बहकती बहू-3

Sasur Bahu Dirty Sex Kahani – कहानी का पिछला भाग: बहकती बहू-2

उस दिन के बाद काम्या ने मामा से दूरी बनानी शुरू कर दी। जब भी मामा शहर आते, वो किसी न किसी बहाने से अपनी सहेली मधु के घर चली जाती। मगर मामा की दीवानगी कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। उनकी आँखों में हर वक्त काम्या का चेहरा घूमता। वो अपनी भांजी को पाने के लिए नए-नए तरीके आजमाने लगे। जैसे ही काम्या की कॉलेज की पढ़ाई शुरू हुई, मामा ने अपने गाँव के लड़कों के रिश्ते भेजने शुरू कर दिए। काम्या समझ गई थी कि मामा का मकसद क्या है। वो जानती थी कि अगर उसकी शादी मामा के गाँव में हुई, तो वो अपनी उफनती जवानी को मामा की भूखी नजरों से नहीं बचा पाएगी। मामा का गाँव में अच्छा-खासा रसूख था। वो पैसे का लेन-देन करते थे और लोकल राजनीति में भी दखल रखते थे। चूंकि मामा सगे रिश्तेदार थे, वो काम्या के ससुराल में भी बेरोकटोक आ सकते थे। काम्या को डर था कि जिस दिन वो मामा के हाथ अकेले पड़ गई, वो अपनी मनमानी कर ही लेंगे। फिर शायद उसे बार-बार मामा के नीचे बिछना पड़े। इसलिए वो हर बार मामा के भेजे रिश्तों को ठुकरा देती। सुनील से शादी तय होने तक मामा करीब दस रिश्ते भेज चुके थे, मगर हर बार नाकाम रहे। आखिरकार, वो पूरी तरह हताश हो गए।

शादी से करीब पंद्रह दिन पहले मामा फिर काम्या के घर आए। काम्या ने मौका देखकर अपनी सहेली मधु के घर का रुख कर लिया। शाम को करीब तीन घंटे बाद उसके मोबाइल की घंटी बजी। स्क्रीन पर मामा का नंबर देखकर वो सहेली से थोड़ा दूर चली गई। मधु ने पूछा, “क्या हुआ?” तो काम्या ने आँख मारकर कहा, “बस, थोड़ा प्राइवेट कॉल है।” मधु ने सोचा शायद सुनील का फोन है। काम्या ने एकांत में जाकर फोन रिसीव किया।

काम्या: हेलो।
मामा: हाँ, कम्मो, हम बोल रहे हैं।
काम्या: हाँ, मामाजी, बोलिए।
मामा: अरे, कहाँ हो? हम कब से इंतजार कर रहे हैं। घर नहीं आओगी क्या?
काम्या: इंतजार क्यों कर रहे हो?
मामा: पगली, इतनी दूर से तुझे देखने तो आए हैं।
काम्या: हमें देखने क्यों?
मामा: तू तो जानती है, कम्मो। तुझे देखने के लिए ही हम बार-बार आते हैं।
काम्या: मामा, तुम पागल तो नहीं हो गए? मेरी शादी होने वाली है, और तुम्हें मजनूगिरी सूझ रही है!
मामा: अरे, अब शादी होने वाली है, जाने कब फिर तुझे देख पाएँ। प्लीज, एक बार तसल्ली से देखना चाहते हैं।
काम्या: देखकर क्या करोगे?
मामा: वो सब छोड़। जल्दी आ जा, हमें जाना भी है।
काम्या: ठीक है, आ रही हूँ। मगर कोई नौटंकी नहीं, वरना देखने को भी तरस जाओगे।

काम्या घर पहुँची तो मामा माँ के साथ बैठे थे। वो भी वहीं बैठ गई। मामा उसे दीवानों की तरह घूर रहे थे। उनकी आँखों में वही भूख थी, जो काम्या पहले भी देख चुकी थी। थोड़ी देर बाद माँ बोली, “तुम्हारे जाने का समय हो रहा है, मैं खाना बना देती हूँ,” और किचन चली गई। काम्या भी मौका देखकर उठी और अपने कमरे में चली गई। मगर कुछ ही देर में मामा का फोन फिर आया।

