Sasur ne Bahu ki seal todi – कहानी का पिछला भाग: बहकती बहू-17
मदनलाल बहू के ऊपर पड़ा अपनी थकान उतार रहा था। नीचे दबी काम्या ने उसे बाहों में जकड़ रखा था, टाँगें लपेटकर कैंची मार दी थी। तृप्त आँखों से छत की ओर देख रही थी। आज जो सुख पाया, उसकी कल्पना भी नहीं थी। ये सुख मन-बुद्धि से परे, जीभ से वर्णन न करने योग्य था। विश्वास नहीं हो रहा था कि ये मानवीय सुख है। उसे आश्चर्य था कि उसका शरीर इतना आनंद दे सकता है। इस परमसुख ने उसके मन की कई शंकाओं का समाधान कर दिया। पहले जब सुनती थी कि फलाँ लड़की प्रेमी संग भाग गई, तो सोचती थी, कोई लड़की माँ-बाप, परिवार छोड़ कैसे भाग सकती है? आज जवाब मिल गया। हर भागने वाली लड़की जरूर पहले अपने आशिक से चुद चुकी होती होगी। चुदाई की तड़प, वो खुमार उसे मजबूर करता होगा। इस सुख को कौन त्यागेगा? अखबार में पढ़ती थी—तीन बच्चों की माँ प्रेमी संग भागी, सास दामाद संग भागी। ऐसी खबरें दिमाग चकरा देती थीं। आज हर सवाल का जवाब मिला। ऐसी औरतों का पति सुनील-सा कमजोर होता होगा। जब बाबूजी-सा असली मर्द मिलता, तो लोक-लाज छोड़ जवानी का मजा लेने चल देती होंगी।
काम्या धीरे-धीरे मदनलाल की पीठ सहला रही थी, बीच-बीच में नितंबों पर भी हाथ फेर देती। मदनलाल के लिए ये नया नहीं था। उससे चुदने वाली हर औरत को ऐसा ही प्यार आता था। लेकिन बहूरानी दूसरों-सी टाइमपास नहीं थी। वो कुलवधू थी, वंश बढ़ाने वाली। काम्या सोच रही थी, कामानंद ब्रह्मानंद सहोदर है। पति इसे प्रदान करता है, शायद इसलिए शास्त्रों ने पति को भगवान का दर्जा दिया। इस सुख को पाकर हर पत्नी पति की दासी बन जाती। मदनलाल की ताकत लौट आई थी। वो बहू की मांसल जाँघों, नितंबों पर हाथ फेरने लगा। एक चूची मुँह में ली, चूसने लगा। काम्या को चूची चुसाई आनंददायक लगी। मदनलाल का मूसल अभी चूत में धंसा था। वो वीर्य बाहर न जाए, इसलिए अंदर रखना चाहता था।
काम्या बाबूजी के बोझ तले असहज हुई, कसमसाई। मदनलाल समझ गया, कोमल काया उसका बोझ सह रही थी। मूसल बाहर निकाला। रगड़ से काम्या तड़प उठी। मदनलाल ने देखा, लंड पर खून के निशान। काम्या ने भी देखा, चूत पर भी खून। उत्सुकता में पूछा,
काम्या: बाबूजी, ये खून कैसे?
मदनलाल: जानू, आज तुम्हारी सील टूटी, तो खून निकला।
काम्या ने कहा, “सुनील ने पहली बार किया, तब भी निकला था।” मदनलाल ने मौका भुनाया,
मदनलाल: सुनील का छोटा था, थोड़ी जगह बनाई। पूरी सील नहीं टूटी। आज असली मर्दाना लंड गया, तो धज्जियाँ उड़ीं। आज तुम कली से फूल, लड़की से औरत बनी। ये खून औरत बनने का ऐलान है।
काम्या शरमा गई। मदनलाल ने बेड पर पड़ी काम्या की पैंटी उठाई, लंड पोंछने लगा। काम्या देखती रही। मन था कि खुद साफ करे—अब इस बदमाश की देखभाल उसकी जिम्मेदारी थी। जितना हेल्दी रहेगा, उतनी अच्छी सेवा करेगा। पर शर्म ने रोका। छेड़ते हुए बोली,
काम्या: छी! हमारी पैंटी से क्यों पोंछ रहे? अपने कपड़ों से पोंछिए।
मदनलाल: डार्लिंग, तुम्हें पता है, तुम्हारे रूम में चड्डी नहीं पहनता।
काम्या: तो पजामे से।
मदनलाल: सुबह शांति पहले उठती है। खून देखेगी, तो क्या जवाब दूँ? तुम कह देना, मम्मी, हमारा है, बाबूजी को मत कहिए।
काम्या: हम क्यों कहेंगे? आपकी बीवी, आप जानें।
मदनलाल ने पैंटी नीचे फेंक दी। काम्या उठने लगी, तो दर्द से सिसकारी निकली, “आह, उई माँ!”
