दो जिस्म और एकांत

मम्मी और पापा सुबह-सुबह दिल्ली के लिए निकल गए थे। मैं, नेहा, घर में अकेली रह गई थी। पापा ने पड़ोस के शर्मा जी से कहा था कि वो मेरी और घर की देखभाल करें। शर्मा जी की बेटी मेरी सहेली थी, लेकिन मेरा ध्यान तो उनके बेटे विनोद पर था। विनोद, 20 साल का जवान लड़का, कॉलेज में पढ़ता था और उसकी शरारती आँखें मुझे हमेशा बेकरार कर देती थीं। मम्मी-पापा के जाते ही वो अपनी किताबें लेकर हमारे घर आ गया। मैंने उसे बैठक का कमरा दे दिया, लेकिन मन में ठान लिया था कि आज कुछ न कुछ तो होगा।

दो जवान जिस्म, खाली घर, और बेकरार दिल… आग तो लगनी ही थी। विनोद को मैं हमेशा से पसंद थी। वो बार-बार मेरे कमरे में आता, कभी पानी माँगता, कभी कुछ और बहाना बनाता। उसकी नजरें मेरे जिस्म पर टिकतीं, और मैं मन ही मन मुस्कुराती। मुझे भी वो अच्छा लगता था—उसका लंबा कद, चौड़ा सीना, और वो हल्की-सी शरम जो उसकी बातों में झलकती थी। मैं जानती थी, वो मुझे चाहता है, और मैं भी उसे उकसाने को तैयार थी।

दोपहर को मैंने नहाने का फैसला किया। बाथरूम का दरवाज़ा मैंने जानबूझकर थोड़ा खुला छोड़ा। उसमें एक छोटा-सा छेद था, जिससे बाहर का सब दिखता था। मैंने चुपके से झाँका तो विनोद बाथरूम की तरफ़ देख रहा था। उसकी आँखों में भूख थी, और मेरे जिस्म में सनसनी। मैंने मौका पकड़ लिया। अनजान बनते हुए मैंने अपना टॉप उतारा। मेरी चुचियाँ ब्रा से आज़ाद होकर उछल पड़ीं। मैंने धीरे-धीरे अपनी चुचियों को सहलाया, उनकी नोकों को उंगलियों से मसला, और एक हल्की सिसकारी भरी। मैं जानती थी, वो मुझे देख रहा है, और उसकी साँसें तेज़ हो रही होंगी।

फिर मैंने छेद की ओर पीठ की और अपना पजामा उतारा। पैंटी को धीरे-धीरे नीचे सरकाया, ताकि मेरे गोल-मटोल चूतड़ उसकी नजरों के सामने आ जाएँ। मैंने जानबूझकर थोड़ा झुककर अपनी चूत की गहराई दिखाई। मेरे जिस्म में आग लग रही थी, क्योंकि मुझे यकीन था कि विनोद का लंड अब पैंट में तड़प रहा होगा। मैंने शॉवर खोला, और गर्म पानी मेरे जिस्म पर बहने लगा। पानी की बूँदें मेरी चुचियों से होती हुई मेरी चूत तक जा रही थीं। मैंने कभी अपनी चुचियों को मसला, कभी चूत को सहलाया, जैसे मैं साफ़ कर रही हूँ, लेकिन मेरा इरादा था विनोद को दीवाना करना।

नहाने के बाद मैंने तौलिया लिया और जानबूझकर छेद के पास खड़ी होकर अपनी चूत को सामने किया। मेरी गुलाबी चूत और कड़क चुचियाँ उसे साफ़ दिख रही होंगी। फिर मैंने एक टाइट टॉप और हल्का पजामा पहना, जिसमें मेरे उभार साफ़ झलक रहे थे। बाथरूम से निकलते ही मैंने नाटक किया, “अरे, विनोद, तू कब आया?”
उसने हड़बड़ाते हुए कहा, “बस, अभी तो…” लेकिन उसका लंड पैंट में उफन रहा था, और उसका झूठ पकड़ा गया।

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मैंने उसे छेड़ा, “क्या बात है, तेरा मुँह लाल क्यों है? कुछ देख लिया क्या?” मैं बालों में कंघी कर रही थी, और जानबूझकर उसके सामने झुककर बैठ गई। मेरा टॉप नीचे सरका, और मेरी चुचियाँ गले से झाँकने लगीं। उसकी नजरें मेरे उभारों पर जम गईं। मैंने तिरछी नजरों से देखा और चोट की, “विनोद, अंदर क्या झाँक रहा है, बता ना?”
वो शरम से लाल हो गया, “नेहा… वो… सॉरी…”
मैंने हँसते हुए कहा, “सॉरी? चोरी पकड़ी गई, और अब सॉरी?”

