हेलो भाईलोग, मैं हूँ शालिनी, और सच कहूँ तो ये बात बताते हुए शरम तो आ रही है, पर क्या करूँ, मेरे जिस्म में लंड का चस्का ऐसा लगा कि अब ये मेरी रग-रग में बस्ता है। जैसे ही मैं जवान हुई, बाली उमर में इस बेदर्द जमाने ने मुझे लंड की ऐसी लत लगाई कि मेरी कच्ची कली को फूल बनाते देर न लगी। मेरे जिस्म के हर छेद में कुछ न कुछ घुसा ही रहा। हद तो तब हो गई, जब मेरे अपने रिश्तेदार, जो मेरे करीबी थे—फूफाजी, मौसाजी, मामाजी, जीजाजी—सबने मेरे हुस्न का रसपान किया। और सबसे बड़ी बात, मेरे सगे भाइयों ने भी मुझे नहीं छोड़ा।
लंड का चस्का बुरी चीज़ है, एक बार लग जाए तो खत्म होने का नाम नहीं लेता। और अगर खत्म न हो, तो ये जानलेवा भी बन जाता है। मैंने सोचा था कि शादी के बाद मेरे पति के साथ हर रात की चुदाई मेरे इस प्यासे जिस्म को शांत कर देगी। मुझे अब हर किसी के लंड की तलाश में नहीं भटकना पड़ेगा। लेकिन अफसोस, सुहागरात को ही मेरे मियाँ की पोल खुल गई। वो तो एकदम बेकार और कमजोर निकले। न अनुभव, न ताकत, और ऊपर से उनका मरियल सा लंड, जो बस दो पल में ढेर हो गया। किस्मत भी कमाल की होती है, जिसे पतुरिया बनाना हो, उसे बनाकर ही छोड़ती है। मैंने देखा कि मेरी तकदीर में कई लंडों की तलाश से छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं है।
आखिरकार, शादी के एक हफ्ते बाद मेरे पति, जो एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे, मुंबई चले गए। मैंने अपनी किस्मत का रोना छोड़कर घर के कामों में मन लगाने की कोशिश की, लेकिन मेरा दिल और जिस्म बार-बार मेरे विधुर भैंसुर अजय जी की ओर खिंचने लगा। अजय जी हट्टे-कट्टे, गबरू जवान, 40 साल के मर्द थे, जिनका जिस्म कसरत से तराशा हुआ था। उनकी बीवी के गुजर जाने के बाद उन्होंने दूसरी शादी नहीं की थी। वो अकेले अपने कमरे में किताबें पढ़ते, लिखते, और कसरत करते। उनका चमकता हुआ कसरती बदन, लंगोट में कसा हुआ बड़ा सा लंड, जो कभी-कभी उभरकर दिख जाता—मैं चुपके-चुपके उसे देख लेती थी। बस, मेरा मन ललच जाता, और मेरी चूत में आग सी लग जाती।
तकदीर का रोना छोड़कर मैंने अजय जी को फंसाने की ठान ली। घर में सिर्फ बूढ़े सास-ससुर, अजय जी, और मैं थी। सास-ससुर को खाने-पीने और घर की छोटी-मोटी जरूरतों से मतलब था। खरीदारी और सामान लाने का काम अजय जी करते, और सामान लाकर घर में रख देते। मैं उनसे बात नहीं करती थी, क्योंकि हमारे यहाँ भैंसुर की छाया भी पाप मानी जाती थी। लेकिन मेरे दिमाग में जो साजिश चल रही थी, वो मुझे जल्द ही अजय जी के बिस्तर तक ले जाने वाली थी।
एक रात, जब सास-ससुर सो गए, मैं आंगन में उनके कमरे के बाहर बैठ गई और पेट पकड़कर कराहने लगी—आह्ह… आह्ह… आह्ह… ये मेरा नाटक था। अजय जी कमरे से बाहर निकले और घबराते हुए बोले, “शालिनी, क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?”
