बचपन की गलती

Incest kahani इंसान के दिल में कुछ ऐसे राज़ छुपे होते हैं, जिन्हें वो चाहकर भी किसी से बयाँ नहीं कर पाता। मन में एक अनजाना सा डर बसा रहता है कि अगर किसी को पता चल गया, तो कयामत आ जाएगी। लेकिन शुक्र है कि कुछ ऐसी जगहें हैं, जहाँ हम बिना किसी झिझक के अपने दिल की बात, अपने साथ बीते वाकये को बाँट सकते हैं। मेरा नाम समीर है, और मैं दिल्ली में रहता हूँ। पेशे से मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ। मेरा होमटाउन एक छोटा सा शहर है, जहाँ मेरे मम्मी-पापा और मेरी दीदी रहते हैं। मेरी दीदी, सोनिया, मुझसे एक साल बड़ी है और एक स्कूल में टीचर है। आज हमारे बीच भाई-बहन का रिश्ता नाममात्र का रह गया है। सब कुछ खत्म हो चुका है। अब हम सिर्फ दुनिया की नजरों में भाई-बहन हैं। हमारे बीच वो पुराना रिश्ता अब बाकी नहीं रहा। इसके पीछे गलती किसकी है, ये मैं आप पर छोड़ता हूँ।

हम शुरू से ऐसे नहीं थे। मेरे और सोनिया दीदी के बीच बहुत अच्छा रिश्ता हुआ करता था। हम दोनों एक-दूसरे के साथ हँसते-खेलते, एक-दूसरे का साथ देते। लेकिन वक्त की आँधी और बचपन की नादानी ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया। बात उस वक्त की है, जब मैं 18 साल का था और सोनिया दीदी 19 की। हमारा घर काफी बड़ा है, और हम दोनों दिनभर उसमें खेला करते थे। कभी-कभी हम मम्मी-पापा के कमरे में ही सो जाते थे। हम दोनों उनके बीच में लेटते, हालाँकि हमारे लिए अलग कमरा भी था। हमारी जिंदगी सामान्य ढंग से चल रही थी। लेकिन उस एक रात ने सब कुछ बदल दिया। वो रात, जिसे मैं आज भी सोचता हूँ तो मन करता है कि काश वो कभी न आई होती।

बचपन की नींद तो आप जानते ही हैं, एक बार सो गए तो बिना किसी के जगाए नींद नहीं खुलती। एक रात, सोते-सोते अचानक मेरी नींद खुली। मैंने देखा कि सोनिया दीदी अपने बेड पर नहीं थी। मुझे लगा शायद वो बाथरूम गई होगी। लेकिन अटैच्ड बाथरूम का दरवाजा खुला था। नींद के कारण मेरी आँखें फिर से बंद हो गईं और मैं सो गया। सुबह मम्मी ने जगाया, हम स्कूल गए, और हमारी रोजमर्रा की जिंदगी वैसी ही चलती रही। अगली रात, फिर से मेरी नींद टूटी। मैंने देखा कि दीदी फिर से अपने बेड पर नहीं थी। मुझे शक हुआ। मैं बाथरूम में गया, वो खाली था। मैं दबे पाँव कमरे से बाहर निकला और दीदी को ढूँढने लगा। अचानक मुझे खिड़की के पास कोई झुका हुआ दिखा। अंधेरे में पहले तो समझ नहीं आया, लेकिन ध्यान से देखा तो वो दीदी ही थी। वो मम्मी-पापा के बेडरूम की खिड़की से चेहरा सटाए बड़े ध्यान से कुछ देख रही थी। वो इतनी खोई हुई थी कि उसे मेरे आने का पता ही नहीं चला। मैं पीछे से गया और उसके कंधे पर हल्का सा थप्पड़ मारकर धीमी आवाज में पूछा, “क्या देख रही हो, दीदी?”

दीदी एकदम से चौंक गई। उसकी साँसें तेज हो गईं, और हकलाते हुए बोली, “त-त-तू… क-कब से यहाँ खड़ा है?” मैंने कहा, “बस अभी आया।” मैंने फिर पूछा, “बता ना, दीदी, क्या देख रही थी?” उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। उसने माथे का पसीना पोंछा और हकलाते हुए बोली, “कु-कुछ नहीं, भाई।” फिर मेरा हाथ पकड़कर मुझे खींचते हुए हमारे कमरे में ले आई। मुझे डाँटते हुए बोली, “सो जा, कल स्कूल नहीं जाना क्या?” मैं डाँट सुनकर बिस्तर पर लेट गया और आँखें बंद कर लीं। लेकिन दीदी मेरे सामने खड़ी थी। वो धीरे से बोली, “प्लीज, समीर, कल रात की बात मम्मी-पापा को मत बताना।” वो मिन्नतें करने लगी। मैंने मौके का फायदा उठाया और कहा, “नहीं बताऊँगा, लेकिन एक शर्त पर।” वो बोली, “तेरी हर शर्त मंजूर है, बस मेरी बात मान ले।” मैंने ओके कहा। उसने मेरी शर्त पूछी। मैंने धीरे से कहा, “पहले तू बता, कल रात तू खिड़की पर क्या देख रही थी?” मेरी बात सुनते ही दीदी के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ गईं। कुछ देर सोचकर उसने कहा, “आज रात को पता चल जाएगा। बस जब मैं जगाऊँ, तो उठ जाना।” मैंने खुशी से हाँ में सिर हिलाया।