मदनलाल: क्या हुआ, बहू?
काम्या: बाबूजी, वहाँ बहुत दर्द है।
मदनलाल जानता था, पहली बार चुदने वाली लड़कियों का यही हाल। दूसरों की हालत देख मजा आता था, पर बहू पर दुख हुआ। फिर सोचा, ये दर्द न सहती, तो औरत होने का लुत्फ न उठाती।
मदनलाल: धीरे उठो। शुरू में दर्द होता है। दो-चार दिन बाद उछल-उछलकर मजा लोगी, बोलोगी, बाबूजी, और जोर से पेलिए, फाड़ डालिए।
काम्या: धत! कुछ भी बोलते हैं। ऐसी वैसी लड़की समझा है? ऐसा नहीं बोलेंगे।
मदनलाल: डार्लिंग, हब्बी से बोलने में बुरा क्या? सेक्स में खुलकर बोलो, मजा दोगुना।
काम्या: रहने दीजिए, मजा-वजा नहीं चाहिए।
मदनलाल मन-ही-मन हँसा, “इंडियन औरतें ऐसी ही। लंड अंदर रगड़ता है, तो अनाप-शनाप बकती हैं—हाय राजा, बजा दो बाजा, फाड़ डालो। प्रोग्राम खत्म, तो शरीफ, जैसे लंड देखा ही नहीं।” काम्या खिसककर बेड के किनारे आई, खड़ी होने लगी। दर्द से लड़खड़ाई, गिरने को हुई। मदनलाल ने मजबूत बाहों में थाम लिया। दोनों नग्न, एक-दूसरे से चिपके। मदनलाल ने काम्या को खींचा, तपते होंठ रसभरे होंठों से मिलाए। काम्या लता-सी लिपट गई, मदनलाल के होंठ चूसने लगी। मदनलाल ने हाथ गाण्ड पर रखे, खेलने लगा। उसकी कातिल नितंबों से दिल कभी नहीं भरता था। काम्या की चूचियाँ उसके कठोर सीने में पिचक गईं। दोनों रोमांस में डूबे। मदनलाल का अंग शांत था। सीनियर सिटिजन था, पंद्रह मिनट में कठोरता मुश्किल।
मदनलाल: फिर से करने का दिल?
काम्या: अभी दर्द है, पर आपका दिल है, तो कर लीजिए।
मदनलाल ने छोटू काम्या के हाथ में दिया, “आज रहने दो। इस दोस्त की अभ्यस्त हो जाओ, फिर दो-तीन बार करेंगे। अभी किया, तो सुबह दर्द होगा। दो-चार दिन बाद रातभर यहीं रहेंगे।”
काम्या: जान, जाएँगे, तो जाने नहीं देंगे। मम्मी को क्या बोलेंगे, सारी रात कहाँ थे?
दोनों हँसे। मदनलाल अपने कमरे चला गया। काम्या बिस्तर पर पसरी। अचानक उसे कुछ याद आया। बाबूजी के वीर्य से सनी पैंटी उठाई, चूमी, पहन ली। रात की चुदाई का असर ऐसा कि घोड़े बेचकर सो गई। सुबह नियत समय तक नींद न खुली।
शांति ने देखा, बहू नहीं उठी। दरवाजे से आवाज दी, “क्या हुआ, बहू? उठी क्यों नहीं? बीटुआ नहीं आया, तो ये हाल। आएगा, तो दिनभर सोओगी?” काम्या हड़बड़ाकर उठी। कमर, टाँगों के जोड़ में भयंकर दर्द, पैर लड़खड़ा रहे थे। जल्दी से नहाने के कपड़े, तौलिया समेटा, बाथरूम की ओर चली। शांति किचन में थी, मदनलाल बरामदे में दाँत साफ कर रहा था। शांति ने देखा, बहू लंगड़ाकर चल रही, चेहरे पर दर्द की लकीर। उसकी कमर की लचक, ठसक देख शांति के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान आई।
शांति: क्या हुआ, बहू? लंगड़ा क्यों रही? सब ठीक है?