मैंने देखा उसने अपने लंड के उभार को छिपाने की कोशिश की। मैंने फिर छेड़ा, “अरे, छिपा क्यों रहा है? जो है, वो तो दिखेगा ही!” विनोद समझ गया कि मैं उसे ललकार रही हूँ। वो मेरे पास आया, मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोला, “नेहा, तू भी तो अपने उभार दिखा, बस एक बार…”
मैंने नखरे किए, “अरे, मैं तो मज़ाक कर रही थी। तू झाँक रहा था, इसलिए छेड़ा।” लेकिन विनोद अब रुकने वाला नहीं था। उसने मेरे गालों को चूम लिया। मैंने शरमाने का नाटक किया, “विनोद, ये क्या कर रहा है?” लेकिन मेरे होंठों पर उसने अपने होंठ जकड़ लिए। उसका गर्म स्पर्श मेरे जिस्म में बिजली दौड़ा रहा था।

विनोद ने मेरी चुचियों को पकड़ा और ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा। उसकी उंगलियाँ मेरी नोकों को दबा रही थीं, और मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं। मैं सिहर रही थी, लेकिन उसे रोका नहीं। मैंने नाटक करते हुए उसे धकेला, “बेशर्म, बहुत हो गया!” लेकिन तभी मेरी कंघी नीचे गिर गई। मैं जानबूझकर झुकी, और मेरे पजामे में मेरे चूतड़ों की गोलाई उभर आई। विनोद बोल उठा, “नेहा, बस ऐसे ही रह!” मैं वैसे ही झुकी रही।

उसने मेरे चूतड़ों को सहलाना शुरू किया। उसकी उंगलियाँ मेरी दरार में घुसीं और मेरी गाँड के छेद को छूने लगीं। मेरे जिस्म में सनसनी दौड़ रही थी। फिर उसका हाथ मेरी चूत की तरफ़ बढ़ा। जैसे ही उसने मेरी चूत को दबाया, उसे मेरी गीलापन का अहसास हुआ। उसने मेरी चूत को ज़ोर से भींचा। मैंने उसका हाथ हटाया और सीधी खड़ी हो गई, “विनोद, ये क्या बेशर्मी है?” लेकिन मेरी मुस्कान बता रही थी कि मैं और चाहती हूँ।

विनोद हँसा, “नेहा, तुझे भी तो मज़ा आया, है ना?” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “बस, अब कॉलेज जा, बेशर्म!” हमने दोपहर का खाना खाया, और वो कॉलेज चला गया। मैंने कपड़े बदले—पैंटी और ब्रा उतार दी, सिर्फ़ एक हल्की स्कर्ट और टाइट टॉप पहना। मैंने अपनी गाँड में क्रीम लगाकर उसे चिकना किया और बिस्तर पर लेट गई। विनोद के बारे में सोचते-सोचते मुझे नींद आ गई।

अचानक मेरी नींद खुली। मेरी पीठ पर एक गर्म जिस्म का भार था। मैं समझ गई कि ये विनोद है, लेकिन आँखें नहीं खोलीं। उसका नंगा लंड मेरी गाँड पर रगड़ रहा था, और उसकी गर्म साँसें मेरी गर्दन पर महसूस हो रही थीं। मैंने हल्का-सा हिलकर अपनी टाँगें फैलाईं, ताकि उसका लंड मेरी गाँड के छेद पर टिक जाए। उसकी सुपारी मेरी गाँड को चिकना कर रही थी। “नेहा, तू बहुत मस्त है,” उसने धीरे से कहा।

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“आह… विनोद…” मैंने सिसकारी भरी। उसने हल्का-सा जोर लगाया, और उसकी सुपारी मेरी गाँड में घुस गई। मेरे मुँह से आह निकल गई। मैंने अपनी गाँड को ढीला छोड़ा और टाँगें पूरी खोल दीं। उसका लंड अब मेरी गाँड की गहराई में रगड़ खाता हुआ उतर रहा था। उसका मोटा, गर्म लंड मेरी गाँड की दीवारों को रगड़ रहा था, और हर धक्के के साथ मेरे जिस्म में आग लग रही थी। मैंने उसके हाथ पकड़कर अपनी चुचियों पर रखे। मैं कोहनियों पर उठी, ताकि वो मेरी चुचियों को मसल सके। उसका जिस्म मेरे ऊपर चिपका था, और उसका लंड मेरी गाँड में जड़ तक घुसा था।