काम्या: अब क्या है?
मामा: अरे, आओ ना, थोड़ी देर हमारे सामने बैठो।
काम्या: इतनी देर तो बैठे थे।
मामा: उस वक्त तो मम्मी थीं, अच्छे से देख भी नहीं पाए। प्लीज, आ जा, जी भरकर देख लें।

काम्या को मामा का ये पागलपन हँसी का पात्र लगा। साथ ही, शादी तय होने के बाद वो खुद भी थोड़ा रोमांटिक मूड में थी। उसने सोचा, क्यों ना मामा को जाते-जाते थोड़ा तड़पाया जाए? वो मामा को पागल करने के मूड में आ गई। माँ किचन में थी, यानी कम से कम एक घंटा तो था।

काम्या: ठीक है, मामाजी, आ रही हूँ। मगर शर्त है, कुर्सी से बिल्कुल नहीं उठोगे, वरना शो कैंसिल।

काम्या ने अपने कपड़े उतारे और सिर्फ ब्रा-पैंटी में आईने के सामने खड़ी हो गई। अपने रूप को देखकर वो खुद पर मोहित हो गई। “हाय राम, मामाजी की क्या गलती? कौन नहीं मरेगा इस जवानी पर!” उसने बुदबुदाया। फिर उसने ब्रा भी उतार दी और एक टाइट टी-शर्ट पहन ली, जो उसके उभरे हुए मम्मों को और निखार रही थी। नीचे के लिए उसने स्कूल के दिनों का पुराना स्पोर्ट्स निक्कर चुना, जो रेसिंग के लिए खरीदा था। तीन साल में उसका बदन और गदराया था, तो निक्कर उसकी जाँघों में बुरी तरह चिपक गया। इतना टाइट कि उसकी पैंटी की रूपरेखा तक साफ दिख रही थी। निक्कर लगभग पारदर्शी हो गया था। उसने आईने में खुद को देखा—वो किसी जलजले की तरह तैयार थी। उसने मामा को फोन लगाया।

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काम्या: मामा, तैयार रहो शो देखने के लिए। मगर शर्त याद रखना—कुर्सी से नहीं उठना।

काम्या ने धीरे से दरवाजा खोला और बैठक में कदम रखा। मामा की नजर उस पर पड़ी तो वो बेहोश होने की कगार पर पहुँच गए। टी-शर्ट में काम्या की चूचियाँ बाहर को उबल रही थीं। उसके चलने से वो ऊपर-नीचे हिल रही थीं, जैसे कोई लावा बह रहा हो। मामा की आँखें फटी की फटी रह गईं। काम्या ने देखा कि मामा उसकी चूचियों को घूर रहे हैं। वो शरमा गई, मगर अंदर ही अंदर गर्व भी महसूस कर रही थी। उसने जानबूझकर अपने मम्मों पर हाथ रखे, जैसे उन्हें ढक रही हो। मामा की तंद्रा टूटी, और उनकी नजरें नीचे सरकने लगीं। टी-शर्ट और निक्कर के बीच का चार इंच का खुला हिस्सा, जहाँ काम्या का गोरा, चिकना पेट बलखा रहा था, मामा को पागल कर रहा था। उनकी नजरें और नीचे गईं, तो काम्या की चूत का उभार, जो निक्कर में साफ दिख रहा था, देखकर मामा का मुँह खुल गया। उनकी पुतलियाँ स्थिर हो गईं, और मुँह से लार टपकने लगी।