मैंने दर्द से कराहते हुए कहा, “पेट में बहुत दर्द हो रहा है, भैया जी।”
अजय जी और घबरा गए। बोले, “इतनी रात को तो कोई साधन भी नहीं मिलेगा। तुम कमरे में जाकर आराम करो, सुबह देखते हैं।” मैंने उठने की कोशिश की, लेकिन जानबूझकर गिर पड़ी। अजय जी ने अपने मजबूत, बलिष्ठ हाथों से मुझे उठाया और मेरे कमरे में ले गए। मुझे खाट पर लिटाकर वो मेरा माथा सहलाने लगे। मैंने जानबूझकर अपना पल्लू नहीं संभाला था। मेरा ब्लाउज पहले से दो बटन खुला था, और नीचे मैंने ब्रा नहीं पहनी थी। मुझे पता था कि अजय जी के अंदर का मर्द अब जागने वाला है।
अजय जी ने मुझे झकझोरा, और मेरे चूचे हिलने लगे। हिलते-हिलते वो ब्लाउज से बाहर निकल आए। मैं तो जनम-जनम की चुदवासी थी, मेरे जिस्म में लंड की प्यास हमेशा तड़पती थी। मेरे चूचे पहले से ही सख्त हो चुके थे, और मेरी चूत में गीलापन छाने लगा था। मैंने अपनी साँसें तेज कीं और अचानक घबराते हुए बोली, “भैया जी, सीने में दर्द हो रहा है!” और अपनी गर्दन लुढ़का ली। अजय जी अब फंस चुके थे। उन्होंने डरते-डरते मेरे चूचों को छुआ। उनके गर्म, मजबूत हाथों की छुअन से मेरे जिस्म में सिहरन दौड़ गई।
उन्होंने मेरे चूचों को हल्के से पकड़ा और मेरे दिल की धड़कन सुनने के लिए अपने कान मेरे सीने के पास लाए। मैंने उनका सिर पकड़ लिया और घबराते हुए बोली, “भैया जी, बहुत धड़क रहा है। लगता है मेरा दिल बाहर निकल जाएगा। मुझे बचा लीजिए!” और उनके सिर को अपने चूचों के बीच दबा लिया। अजय जी अवाक रह गए। लेकिन मैं देख सकती थी कि उनके लंगोट में उनका लंड तनकर ऐंठ रहा था। वो मेरे चेहरे को देख रहे थे, शायद सोच रहे थे कि क्या मैं सचमुच बीमार हूँ या ये कोई और बात है। लेकिन मेरे नंगे चूचों के बीच उनका चेहरा दबा था, और उनकी साँसें गर्म हो रही थीं।
अजय जी ने अपने लंड को, जो अब लंगोट से बाहर निकलने को बेताब था, दबाने की कोशिश की। लेकिन वो मेरे दिल की धड़कन सुनते रहे। धड़कन तो तेज थी ही, पर वो बीमारी की वजह से नहीं, मेरी चुदास की वजह से थी। अजय जी की हालत अब बेकाबू होने लगी थी। उन्होंने अपनी गर्दन मेरे चूचों पर और दबाई और अपना हाथ मेरे पेट पर ले गए। मेरा पेट चिकना, मुलायम, जैसे मखमल। उनकी उंगलियाँ मेरे पेट पर फिसलने लगीं और नाभि के पास पहुँच गईं। वो बोले, “शालिनी, क्या यहाँ भी दर्द है?”
मैंने उनके हाथ को पकड़ा और अपने पेट पर सहलाने लगी। मेरी चुदास अब चरम पर थी, लेकिन मैं चाहती थी कि पहल वो करें, ताकि मेरी इज्जत उनकी नजरों में बनी रहे। मैंने उनकी उंगलियाँ पकड़कर अपनी नाभि के पास ले गई और बोली, “हाँ, भैया जी, यहाँ बहुत दर्द है।” फिर मैंने आँखें बंद कर लीं, जैसे मुझे बहुत शरम आ रही हो। मैं तो नाटक की उस्ताद थी, और मेरे ख्वाबों में बस उनका मोटा लंड नाच रहा था।
अजय जी की उंगलियाँ मेरी नाभि में फँस गईं। वो उसे सहलाने लगे, और उनके चेहरे पर हवस का रंग चढ़ने लगा। शायद उन्हें अपनी बीवी याद आई, लेकिन मेरे जैसा हुस्न उनकी बीवी में कहाँ था। मेरी छरहरी काया में कामुकता का तूफान मच रहा था। मैंने उनकी उंगलियाँ पकड़ीं और धीरे से अपने पेटीकोट के नाड़े के नीचे सरका दीं। मैं बोली, “लगता है अपेंडिक्स का दर्द है, नीचे की तरफ हो रहा है। जरा देखिए ना, भैया जी!”