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हम स्कूल गए। दिन होमवर्क और रोजमर्रा की चीजों में बीत गया। रात को खाना खाकर हम अपने कमरे में सोने चले गए। कुछ देर बाद मेरी आँख लग गई, और मैं गहरी नींद में सो गया। रात को करीब 2 बजे एक हल्की सी आवाज ने मेरी नींद तोड़ दी। “समीर… समीर… उठो, कितनी देर से जगा रही हूँ।” पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया। फिर मुझे सुबह की बात याद आई। मैं झट से उठकर बैठ गया। दीदी ने मुझे खास हिदायत दी कि बिल्कुल आवाज नहीं करनी। हम दोनों दबे पाँव कमरे से बाहर निकले और मम्मी-पापा के बेडरूम की ओर चले गए। वहाँ पहुँचते ही दीदी ने मुझे इशारे से चुप रहने को कहा और अपना चेहरा खिड़की से सटा लिया। उसके होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान थी। उसने बिना चेहरा हटाए मुझे पास बुलाया और खिड़की से अंदर देखने का इशारा किया।

मैंने अपना चेहरा खिड़की पर सटाया। पहले तो मुझे देखने में थोड़ी दिक्कत हुई, लेकिन फिर मैंने देखा कि कमरे में टीवी चल रहा था। मूनलाइट और टीवी की रोशनी से कमरा हल्का सा जगमगा रहा था। टीवी पर एक फिल्म चल रही थी। उसमें एक गोरी लड़की अपने घुटनों पर बैठी थी, और उसके सामने एक आदमी बिना कपड़ों के खड़ा था। उसने लड़की के सिर पर हाथ रखा था और बड़े प्यार से उसे सहला रहा था। अचानक सीन बदला, और अब उसी सीन का साइड व्यू दिख रहा था। वो लड़की उस आदमी का लंड अपने मुँह में लेकर जोर-जोर से चूस रही थी। ये देखकर मेरा गला सूख गया। मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था। मुझे सेक्स के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। मैं अपने लंड को सिर्फ पेशाब करने की चीज समझता था। ये सब देखते-देखते मेरे पैर काँपने लगे। मैंने डर के मारे अपना मुँह खिड़की से हटा लिया। मेरे पसीने छूट रहे थे। मुझे पीछे हटता देख दीदी ने पूछा, “क्या हुआ?” मैं कुछ नहीं बोला और भागकर अपने कमरे में आ गया। दीदी वहीँ खड़ी रही।

कुछ देर बाद दीदी कमरे में आई और मेरे बेड पर बैठ गई। मैं अभी भी साँस रोके लेटा था, जैसे कोई भूत देख लिया हो। मेरी हालत का अंदाजा तो आपको हो ही गया होगा। 18 साल की उम्र में ये सब मेरी समझ से बाहर था। दीदी बड़े सुकून से बैठी थी। कुछ देर बाद उसने मुझसे पूछा, “क्या हुआ, समीर?” मैं कुछ नहीं बोला। मेरी तरफ से कोई जवाब न पाकर उसने मेरे सिर पर हाथ फेरा, मेरे माथे पर एक चुम्मी दी, और अपने बेड पर जाकर सो गई। मुझे नहीं पता कि दीदी ये सब कब से देख रही थी, लेकिन इतना समझ आ गया था कि वो इन चीजों में अब माहिर हो चुकी थी।

अगले दिन सुबह रविवार था। मैं दीदी से कोई बात नहीं कर रहा था। दीदी बार-बार पूछ रही थी कि क्या हुआ, लेकिन मैं सहमा-सा अपने काम में लगा रहा। उस रात दीदी ने मम्मी-पापा के साथ सोने की जिद की। उनकी जिद के आगे मम्मी-पापा हार गए और उसे अपने साथ सुलाने को राजी हो गए। उन्होंने मुझे भी अपने कमरे में बुलाया। पहले तो मैंने मना किया, लेकिन जब दीदी ने आँख मारते हुए कहा, “मान जा ना, भाई,” तो मैंने हाँ कर दी। हम बेड की एक तरफ सो गए। मैं डबल बेड के किनारे था, मेरे बगल में दीदी, और उनके बगल में पापा और मम्मी। नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी। दीदी भी सिर्फ आँखें मूँदे बेड पर पड़ी थी। हमें बेड पर पड़े-पड़े करीब 2 घंटे हो चुके थे।