काम्या ने हल्के से खाँसा तो मामा को होश आया। उनकी नजरें अब काम्या की जाँघों पर गईं, जो निक्कर से बाहर निकल रही थीं। उसकी जाँघें इतनी मांसल और नपी-तुली थीं, जैसे किसी मॉडल की। काम्या कुछ देर यूं ही खड़ी रही, फिर धीरे-धीरे पलटने लगी। वो जानती थी कि उसका सबसे बड़ा हथियार उसकी गांड है। जैसे ही वो पलटी, मामा का बदन झनझना गया। निक्कर इतना टाइट था कि उसकी पैंटी की लाइन तक साफ दिख रही थी। काम्या की गोल, उभरी हुई गांड को देखकर मामा का खून उबलने लगा। वो कांपने लगे, जैसे कोई ट्रान्स में चला गया हो। काम्या ने बैले डांसर की तरह अपनी गांड को हल्के से मटकाया। हर मटक के साथ मामा का दिल हथौड़े की तरह धड़क रहा था। उसकी गांड इतनी मादक थी कि लगता था ब्रह्मा ने सारा हुनर यहीं उड़ेल दिया हो।

फिर काम्या सीधी हुई और मामा की तरफ देखा। मामा हवा में ताक रहे थे, जैसे कोमा में चले गए हों। काम्या ने फिर खाँसा, तो मामा की चेतना लौटी। वो उसे सूनी नजरों से देखने लगे। काम्या मुस्कराई, जीभ निकालकर उन्हें चिढ़ाया और भागकर अपने कमरे में चली गई। उसने दरवाजा बंद कर लिया, क्योंकि उसे डर था कि मामा कहीं पागलपन में कुछ कर न बैठें।

रात को पापा के आने के बाद मम्मी-पापा मामा को बस स्टैंड छोड़ने गए। आधी रात को काम्या सो रही थी कि उसका फोन बजा। मामा थे।

काम्या: हेलो।
मामा: हाँ, कम्मो, क्या कर रही है?
काम्या: सो रही थी।
मामा: भाई वाह! हमारी नींद उड़ाकर मैडम चैन से सो रही हैं।
काम्या: मैंने क्या किया, मामा?
मामा: अरे, आज तूने जो जलवा दिखाया, अब कई रातें हमें जागकर गुजारनी पड़ेंगी।
काम्या: अच्छा हुआ, तुम ही बार-बार कह रहे थे, जी भरकर देखना है। अब भुगतो!
मामा: भुगत तो रहे हैं। अब बस गाँव पहुँचें और मामी की कुटाई करें।
काम्या: क्या! मेरी गलती की सजा मामी को? ये अच्छा नहीं, मामा। मैं तुमसे नफरत करती हूँ!
मामा: अरे पगली, कुटाई का मतलब मारना नहीं।
काम्या: तो क्या मतलब?
मामा: अरे, मेरी फुलझड़ी, तू अभी नहीं समझेगी। शादी के बाद समझ आएगा। वो कुटाई जो हर पत्नी को मजा देती है।
काम्या: छी, कैसी गंदी बातें करते हो! शरम नहीं आती?
मामा: अरे, मेरी रसमलाई, जिसने की शरम, उसके फूटे करम। और जिसने की बेशरमी, उसे मिली दूध-मलाई!
काम्या: शट अप, मामा! —और उसने फोन रख दिया।

काम्या ने अभी फोन रखा ही था कि फिर घंटी बजी। मामा का नंबर देखकर उसने कॉल नहीं उठाया। मामा ने चार बार कोशिश की, मगर काम्या ने अनदेखा किया। फिर मामा का एसएमएस आया: “बस एक बार बात कर लो, एक रिक्वेस्ट है।” थोड़ी देर बाद फिर कॉल आई, तो काम्या ने उठा लिया।

