में कहा, “तुझे देखना है तो दिन में फ्री होकर आ। हम दोनों मिलकर देखेंगे।” आशा खुश हो गई और बोली, “हाँ दीदी, तुम कितनी अच्छी हो!” उसने जोश में मुझे गले लगा लिया। उसके गले लगने में एक अजीब-सी गर्मी थी, जैसे वो सिर्फ प्यार नहीं, कुछ और भी चाह रही हो। उसने अपना काम जल्दी निपटाया और चली गई।

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दोपहर करीब एक बजे आशा वापस आई। मैंने उसे प्यार से बिस्तर पर बिठाया और नीचे से केस खोलकर प्लेयर में एक नई ब्लू फिल्म की सीडी लगा दी। ये फिल्म और भी गर्म थी, जिसमें एक जवान लड़की को दो मर्द चोद रहे थे। फिल्म शुरू होते ही आशा की साँसें तेज हो गईं। उसकी आँखें स्क्रीन पर टिकी थीं, और चेहरा लाल पड़ रहा था। मैं उसके पास बैठी थी, और उसकी धड़कनें तक महसूस कर रही थी।

फिल्म में चुदाई का सीन आया, जहाँ लड़की सिसकारियाँ भर रही थी। आशा का बदन सिहर रहा था। मैंने धीरे से उसकी पीठ पर हाथ रखा। उसकी साँसें और तेज हो गईं। मैंने उसकी पीठ सहलानी शुरू की, और वो मेरी ओर खिसक आई। उसका कसा हुआ बदन मेरे बदन से सट गया। उसकी खुशबू मेरे होश उड़ा रही थी। टीवी पर अब एक मर्द लड़की की चूत चाट रहा था, और आशा का पल्लू नीचे गिर चुका था। मैंने धीरे से उसकी चूचियों पर हाथ रखा। उसने मेरा हाथ अपनी चूचियों पर दबा लिया और सिसक पड़ी।

“आशा, कैसा लग रहा है?” मैंने धीरे से पूछा।
“दीदी… हाय… बहुत अच्छा… कितना मजा आ रहा है,” उसने काँपते स्वर में कहा।

मैंने उसकी चूचियाँ सहलानी शुरू की। वो मेरा हाथ पकड़कर बोली, “बस दीदी… अब नहीं…” लेकिन उसकी आवाज में कमजोरी थी। मैंने कहा, “अरे, मजे ले ले, ऐसे मौके बार-बार नहीं आते।” मैंने उसके थरथराते होंठों पर अपने होंठ रख दिए। आशा उत्तेजना से पागल हो रही थी। उसने मेरी चूचियों को अपने हाथों में भर लिया और धीरे-धीरे दबाने लगी। मैंने उसका लहंगा ऊपर उठाया और उसकी चिकनी जाँघों पर हाथ फेरने लगी। मेरा हाथ उसकी चूत तक पहुँच गया। उसकी चूत गीली थी, जैसे पानी छोड़ रही हो।

जैसे ही मैंने उसकी चूत को छुआ, आशा मेरे से लिपट गई। “दीदी… हाय… मत करो… मर गई!” वो सिसकार रही थी। मैंने उसकी चूत के दाने को हल्के-हल्के रगड़ना शुरू किया। वो नीचे झुक रही थी, उसकी आँखें नशे में बंद हो रही थीं। मैं जानती थी कि वो अब मेरे काबू में है।

उसी वक्त सुनील लंच के लिए घर आ गया। उसने कमरे में झाँककर देखा। मैंने उसे इशारा किया कि अभी रुको। मैंने आशा को और गर्म करने के लिए कहा, “आशा, चल, मैं तेरा बदन सहला दूँ। कपड़े उतार दे।”
वो बोली, “दीदी, ऊपर से ही दबा दो ना!” और बिस्तर पर लेट गई। मैं उसकी चूचियों को दबाने लगी। उसकी सिसकारियाँ तेज हो रही थीं। मैंने मौका देखकर उसका ब्लाउज उतार दिया। उसने कुछ नहीं कहा। मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए और उसकी चूत पर उंगली से दबाव डालकर सहलाने लगी। धीरे से मैंने एक उंगली उसकी चूत में डाल दी।

आशा के मुँह से जोर की सिसकारी निकली, “हाय दीदी… मर गई… कितना मजा!”
मैंने कहा, “आशा, लंड से चुदेगी? और मजा आएगा।”
वो बोली, “दीदी, लंड कहाँ से लाओगी?”
मैंने मस्ती में कहा, “बोल, सुनील को बुला दूँ? वो तुझे चोदकर मस्त कर देगा।”
आशा सकपकाई, “नहीं दीदी… साब से नहीं!”