अचानक मुझे बेड हिलने की हल्की सी आहट सुनाई दी। मैंने आँखें हल्की सी खोलकर देखा। पापा बेड से उठ चुके थे। उन्होंने अपनी सेफ से एक सीडी निकाली और सीडी प्लेयर में लगाकर टीवी ऑन कर दिया। दीदी ने मुझे हल्की सी चुटकी काटी और मेरी तरफ देखकर मुस्कुराने लगी। पापा और मम्मी बेड से उतरकर टीवी के सामने नीचे पड़े कारपेट पर लेट गए। वो अपने साथ तकिया भी ले गए। वो इस तरह लेटे थे कि हमें नहीं देख सकते थे, लेकिन हम उन्हें आसानी से देख सकते थे। मैंने टीवी पर नजर डाली। उसमें एक इंग्लिश फिल्म शुरू हो रही थी। फिल्म की शुरुआत में एक लड़की बड़े जोर-जोर से एक लड़के का लंड चूस रही थी। वो लड़का आँखें बंद किए हुए अपने लंड को उसके मुँह में अंदर-बाहर कर रहा था। ये देखकर मेरे पसीने छूटने लगे। मैंने डर के मारे आँखें बंद कर लीं।

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कुछ देर बाद जब मैंने आँखें खोलीं, तो देखा कि अब वो लड़की लड़के के नीचे लेटी थी, और लड़का उसकी चूचियों को चाट और चूस रहा था। ये सब देखकर मेरे शरीर में एक अजीब सा बदलाव महसूस हुआ। मेरा लंड फूलकर पूरी तरह तन गया था। मुझे इस सब में बहुत मजा आ रहा था। ऐसा मजा मैंने पहले कभी नहीं महसूस किया था। अब मेरी दिलचस्पी बढ़ चुकी थी। मैं आँखें खोलकर बड़े चाव से देखने लगा। मैंने बगल में दीदी को देखा, वो बिना पलक झपकाए ये सब बड़े ध्यान से देख रही थी। फिर मैंने बेड के सामने देखा, तो मेरे होश उड़ गए। पापा मम्मी की टाँगों के बीच अपना सिर घुसाए कुछ चूस रहे थे। मम्मी बड़े आनंद के साथ उनके सिर पर हाथ रखकर उनके बालों को सहला रही थीं और उनके सिर को अपनी टाँगों के बीच दबाए हुए थीं। मैंने टीवी पर देखा, तो वहाँ भी यही सीन चल रहा था। लड़का लड़की की टाँगों के बीच अपना सिर घुसाए हुए था। मेरी हालत खराब हो गई थी।

मैंने महसूस किया कि दीदी मेरी तरफ कुछ ज्यादा ही सरक आई थी। उसने अपनी पीठ मेरी तरफ कर रखी थी। मैं थोड़ा और पीछे सरक गया ताकि दूरी बनी रहे। लेकिन मुझे सरकता देख दीदी और मेरी तरफ आ गई। अब मैं और पीछे नहीं सरक सकता था, वरना बेड से नीचे गिर जाता। कुछ देर बाद मेरा हाथ अपने आप मेरे लंड पर चला गया। मैं उसे सहलाने लगा और टीवी पर चल रहे सीन का मजा लेने लगा। मैंने अपने लोअर को थोड़ा नीचे सरका दिया और अपने लंड को हाथ में पकड़कर दबाने लगा। दीदी और मेरी तरफ सरक आई। अब उसकी पीठ मेरे सीने से बिल्कुल चिपक गई थी। मैं चाहकर भी पीछे नहीं हट सकता था। दीदी ने फ्रॉक पहन रखी थी। मैंने ध्यान से देखा, तो दीदी का एक हाथ उसकी टाँगों के बीच था और वो उसे धीरे-धीरे हिला रही थी।

अचानक दीदी ने अपनी गाँड पीछे सरकाई, और उसकी गाँड मेरे खड़े लंड से सट गई। मैं तो उछल पड़ा और मजा के सागर में डूब गया। अब मेरे लंड और दीदी की गाँड के बीच सिर्फ उसकी फ्रॉक थी। दीदी ने अपनी गाँड मेरे लंड पर और दबा दी, जिससे मुझे स्वर्ग जैसा अनुभव होने लगा। दीदी को पता नहीं क्या सूझा, उसने अपनी फ्रॉक को अपनी गाँड से ऊपर सरका दिया। मेरा तना हुआ लंड उसकी गाँड की दरार में जाकर सेट हो गया। मुझे इतना मजा पहले कभी नहीं आया था। दीदी ने चड्डी भी नहीं पहनी थी। उसकी गाँड के बीच में फँसा मेरा लंड बिल्कुल गर्म हो चुका था और एक अजीब सी लज्जत दे रहा था। मैंने अपनी गाँड और आगे सरकाकर अपनी एक टाँग उठाई और दीदी की टाँगों के ऊपर रख दी। अब मेरा लंड और दीदी की गाँड इतने चिपके हुए थे कि शायद उनके बीच हवा भी नहीं थी।