वो मेरी गर्दन को चूम रहा था, मेरे कानों को हल्के से काट रहा था। उसकी जीभ मेरी गर्दन पर फिसल रही थी, और मैं मज़े से सिहर रही थी। “विनोद… और ज़ोर से…” मैंने सिसकारी भरी। उसने अपने हाथ बिस्तर पर रखे और मेरे जिस्म को मुक्त किया। अब उसने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। मैं बिस्तर पर चिपककर लेट गई, आँखें बंद करके गाँड चुदाई का मज़ा लेने लगी। उसकी स्पीड बढ़ने लगी, और उसका लंड मेरी गाँड में चिकनाई के साथ अंदर-बाहर हो रहा था। हर धक्के के साथ मेरी चुचियाँ हिल रही थीं, और मेरी चूत गीली होकर पानी छोड़ रही थी।

“नेहा… आह… क्या मज़ा है…” उसने कहा।
“हाँ… विनोद… सी… और तेज़…” मैं सिसकारियाँ भर रही थी। मेरे जिस्म में वासना की लहरें उठ रही थीं। मुझे ऐसा लग रहा था कि वो मेरे हर अंग को मसल दे, मेरी सारी ताकत निचोड़ ले। उसने मेरी चुचियों को फिर से पकड़ा और उनकी नोकों को ज़ोर-ज़ोर से मसला। मेरे मुँह से चीख निकल गई, “विनोद… हाय… मसल दे इन्हें…” उसका लंड मेरी गाँड में इतने स्मूथ था कि लग रहा था जैसे वो मेरे जिस्म का हिस्सा बन गया हो।

“नेहा… मैं गया… निकल रहा है…” उसने कहा, और उसके लंड ने मेरी गाँड में गर्म वीर्य की पिचकारी छोड़ दी। उसका लंड फूलता-पिचकता सा लग रहा था, और हर पिचकारी के साथ मेरी गाँड गर्म हो रही थी। वो मेरे ऊपर लेट गया, और उसका लंड धीरे-धीरे सिकुड़कर मेरी गाँड से बाहर आ गया। मैं उसी तरह उलटी लेटी रही, मेरी गाँड से उसका वीर्य टपक रहा था।

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मैंने आँखें खोलीं और गहरी साँस ली। मैं बिस्तर से उतरी, तौलिये से अपनी गाँड साफ़ की, फिर विनोद का लंड भी पोंछा। अब मैं उसके ऊपर चढ़कर लेट गई। उसने मुस्कुराते हुए मुझे देखा। मैंने उसके होंठों को चूमना शुरू किया, और एक हाथ से उसका मुरझाया लंड पकड़कर हिलाने लगी। मैंने उसकी गोटियों को हल्के से मसला, और उसका लंड फिर से तन गया। मैंने अपनी टाँगें फैलाईं, और उसका लंड मेरी चूत के पास रगड़ने लगा। मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में जकड़ा, और मेरी जीभ उसके मुँह में घुस गई।

अचानक उसका लंड मेरी चूत में घुस गया। मेरे जिस्म में आनंद की तीखी लहर दौड़ पड़ी। “विनोद… आह… सी…” मैं सिसकारियाँ भरने लगी। उसने मुझे ज़ोर से जकड़ा और धक्के मारने शुरू किए। मेरी चूत पहले से ही गाँड चुदाई की उत्तेजना से गीली थी। उसका मोटा लंड मेरी चूत की दीवारों को रगड़ रहा था, और हर धक्के के साथ मेरी चूत और टाइट हो रही थी। मैंने उसके हाथ अपनी चुचियों पर रखे। उसने मेरी चुचियों को मसलना शुरू किया, और जैसे ही उसने मेरी नोकों को खींचा, मेरे मुँह से चीख निकल गई। “जोर से… मसल दे… विनोद…” मैं चिल्लाई।

मेरे धक्के तेज़ हो गए। मैं चरम पर पहुँच रही थी। “विनोद… हाय… मैं गई… आह…” मेरी चूत ने लहरें छोड़ीं, और मैं झड़ गई। मैंने तुरंत उसका लंड चूत से निकाला और उसे हाथ में लेकर ज़ोर-ज़ोर से मुठ मारने लगी। उसका जिस्म अकड़ गया, और उसके लंड ने फिर से पिचकारी छोड़ी। मैंने उसका वीर्य उसके लंड और चूतड़ों पर मल दिया। वो थककर आँखें बंद करके लेट गया। मैं बाथरूम में नहाने चली गई।

जब मैं बाहर आई, विनोद ने चादर बदल दी थी और कपड़े पहन रहा था। उसने कहा, “नेहा, तू आराम कर, मैं चाय बनाकर लाता हूँ।” मैंने घड़ी देखी—शाम के 4 बज रहे थे। मैं बिस्तर पर लेट गई और गहरी नींद में सो गई। मेरे जिस्म में अब एक अजीब-सी तृप्ति थी, और मैं जानती थी कि ये एकांत अब और भी रंगीन होने वाला है।

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