काम्या: अब क्या है? क्यों परेशान कर रहे हो?
मामा: कम्मो, एक गुजारिश थी।
काम्या: अब कौन सी नौटंकी?
मामा: तू जानती है, हम तुझ पर मरते हैं। सालों से तू हमारे दिल-दिमाग में बसी है।
काम्या: मामा, फिर शुरू हो गए। हाथ जोड़ती हूँ, मुझे सोने दो।
मामा: प्लीज, मेरी बात सुन ले।
काम्या: बोलो, या मैं फोन काट दूँ।
मामा: अब तेरी शादी हो रही है, फिर तू ससुराल चली जाएगी। जिंदगी में कभी हम पर तरस आए, तो हमारा ख्वाब पूरा कर देना।
काम्या: ये ख्वाब कहाँ से आ गया? बोलो, क्या है?
मामा: बस, तेरा प्यार चाहिए। हो सके तो जिंदगी में एक बार के लिए हमारी हो जा।
काम्या: मामा, तुम पागल हो गए हो! रिश्ते का ख्याल नहीं, तो कम से कम अपनी उम्र का तो ख्याल करो।
मामा: हाँ, पागल तो तूने किया है। और उम्र? अभी तो हम सिर्फ 44 के हैं। दिल्ली-मुंबई में तो इस उम्र में शादी होती है। अभी तो असली जवानी आई है!
काम्या: अच्छा, असली जवानी? तो घर में जो मामी बैठी हैं, वो नकली हैं?
मामा: वो तो तेरी माँ ने हमारे पल्ले बाँध दी। उनकी पसंद है।
काम्या: और तुम्हारी पसंद?
मामा: हम ढूँढते तो तुझ जैसा पटाखा माल!
काम्या: शट अप, मामा! बस, बहुत हुआ। —और उसने फोन स्विच ऑफ कर दिया।

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मदनलाल की उस दिन की छेड़छाड़ के बाद ससुराल का माहौल और गर्म हो गया। काम्या सास शांति के सामने तो सभ्य बनी रहती, मगर उनकी गैरमौजूदगी में खूब इठलाती। उसकी चाल में एक अलग ही लचक आ गई थी। उसने अब टाइट कपड़े पहनने शुरू कर दिए—कुरता और स्किन-टाइट पजामी, जिसमें उसका गठीला जिस्म चमक उठता। वो जानती थी कि ससुर उसकी गांड का दीवाना है। वो जानबूझकर ऐसे खड़ी होती कि उसकी गांड ससुर की नजरों में चुभ जाए। कभी झुककर कुछ उठाती, तो उसकी पजामी में उसकी गांड का उभार साफ दिखता। मदनलाल की हालत किसी कॉलेज के लौंडे जैसी हो गई थी। उसका मूसल हर दो घंटे में खड़ा हो जाता।

दोनों की ये आँख-मिचौली करीब एक हफ्ते तक चली। मदनलाल उम्रदराज था, मगर शातिर था। उसने अपनी खुमारी को हावी नहीं होने दिया। वो जानता था कि काम्या जवान है, पति से दूर है, और अपनी भावनाओं को ज्यादा देर नहीं संभाल पाएगी। वो इंतजार कर रहा था कि काम्या खुद पहल करे, ताकि कल को कोई इल्जाम न लगे। उसका अनुमान सही निकला। दस दिन तक जब मदनलाल ने सिर्फ घूरने तक सीमित रखा, तो काम्या बेचैन हो उठी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ससुर इतना कंट्रोल कैसे कर रहा है। मगर वो भी औरत थी, और अपनी जवानी की ताकत जानती थी। उसने सोचा, जिस जवानी के आगे बड़े-बड़े तपस्वी हार गए, मदनलाल क्या चीज है? उसने मामा को तड़पाने वाला तरीका फिर से आजमाने का फैसला किया। उसके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान तैर गई।

काम्या कोई चालू लड़की नहीं थी। उसे मर्दों को तड़पाने में मजा नहीं आता था। मगर मदनलाल का उसे इग्नोर करना उसके अहं को चोट पहुँचा रहा था। उसका वो कातिल जिस्म, जिसके पीछे कॉलेज के टीचर तक पागल थे, उसका एक बूढ़े पर असर न हो, ये उसे बर्दाश्त नहीं था। उसने ठान लिया कि भले ही पहला कदम मदनलाल ने उठाया, मगर आखिरी कदम उसका होगा। वो नहीं जानती थी कि ऐसे रिश्तों का दलदल कितना खतरनाक होता है। खासकर जब सामने मदनलाल जैसा शातिर लुगाईबाज हो। मौका दो दिन बाद आया—होली का दिन।