मदनलाल और काम्या को साँप सूँघ गया। मदनलाल ने बात संभाली, “क्या हुआ, बहू? बुखार है?”
शांति: बुखार में कोई लंगड़ाता है? कुछ और बात है।
काम्या संभली, बहाना बनाया, “माँजी, कल रात बिस्तर से गिर गए, कमर में धमक लगी।”
शांति: इतनी-सी धमक से लंगड़ाते हैं? तुम्हारी उम्र में हम गाँव में थे, रोज धमक लगती, कभी लंगड़ाए नहीं। क्यों, सुनील के बाबूजी, हम लंगड़ाए क्या?
मदनलाल संभला, “भागवान, तुम्हारे जमाने की बात और। तुम ताजा दूध-घी खाकर बड़ी हुई। बहू पैकेट का दूध पीकर आई, तुम्हारी बराबरी कैसे करे?”
शांति: ठीक है। जाओ, बहू, नहा-धो लो। तबीयत खराब है, तो आराम करो, काम हम कर लेंगे। फिर रहस्यमयी मुस्कान।
शांति के भाव देख ससुर-बहू सचेत हो गए। दिनभर एक-दूसरे से दूर रहे। मदनलाल ने चुपके से काम्या को पेनकिलर दी, ताकि आराम मिले। लेकिन शाम गहराई, तो उमंगें जागीं। सालों का भूखा छप्पन भोग पाए, तो संयम बेमानी। रात का अंधेरा सब्र का इम्तिहान लेने लगा। दोनों बात नहीं कर रहे थे, पर नजरें मिलतीं, तो प्यास दिखती। कौन ज्यादा प्यासा, कहना मुश्किल। काम्या जवान, गर्मी और अनबुझी प्यास थी। मदनलाल के बुढ़ापे में लॉटरी लगी थी। बुढ़ापे का प्यार खतरनाक होता है।
पूर्णिमा का चाँद निकला, मदनलाल के लिए संयम मुश्किल। एक चाँद रोमांटिक बनाता, यहाँ दो-दो चाँद। रात और एकांत भय और कामुकता जगाते हैं। भरी दोपहरी में सुनसान जगह डराती है। रात का सन्नाटा, हसीना पास हो, तो माहौल कामुक। एकांत शृंगार रस की पहली शर्त, अंधेरा दुस्साहस देता। माहौल ससुर-बहू के सिर चढ़कर बोलने लगा। सब टीवी देख रहे थे, पर काम्या और मदनलाल की नजरें एक-दूसरे पर। बहू देखती, मदनलाल हथियार मसलकर “मन की बात” बता देता। काम्या नशीली नजरों से देखती। रात दस बजे काम्या रूम में जाने लगी। जाते वक्त मदनलाल को कामुक, प्यासी नजरों से देखा, मानो कह रही, “बाबूजी, रात को जरूर आना।” मदनलाल ने इशारे में कहा, “चोदे बिना नींद कहाँ?”