मैंने कहा, “ठीक है, उलटी लेट जा, तेरे चूतड़ मसल देती हूँ।” वो उलटी लेट गई। मैंने उसकी चूत के नीचे तकिया रखा, ताकि उसकी गाँड ऊपर उठ जाए। मैंने उसके पैर चौड़े किए और उसकी गाँड के छेद और चूतड़ों को सहलाने लगी। आशा सिसकारियाँ भर रही थी, “हाय… दीदी… कितना अच्छा लग रहा है!” kamwali ki chudai

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सुनील दरवाजे पर खड़ा सब देख रहा था। उसने अपने कपड़े उतार लिए थे, और उसका लंड तनकर लोहे जैसा हो गया था। वो अपने लंड की चमड़ी को ऊपर-नीचे कर रहा था। मैंने उसे इशारा किया कि अब आ जाओ। सुनील चुपके से अंदर आया। मैंने इशारा किया कि चोद डाल इसे।

आशा की फैली हुई चूत और चौड़े पैर सुनील को साफ दिख रहे थे। उसका लंड और तन गया। वो आशा के पैरों के बीच आया। मैं आशा के पीछे खड़ी थी। सुनील ने अपना लंड आशा की चूत पर रखा। आशा को तुरंत होश आया। वो चीखी, “दीदी, ये क्या!” लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। सुनील ने उसे कस लिया। उसने आशा के चूतड़ों को पकड़कर लंड उसकी चूत पर अड़ा दिया। मैंने सुनील का लंड पकड़कर आशा की चूत पर सही से सेट किया।

सुनील ने एक जोरदार धक्का मारा। उसका मोटा लंड आशा की कुँवारी चूत को चीरता हुआ अंदर घुस गया। आशा की चूत गीली थी, लेकिन इतनी टाइट थी कि लंड को रास्ता बनाने में मेहनत करनी पड़ी। आशा चीख उठी, “हाय… मर गई!” सुनील ने उसका मुँह दबा लिया। मैंने सुनील को धीरे करने को कहा, लेकिन वो जोश में था। उसने दूसरा धक्का मारा, और उसका लंड आशा की चूत की गहराई में उतर गया।

आशा की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसके मुँह से घू-घू की आवाजें निकल रही थीं। उसने अपने हाथों से सुनील को हटाने की कोशिश की, लेकिन सुनील ने उसे कसकर पकड़ रखा था। मैंने उसका मुँह दबा दिया। आशा की चूत से खून टपकने लगा। वो रोते हुए बोली, “बाबूजी… बहुत दर्द हो रहा है… धीरे करो!”

मैंने उसे प्यार से समझाया, “बस आशा, थोड़ा बर्दाश्त कर। पहली बार होता है। अब मजा आएगा।” सुनील ने अब धीरे-धीरे लंड अंदर-बाहर करना शुरू किया। आशा छटपटाती रही, लेकिन सुनील ने उसकी चूचियों को पकड़ लिया और उन्हें मसलने लगा। वो नीचे से अपने बदन को हिलाकर निकलने की कोशिश कर रही थी, लेकिन सुनील का भारी शरीर उसे दबाए हुए था।

कुछ देर बाद आशा की सिसकारियाँ बदलने लगीं। उसका दर्द अब मजे में बदल रहा था। सुनील ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी। उसका लंड आशा की चूत को चीरता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था। आशा की चूत इतनी टाइट थी कि हर धक्के में सुनील को जन्नत का मजा मिल रहा था। वो आशा की चूचियों को मसल रहा था, और आशा की सिसकारियाँ अब आनंद की आवाजों में बदल गई थीं, “हाय… बाबूजी… धीरे… आह!”