होली के दिन मदनलाल पड़ोसियों से मिलने गया। वहाँ थोड़ी-बहुत भांग और शराब पी ली। जब लौटा, तो घर में शांति, काम्या और मोहल्ले की कुछ औरतें थीं। होली का धूम-धड़ाका चल रहा था। काम्या रंगों में पूरी तरह भीग चुकी थी। उसकी पतली साड़ी उसके जिस्म से चिपक गई थी, और उसकी चूचियाँ, कमर और जाँघें साफ दिख रही थीं। मदनलाल का लंड फनफनाने लगा। वो काम्या के पूरे जिस्म को रंग से भर देना चाहता था, मगर रिश्तों की मर्यादा आड़े आ रही थी। थोड़ी देर बाद औरतों की टोली निकल गई, और शांति भी उनके साथ चली गई। जाते-जाते उसने काम्या से कहा, “मुझे एक-दो घंटे लगेंगे। बाबूजी के लिए खाना बना देना।”

काम्या को यही मौका चाहिए था। वो बाथरूम गई, अच्छे से नहाई, और अपने कमरे में चली गई। उसने दरवाजा बंद किया और सारे कपड़े उतार दिए। नंगी होकर उसने खुद को आईने में देखा। उसका चेहरा, गोल-गोल चूचियाँ, पतली कमर, मांसल जाँघें और सबसे ऊपर उसकी गदराई गांड—वो रति का अवतार लग रही थी। “अब देखती हूँ, बाबूजी कैसे कंट्रोल करते हैं,” उसने बुदबुदाया। उसने एक स्किन-टाइट लेगिंग पहनी, जो उसकी जाँघों और चूत के उभार को साफ दिखा रही थी। ऊपर एक राउंड-नेक टी-शर्ट, जो उसकी चूचियों को और उभार रही थी। वो पूरी तरह तैयार थी।

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काम्या किचन में गई, चाय बनाई और मदनलाल के पास पहुँची। उसे लेगिंग में देखकर मदनलाल का दिल धक से रह गया। उसकी जाँघें लेगिंग में कैद थीं, मगर हर मूवमेंट साफ दिख रहा था। उसकी गांड का उभार ऐसा था कि मानो लेगिंग फट जाएगी। मदनलाल मुँह फाड़े उसे देखने लगा। काम्या ने उसकी हालत देखकर मन ही मन खुशी से झूम उठी। “बाबूजी, चाय,” उसने हल्के से खाँसते हुए कहा।

मदनलाल ने चाय ली, और काम्या चली गई। थोड़ी देर बाद वो कप लेने आई, तो देखा कि मदनलाल आँखें मूँदे बैठे हैं। असल में, उसे काम्या के आने का अहसास हो गया था, मगर वो नाटक कर रहा था।

काम्या: बाबूजी, क्या सोच रहे हैं?
मदनलाल: कुछ नहीं, बहू।
काम्या: नहीं, जरूर कुछ सोच रहे हैं। बताइए ना।
मदनलाल: रहने दो, तुझे बुरा लग जाएगा।
काम्या: प्लीज, बताइए ना।
मदनलाल: नहीं, बहू, तू नाराज हो जाएगी।
काम्या: अरे, हमने कब आपकी बात का बुरा माना? बोलिए ना।
मदनलाल: वो… तुझे लेगिंग में देखकर उस दिन की याद आ गई।
काम्या: कौन सा दिन?
मदनलाल: वो बाथरूम वाला दिन।