शांति दवाई खाकर सो गई। मदनलाल देर तक लेटा, शांति के खर्राटों का इंतजार किया। खर्राटे शुरू, वो प्राणप्यारी दुल्हनिया के रूम की ओर चला। कमरे में कदम रखते ही प्राण हलक में। कल सुहागरात में सोलह शृंगार वाली काम्या आज लिंगरी में लेटी थी। कल से अलग, संगमरमर की मूर्ति-सी। मदनलाल आँखें फाड़े हुस्न निहारने लगा।
काम्या: क्यों जी, कैसी लग रही हूँ? पिछले बार आपके लाड़ले ये ड्रेस लाए थे।
मदनलाल क्या जवाब दे? ध्यान ड्रेस पर नहीं, बाकी जगह पर था। काम्या की मांसलता आदमी को सब भुला देती। मरते वक्त भी उसे नग्न देखना चाहेगा, नरक ही सही।
स्त्रियाँ पुरुषों की साइकोलॉजी नहीं समझतीं। उन्हें कपड़े, गहने, मेकअप से मतलब नहीं। कपड़ों के अंदर जो छुपा, वही चाहिए। पार्टी में सजी औरत से पंद्रह मिनट बात कर दो, दो दिन बाद पूछो, साड़ी का रंग क्या था? नब्बे पुरुष नहीं बता पाएँगे। औरत छह महीने बाद भी बता देगी—कौन-सी साड़ी, कौन-से गहने। औरत मेकअप में पौन घंटा लगाती, सोचती, सब सुंदरता देखेंगे। सड़क पर निकलती, लड़के बोलते, “वॉव, क्या गाण्ड!” मदनलाल भी पैंटी में फँसी गाण्ड घूर रहा था। काम्या समझ गई, बाबूजी की नजरें कहाँ। उसे पता था, गोलमटोल गाण्ड उनकी कमजोरी।
काम्या: बताया नहीं, इन कपड़ों में कैसी लग रही?
मदनलाल: जान, शब्द नहीं। गजब की सेक्सी। पर बिना कपड़ों के सबसे सुंदर।
काम्या: धत, बेशरम! मर्द चाहते हैं, औरतें कपड़े छोड़ दें, ताकि समय बचे।
मदनलाल: समय बचे, मतलब?
काम्या: सब मालूम है, ज्यादा बनिए मत।
मदनलाल समय खराब नहीं करना चाहता था। कल की चुदाई का सरूर सिर पर, शांति की शक्की नजरें डर रही थीं। जवाब की जगह लुंगी उतारी, बहू पर कूद पड़ा। काम्या भूखी-प्यासी थी। नागराज को डोलते देख लपककर मसलने लगी। पाँच मिनट में लिंगरी पलंग के नीचे पड़ी अपनी किस्मत रो रही थी। चूमाचाटी में काम्या की दर्दभरी सिसकारियाँ। मदनलाल समझ गया, बहू अभी दर्द में। सप्ताहभर ऐसा होगा। हनीपॉट पर नजर डाली, सूजन थी। मुँह नीचे किया, मुनिया मुँह में भरी। जवां चूत पर होंठ लगते ही काम्या में आग लगी। शोले चूत में विस्फोट करने लगे।
काम्या: आह, हनी, सक इट, लीक इट! गिव देम द ट्रीटमेंट दे डिजर्व! योर सन नेवर गिव्स अटेंशन टु माय पुसी! नाउ दिस पुसी इज योर एक्सक्लूसिव प्रॉपर्टी! जस्ट बैंग इट टु हेल! उई माँ, मर गई! व्हाट अ सुपर्ब पुसी लिकर यू आर! ड्राइव मी क्रेजी!
मदनलाल ने लपलपाती जीभ का कमाल दिखाया। चूत चुसाई में लौंडियाँ बेबस हो जाती थीं, बहूरानी तो नई थी। जीभ लपलपाई, काम्या मछली-सी मचली। लोहा गरम देख, कौआ मुँह में दबाया, उंगली चूत में डाल जी-स्पॉट पर हमला किया। दुधारी तलवार पर काम्या टूटी, कमर उछालकर झरने लगी। मदनलाल गट-गट मठा पीने लगा।
थोड़ा आराम कर, मदनलाल संतरों को चूसने लगा। संतरे काम्या की कमजोरी। मदनलाल चूसता, वो वासना में बेबस। दो मिनट बाद बोली,
काम्या: बाबूजी, प्लीज करिए! रहा नहीं जाता। मूसल डालिए, जी भर चोदिए।
मदनलाल: थोड़ा रुक, बूब्स का मजा ले लें।
काम्या: पहले कर लीजिए, फिर चूसते रहना।
मदनलाल: आज बेचैन हो?