मैंने देखा कि आशा की चूत से खून अब कम हो रहा था, और उसकी साँसें तेज हो रही थीं। सुनील का लंड खून से लाल हो चुका था, लेकिन वो रुका नहीं। उसने आशा की गाँड को थपथपाया और और जोर से धक्के मारने लगा। आशा की चूत अब गीली और गर्म हो चुकी थी। वो नीचे से अपनी कमर हिलाकर सुनील का साथ देने लगी। मैं समझ गई कि आशा को अब मजा आने लगा है।

सुनील ने अब आशा को पलट दिया और उसे घोड़ी की तरह कर लिया। उसकी गाँड ऊपर थी, और चूत पूरी तरह खुली हुई। सुनील ने अपने लंड पर थूक लगाया और फिर से उसकी चूत में पेल दिया। इस बार आशा की सिसकारी और तेज हो गई, “हाय… बाबूजी… कितना मोटा है… मर गई!” सुनील ने उसकी कमर पकड़कर तेज-तेज धक्के मारने शुरू किए। हर धक्के के साथ आशा की चूचियाँ हिल रही थीं, और उसका बदन सिहर रहा था।

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मैंने आशा की चूचियों को पकड़ लिया और उन्हें मसलने लगी। आशा की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल रही थीं, “हाय… दीदी… बाबूजी… आह… क्या कर रहे हो!” सुनील ने उसकी गाँड पर एक थप्पड़ मारा और बोला, “आशा, अब तू मेरी रानी है। ले, और ले!” उसका लंड आशा की चूत की गहराई तक जा रहा था, और हर धक्के के साथ आशा की चूत और गीली हो रही थी।

करीब दस मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद आशा का बदन अकड़ने लगा। उसकी साँसें रुक रही थीं। वो जोर से सिसकारी और झड़ गई। उसकी चूत ने इतना पानी छोड़ा कि सुनील का लंड पूरी तरह तर हो गया। सुनील ने और तेज धक्के मारे, और आशा की चूत की गर्मी ने उसे भी चरम पर पहुँचा दिया। उसने आशा की चूत से लंड निकाला और उसकी गाँड पर अपनी पिचकारी छोड़ दी। सारा वीर्य आशा के चूतड़ों पर फैल गया। मैंने जल्दी से उसे रगड़कर साफ कर दिया।

सुनील अब शांत होकर बिस्तर से नीचे उतर आया। आशा वैसे ही लेटी रही, जैसे उसका होश उड़ गया हो। मैंने उसे प्यार से सहलाया और कहा, “बस आशा, हो गया। तेरा सपना भी तो पूरा हुआ ना?” आशा ने धीरे से सिर हिलाया। उसने अपने कपड़े उठाए और पहनने लगी। सुनील भी कपड़े पहन चुका था।

मैंने सुनील को इशारा किया। वो समझ गया। जैसे ही आशा जाने लगी, मैंने उसे रोका, “सुन आशा, सुनील कुछ कह रहा है।” सुनील ने नरम स्वर में कहा, “आशा, मुझे माफ कर दे। तुझे उस हालत में देखकर खुद को रोक नहीं पाया।” उसने अपनी जेब से दो सौ के नोट निकाले और आशा को दिए। आशा ने उन्हें देखा, लेकिन कोई खुशी नहीं दिखाई। सुनील ने फिर पाँच सौ के नोट निकाले। आशा की आँखों में चमक आ गई।

मैंने सुनील के हाथ से नोट लिए और अपने पर्स से एक हजार रुपये और निकालकर आशा के हाथ में थमा दिए। उसका चेहरा खिल उठा। मैंने कहा, “देख, ये साब ने जो किया, ये उसका हर्जाना है। अगर तुझे फिर से करना हो, तो इतने ही पैसे और मिलेंगे।” आशा ने कहा, “दीदी, मैं आज से तुम्हारी बहन हूँ। पैसों की जरूरत किसे नहीं होती?”

मैंने उसे गले लगाया और कहा, “आशा, तू सच में मेरी बहन है। तुझे जब मन हो, तभी करना।” आशा खुश होकर जाने लगी। दरवाजे से उसने मुड़कर देखा, फिर दौड़कर मेरे पास आई और मेरे कान में फुसफुसाई, “दीदी, साब से कहना… धन्यवाद!” मैंने मस्ती में पूछा, “किस लिए? पैसों के लिए?” वो बोली, “नहीं, मेरी चुदाई के लिए!”

वो हँसते हुए बाहर भाग गई। मैं उसे देखती रह गई। तभी मेरी नजर मेज पर पड़ी। सारे नोट वहीँ पड़े थे। आशा उन्हें ले जाना भूल गई थी। सुनील असमंजस में था। मैंने हँसकर कहा, “लगता है, इसे पैसों से ज्यादा मजा चाहिए!”

हम दोनों हँस पड़े। उस दिन के बाद आशा का आना-जाना बढ़ गया। वो अब सिर्फ नौकरानी नहीं, हमारी राज़दार बन गई थी।

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