ये सुनते ही काम्या का चेहरा शरम से लाल हो गया। “हाय भगवान, बाबूजी, आप तो बिल्कुल बेशरम हैं! अभी तक वो बात नहीं भूले?” वो दौड़कर किचन की ओर भागी। उसकी गांड इतनी तेजी से थिरक रही थी कि मदनलाल की आँखें फटी रह गईं। “हाय, ये हाहाकारी गांड कुछ भूलने नहीं देगी,” उसने बुदबुदाया।

काम्या किचन में पहुँची, तो वो हाँफ रही थी। उसने प्लेटफॉर्म पकड़ा और झुककर खड़ी हो गई। उसकी गांड पीछे को उभर गई। तभी मदनलाल किचन में आया। काम्या की उभरी गांड देखकर उसका लंड टनटना गया। उसने लुंगी में अपने मूसल को सीधा किया और सीधे काम्या की गांड से भिड़ा दिया। फिर उसकी कमर पकड़ ली। काम्या के बदन में करंट दौड़ गया। “आआह…” उसकी सिसकारी निकल गई।

मदनलाल ने उसके कान के पास मुँह लाकर कहा, “गुस्सा हो गई, बहू?”
काम्या कुछ नहीं बोली। उसका बदन काँप रहा था।
मदनलाल: गुस्सा हो गई? इसलिए बार-बार कह रहा था, मत पूछ।
काम्या: हम गुस्सा नहीं हैं। —उसकी आवाज धीमी थी।
मदनलाल: तो भागकर क्यों आई? —कहते हुए उसने अपना हाथ टी-शर्ट के नीचे डाला और काम्या के चिकने पेट को सहलाने लगा।
काम्या: आप ऐसी बातें करेंगे, तो हम और क्या करें?
मदनलाल: तूने ही तो जिद की थी, सो मन की बात कह दी। —उसने काम्या की गर्दन पर अपने होंठ रख दिए।

काम्या की गर्दन उसका सबसे कमजोर हिस्सा थी। ससुर के होंठ लगते ही “उउह…” उसकी सिसकारी निकल गई।
काम्या: बाबूजी, ये क्या कर रहे हैं?
मदनलाल: आज होली है, बहू। सुबह से सबके साथ होली खेली, हमसे नहीं खेलेगी? —कहते हुए उसने हाथ ऊपर सरकाया और काम्या की चूचियों को पकड़ लिया।

चूचियों पर ससुर का हाथ पड़ते ही काम्या का बदन झनझना गया। उसकी साँसें तेज हो गईं। “आआह…” एक और सिसकारी निकली। मदनलाल की उंगलियाँ उसकी निप्पल्स को टटोलने लगीं। वो धीरे-धीरे उन्हें मसलने लगा। काम्या की चूत में गीलापन बढ़ने लगा। उसका बदन गर्म हो रहा था, मगर वो संस्कारी थी। मन में उत्तेजना के बावजूद, उसका दिल इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं था।

काम्या: बाबूजी, प्लीज, छोड़ दीजिए।
मदनलाल: अरे, बहू, त्योहार में जिद नहीं करते। बस, थोड़ा होली खेल लेने दे। —वो जानता था कि काम्या गर्म हो रही है। उसने अब काम्या के कंधे और गर्दन को चाटना शुरू किया।

काम्या अब तीन तरफा हमले में फंस चुकी थी। नीचे उसकी गांड में ससुर का तना हुआ लंड धक्के मार रहा था। चूचियाँ ससुर के हाथों में थीं, और उसकी जीभ उसकी गर्दन पर हलचल मचा रही थी। “उउह… आआह…” उसकी सिसकारियाँ तेज होने लगीं। उसकी आँखें बंद होने लगीं। उसकी चूत पूरी तरह भीग चुकी थी। वो अब विरोध नहीं कर पा रही थी। उसका बदन ससुर के स्पर्श का गुलाम हो चुका था।

क्या काम्या और मदनलाल की ये गर्मी अब और आगे बढ़ेगी? आप क्या सोचते हैं, कमेंट में बताएँ!

कहानी का अगला भाग: बहकती बहू-4

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