मैंने अपने पैर फेंकने शुरू किए, जैसे सचमुच दर्द हो रहा हो। अजय जी ने मेरे पैर पकड़े और मेरा पेटीकोट का नाड़ा ढीला कर दिया। उनकी उंगलियाँ मेरी चूत की तरफ सरकने लगीं। अब वो मारे उत्तेजना के काँप रहे थे। उनकी उंगलियाँ मेरी घनी झांटों में फँस गईं, जो पहले से ही मेरी चुदास के रस से भीगी हुई थीं। अजय जी की बुद्धि भ्रष्ट हो गई। पता नहीं उन्हें क्या हुआ, उन्होंने मेरा पेटीकोट खींचकर उतार दिया, साड़ी नीचे सरका दी, और अपनी मूँछों वाला मुँह मेरी चूत पर रख दिया।
वो मेरी चूत को ऐसे चाटने लगे, जैसे कोई भूखा शेर मांस पर टूट पड़ा हो। उनकी मूँछें मेरी चूत की झांटों में रगड़ रही थीं, और उनकी जीभ मेरे रस को चूस रही थी। मैं हल्का सा विरोध करती हुई बुदबुदाई, “भैया जी, ये क्या कर रहे हैं? हाय, मैं मर जाऊँ! मुझे दर्द हो रहा है, और आपको ये सब सूझ रहा है!” लेकिन अजय जी के सिर पर अब हवस का भूत सवार था। वो बोले, “बस, शालिनी, पंद्रह मिनट की बात है। रुक जा, कल सुबह तुझे शहर के अस्पताल ले चलूँगा।”
मैं तो यही चाहती थी, लेकिन विरोध का नाटक करना जरूरी था, वरना मेरी इज्जत कम हो जाती। मैं घड़ियाली आँसू बहाते हुए बोली, “प्लीज, भैया जी, मुझे छोड़ दीजिए। मेरे पति का क्या होगा?” लेकिन मर्द का लंड जब तन जाता है, तो वो कहाँ किसी की सुनता है। अजय जी ने अपनी धोती उतारी और अपना मोटा, लंबा लंड बाहर निकाला। उसका सुपारा चमक रहा था, और वो मेरी गीली चूत पर रगड़ने लगा। मैं तो पहले से ही गर्म थी, और अजय जी तो इतने सालों बाद जवान चूत पाकर पागल हो चुके थे।
उन्होंने अपने लंड पर थूक लगाया और मेरी चूत के मुँह पर सेट किया। मेरी पतली कमर को अपनी मजबूत पकड़ में लिया और अपना मुँह मेरे अधखुले ब्लाउज पर ले गए। उनकी कड़ी दाढ़ी और मूँछें मेरे चूचों पर चुभ रही थीं, और वो मेरे निप्पलों को चूसने लगे। मैं अब पूरी तरह से उनकी थी। मेरे पैरों ने उनकी कमर को जकड़ लिया, और मैंने अपनी चूत को उनके लंड के सामने और खोल दिया।
अजय जी ने एक जोरदार धक्का मारा। फच-फच की आवाज़ के साथ उनका मोटा लंड मेरी चूत में समा गया। मैं सिसकारियाँ लेने लगी, “आह्ह… भैया जी… हाय… धीरे…” लेकिन अजय जी को अब कोई रोक नहीं सकता था। वो मेरे चूचों को मसलते हुए, मेरी चूत में गहरे धक्के मारने लगे। हर धक्के के साथ उनका लंड मेरी चूत की गहराइयों को छू रहा था। मेरी साँसें तेज हो रही थीं, और मेरा जिस्म उनके नीचे तड़प रहा था।
मैंने अपने निप्पलों को उनके मुँह में ठूँस दिया। वो बारी-बारी से मेरे चूचों को चूस रहे थे, और उनकी मूँछें मेरे निप्पलों को रगड़ रही थीं। मैं पूरी तरह बिंदास हो चुकी थी। सुहागरात की सारी कसर अब निकालनी थी। अजय जी का लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था। मैंने अपनी कमर उठाकर उनके धक्कों का जवाब देना शुरू किया। हम दोनों के जिस्म पसीने से तरबतर थे, और कमरे में सिर्फ हमारी सिसकारियों और फच-फच की आवाज़ गूँज रही थी।