काम्या: हाँ, जानू, इस सुख के लिए कितना इंतजार किया। आपको बेटे का हिस्सा भी देना है। उनकी कमी की रिकवरी आपसे करनी है। जल्दी आओ, खूब प्यार करो।
“जो हुकुम, रानी साहिबा,” कहकर मदनलाल ने टाँगें उठाईं, पोजीशन ली, एक झटके में पूरा लंड पेल दिया। काम्या की चीख निकली। चूत चुसाई से गीली थी, वरना खूनखच्चर हो जाता। दर्द से बड़बड़ाई,
काम्या: उई माँ, मर गई! क्या कर रहे? धीरे नहीं कर सकते? बेसबरे रहते हैं। कितना दर्द!
मदनलाल: सॉरी, तुम्हें नंगी देख सबर नहीं होता। ज्यादा दर्द है, तो निकाल दूँ?
काम्या: डाल दिया, तो रहने दो। प्लीज धीरे करो। सुपरफास्ट ट्रेन बन जाते हो। नीचे लड़की बिछी है, पटरी नहीं।
मदनलाल को गलती का अहसास हुआ। चुदाई में सबर रखता था, लड़कियों को तसल्ली से चोदता। लेकिन काम्या की जवानी दिमाग बंद कर देती। अब हल्के, लंबे स्ट्रोक शुरू किए। काम्या दुनिया से बेखबर, सिसकारियाँ गूँजने लगीं। बीच-बीच में थाप की आवाज। काम्या की गर्मी बढ़ी, कमर उछालने लगी। मदनलाल समझ गया, बहू झरने वाली है। काम्या का जिस्म कमान-सा ऐंठने लगा। सुशील थी, पर मूसल मंथन शुरू करता, तो नए शब्द निकलते।
काम्या: हाँ, जानू, ऐसे चोदिए! बहुत अच्छा! आप नंबर एक चोदू। क्यों तंग करते? और जोर से! होने वाला है! बीज डालिए! आह, माँ, मर गई!
काम्या झरने लगी। मदनलाल ने रफ्तार बढ़ाई, माल उड़ेला। दस मिनट लंड अंदर फँसाए रखा, वीर्य बाहर न जाए। फिर हटा, चित लेटा, काम्या का सिर कंधे पर रखा। दोनों सहला रहे थे। काम्या चौड़ा सीना मसल रही थी, मदनलाल खरबूजे। रोमांटिक दृश्य, ससुर-बहू नहीं, नवविवाहित हनीमून मना रहे थे। आधा घंटा बीता, मदनलाल लुंगी पहनने लगा। काम्या ने हाथ थाम लिया।
मदनलाल: क्या हुआ, जान? कुछ कहना है?
काम्या: थोड़ा रुकिए ना।
प्यासी नजरों से देखा। मदनलाल ने लाड़ से कहा, “क्या बात, आज बड़ी इमोशनल?”
काम्या: वो कल आ रहे हैं। फिर पंद्रह दिन मौका मिले न मिले। एक बार और करिए।
मदनलाल भावुक हो गया। विरह की बात से सीना भारी। बिस्तर पर बैठ गया। काम्या पीठ सहलाने लगी।
मदनलाल: इच्छा तो है, पर शांति की नींद न खुल जाए। जल्दी जाना चाहता था।
काम्या: तो जल्दी कर दीजिए।
मदनलाल: जानेमन, पच्चीस साल के नहीं, अट्ठावन के हैं। तुरंत खड़ा नहीं होगा। तुम्हें कुछ करना होगा।
काम्या: बोलिए, क्या करना है?