अजय जी ने मेरे चूचों को और जोर से मसला, और उनकी स्पीड बढ़ गई। मैं आनंद के सागर में डूब रही थी। मेरी चूत में एक अजीब सी सनसनी होने लगी, जैसे कोई तूफान आने वाला हो। अजय जी का लंड मेरी चूत की दीवारों को रगड़ रहा था, और हर धक्के के साथ मेरा जिस्म काँप रहा था। आधे घंटे की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद, मेरी चूत ने जवाब दे दिया। एक जोरदार स्खलन के साथ मेरे जिस्म से गर्म, पारदर्शी रस बहने लगा। मैंने पहली बार ऐसा चरम सुख महसूस किया था। पहले कई लंडों से चुदी थी, लेकिन ये मोटा, ताकतवर लंड ही था, जो मुझे इस आनंद तक ले गया।
लेकिन अजय जी अभी रुके नहीं थे। वो मेरे ऊपर सवार थे, और उनका लंड मेरी चूत में अब भी धक्के मार रहा था। मैंने उनकी कमर को और कस लिया और बोली, “भैया जी, और जोर से… मुझे और चोदो!” अजय जी ने मेरे होंठों को अपने होंठों से चूसना शुरू किया। उनकी जीभ मेरे मुँह में थी, और उनका लंड मेरी चूत में। वो मेरे चूचों को एक हाथ से मसल रहे थे, और दूसरे हाथ से मेरी कमर को पकड़कर मुझे अपनी ओर खींच रहे थे।
कुछ देर बाद, अजय जी ने मुझे घोड़ी बनने को कहा। मैं तुरंत पलट गई और अपनी गोल, मुलायम गांड उनके सामने कर दी। अजय जी ने मेरी गांड पर एक जोरदार चपत मारी, और मैं सिसकारी, “आह्ह… भैया जी!” उन्होंने मेरी गांड को दोनों हाथों से पकड़ा और अपने लंड को मेरी चूत में पीछे से पेल दिया। अब वो पीछे से मेरी चुदाई करने लगे। उनका लंड मेरी चूत की गहराइयों को और जोर से छू रहा था। मैं अपनी गांड को पीछे धकेल रही थी, ताकि उनका लंड और गहरा जाए।
अजय जी ने मेरे बाल पकड़े और मुझे खींचकर मेरे होंठों को चूसने लगे। उनकी मूँछें मेरे गालों पर रगड़ रही थीं, और उनका लंड मेरी चूत को फाड़ रहा था। मैं सिसकार रही थी, “आह्ह… भैया जी… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दो!” अजय जी ने अपनी स्पीड और बढ़ा दी। कमरे में हमारी चुदाई की आवाज़ें गूँज रही थीं—फच-फच… थप-थप… आह्ह… ओह्ह…
लगभग एक घंटे की इस धकापेल चुदाई के बाद, अजय जी का लंड मेरी चूत में और सख्त होने लगा। मैं समझ गई कि अब वो झड़ने वाले हैं। मैंने कहा, “भैया जी, मेरी चूत में ही झड़ जाओ!” अजय जी ने कुछ और तेज धक्के मारे, और फिर एक जोरदार सिसकारी के साथ उनका गर्म वीर्य मेरी चूत में छूट गया। मैं भी उसी वक्त दूसरी बार झड़ गई। हम दोनों के जिस्म एक-दूसरे से चिपक गए, और हम पसीने से भीगे हुए खाट पर गिर पड़े।
कुछ देर तक हम ऐसे ही लेटे रहे, एक-दूसरे की बाँहों में। अजय जी मेरे चूचों को सहला रहे थे, और मैं उनके सीने पर सिर रखकर उनकी साँसें महसूस कर रही थी। मैंने हँसते हुए कहा, “भैया जी, आपने तो मेरी सारी प्यास बुझा दी। अब मैं आपकी गुलाम हूँ।”
अजय जी हँसे और बोले, “शालिनी, तुमने तो मुझे फिर से जवान बना दिया। लेकिन ये बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिए।”
मैंने उनके होंठों पर एक चुम्मा दिया और कहा, “चिंता मत करो, भैया जी। ये हमारा राज रहेगा।”
उस रात के बाद, मैं और अजय जी जब भी मौका मिलता, चुदाई का खेल खेलने लगे। मेरी चूत को अब वो मोटा लंड मिल गया था, जो मेरी प्यास बुझा सकता था। सास-ससुर को कुछ पता नहीं चला, और मैं अपने भैंसुर के साथ हर रात नया हनीमून मनाने लगी। मेरे पति की याद अब मुझे बिल्कुल नहीं आती थी।
दोस्तो, ये मेरी सच्ची कहानी थी। आपको कैसी लगी, जरूर बताना।
Hi ji