मदनलाल: इसे खड़ा करो। जितना दिल से खेलोगी, उतना जल्दी तैयार होगा।
काम्या ने लंड पकड़ा, मसलने लगी। मदनलाल लेट गया। काम्या के हाथों में लंड में जान आई, आकार बढ़ने लगा। कौतूहल से प्यार करती रही। पाँच मिनट में पप्पू ने सिर उठाया, पर कठोरता कम थी। मदनलाल ने कहा,
मदनलाल: थोड़ा ट्रीटमेंट माँग रहा। मुँह में लेकर स्टीम दो, जल्दी तैयार होगा।
काम्या: चालाकी समझ गए। चुसवाना चाहते हो। कहा था, प्रेग्नेंट होने तक मुँह में नहीं लेंगे।
मदनलाल: तुमने कहा, पानी नहीं पिएँगी। चूसने की बात नहीं।
काम्या: एक ही बात है। लंड जोर से मसका।
मदनलाल की सिसकारी निकली। “चूसो, पानी अंदर गिराएँगे। पता नहीं कब मौका मिले।” काम्या चूसना चाहती थी, पर चिढ़ाने को मना कर रही थी। “कब मौका मिलेगा” सुन तुरंत डेजर्ट मुँह में भरा। मदनलाल गनगनाया, सिसकारियाँ निकलीं। काम्या वाइल्ड हो गई, लंड निगलने लगी, बीच-बीच में दाँत गाढ़े। मदनलाल के लिए संभालना मुश्किल। पहले पानी पिला देता, अब खास जगह डालना था। काम्या को नीचे पटका, सवार हो गया। गोरी जाँघें चूमी, कंधों पर रखीं। कमर छह इंच उठी, दुकान बाहर निकली। कोबरा छेद में सरकाया, दो धक्कों में पूरा पेला। काम्या “आह, उई” करती रही। लंबे शॉट शुरू। काम्या का नशा बढ़ा, सिसकारियाँ, कभी चीख। चूत गीली थी, लंड सटासट अंदर। तैश में तगड़े झटके, थप-थप की आवाज। वीर्य की गंध। सेकंड राउंड चरम पर। दोनों स्टैमिना टेस्ट कर रहे थे। मदनलाल जानता था, सेकंड राउंड लंबा खींच सकता है, बहू का ऑर्गेज्म जल्दी होगा। काम्या गर्मी न संभाली, चीखकर झड़ी। मदनलाल लंबी रेस का घोड़ा, दौड़ता रहा।
बीच-बीच में स्ट्रोक रोक, अंगों से खेलता, ताकि देर तक टिके। काम्या को ये प्यार अच्छा लग रहा था। अचानक मदनलाल बोला,
मदनलाल: जानू, अब तुम करो।
काम्या: मतलब?
मदनलाल: ऊपर आओ, खुद चोदो।
काम्या: धत! ये मर्दों का काम।
मदनलाल: आजकल सब चलता है। वीडियो में देखा, लड़कियाँ ऊपर बैठकर एंजॉय करती हैं।
काम्या: किसने कहा एंजॉय करती हैं?
मदनलाल: वीडियो में दिखता है।
काम्या: वीडियो की छोड़ो, पैसे के लिए करती हैं। औरत मर्द के नीचे रहना पसंद करती है।
मदनलाल: मतलब?
काम्या: “Woman always like to feel being fucked by his man. She likes to lie under him and enjoy his efforts.”
मदनलाल: वॉव, ये सीक्रेट नहीं पता था।
काम्या: आप हमारा ख्याल रखते हैं, वजन हाथों में उठाते हैं। Please feel free during banging me.
मदनलाल: तुम पर वजन पड़ेगा, नाजुक हो।
काम्या: Don’t worry, I love your weight. I love being crushed under you.
मदनलाल ने पूरा वजन डाला, धकापेल शुरू। महासंग्राम छिड़ा। हर चोट पर काम्या की चीख, पर खुशी की। मदनलाल ने चुदाई का नजारा पेश किया, झड़ने से पहले काम्या को तीन बार झड़ाया। आधा घंटा बाहों में आराम किया। मदनलाल उठा, काम्या नंगी दरवाजे तक छोड़ने आई। मदनलाल ने चिटकनी खोली, काम्या लिपट गई, होंठ चूमने लगी। पाँच मिनट लिपलॉक।
मदनलाल: मन भर गया?
काम्या: आपका भरा? नहीं भरा, तो और कर लीजिए।
मदनलाल: जानेमन, 28 नहीं, 58 के हैं। दोबारा के लिए दो घंटे चाहिए।
काम्या: मम्मी पाँच बजे उठती हैं। दिल करे, तो चार बजे आ जाना, जल्दी कर चले जाना।
मदनलाल चुपचाप निकला, मन-ही-मन सोचा, “हे भगवान, इस प्यासी जवान लड़की के सामने टिकना इस उम्र में मुश्किल। इसे दिन-रात खूँटा चाहिए।”
कहानी का अगला भाग: बहकती बहू-19