दीदी ने अपने हाथ पीछे किए और मेरा हाथ पकड़कर पहले अपने सीने पर रख दिया। मुझे एक मुलायम सी चीज का एहसास हुआ। मेरे हाथ अपने आप उसकी गोलाई नापने लगे। वो नरम एहसास और दीदी की बदन की गर्मी मुझे एक ऐसा अनुभव दे रही थी, जिसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। मेरे हाथ अपने आप उसकी चूचियों पर चलने लगे। मैंने सामने मम्मी-पापा की तरफ देखा, वो थककर गहरी नींद में एक-दूसरे से चिपके सो रहे थे। दीदी ने एक हाथ से कंबल उठाया और हमारे ऊपर डाल दिया। वाह, दीदी, तुम सचमुच माहिर हो। कंबल डालने के बाद उसने अपनी फ्रॉक को पूरी तरह अलग कर लिया। अब हम दोनों नंगे होकर एक-दूसरे से चिपके हुए थे।

दीदी ने एक अजीब सी हरकत की। उसने अपनी एक टाँग उठाई और मेरे लंड को अपनी टाँगों के बीच, ठीक उसकी चूत के मुँह पर लगा दिया। मेरे शरीर में जैसे तूफान सा उठने लगा। दीदी अभी भी अपनी पीठ मेरे सीने से चिपकाए पड़ी थी और मेरे लंड पर अपनी गाँड का दबाव बढ़ा रही थी। मैंने अपने हाथ दीदी की चूचियों पर मसलने शुरू कर दिए। मेरी गाँड अपने आप धीरे-धीरे आगे-पीछे होने लगी। मुझे हिलता देख दीदी ने भी आगे-पीछे हिलना शुरू कर दिया। मेरा लंड की नोक उसकी चूत में समा गई। मुझे लगा जैसे मेरा लंड किसी गर्म भट्टी में घुस रहा हो। दीदी की चूत मेरे लंड को अंदर की तरफ खींच रही थी। मैंने थोड़ा और जोर दिया, तो मेरा लंड आधा उसकी चूत में समा गया। “आह… ऊफ… ओह…” मेरे मुँह से बस यही आवाजें निकल रही थीं।

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दीदी ने अपनी गाँड को हिलाना जारी रखा। मैं अब जोर-जोर से अपनी गाँड हिलाना चाहता था। मैंने दीदी की चूचियों को कसकर दबाया और एक जोरदार धक्का मारा। दीदी ने भी मजे से अपनी गाँड मेरी गाँड से सटा दी, जिससे मेरा पूरा लंड उसकी चूत में समा गया। मैं ऐसे ही अपना पूरा लंड उसकी चूत में डाले पड़ा रहा। हम दोनों बिना हिले पड़े थे, लेकिन चूत अंदर से अपना काम कर रही थी। वो मेरे लंड को अंदर ही अंदर ऐसे निचोड़ रही थी, जैसे गन्ने की मशीन में गन्ना निचोड़ा जाता है। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरे लंड को अंदर ही अंदर चूस रहा हो।

दीदी ने अचानक अपनी गाँड जोर-जोर से हिलानी शुरू कर दी। मैं भी मस्ती में आकर अपनी गाँड हिलाने लगा। जब मेरा लंड अंदर जाता, तो दीदी जोर से अपनी गाँड पीछे लाती और एक मादक सी आवाज निकालती, “आह्ह… हाँ… और जोर से…” मैं जब लंड बाहर निकालता, तो दीदी अपनी गाँड पीछे ले आती, जैसे मुझे रोक रही हो। “निकाल मत, भाई… अंदर ही रख…” उसकी आवाज में एक अजीब सी मादकता थी। “फच… फच… थप… थप… पूछ… पूछ…” ऐसी आवाजें कमरे में गूँज रही थीं। मेरे शरीर में एक अकड़न सी महसूस होने लगी। मेरी स्पीड बहुत तेज हो चुकी थी।

दीदी की चूत का छेद छोटा होता जा रहा था। मैं अब पूरी ताकत से धक्के मार रहा था, और दीदी भी उतनी ही ताकत से अपनी गाँड को जहत्के दे रही थी। “हाँ… समीर… और तेज… आह्ह… चोद दे मुझे…” दीदी की आवाज में एक उत्तेजना थी, जो मुझे और पागल कर रही थी। मैंने उसकी चूचियों को और जोर से मसला, मेरे नाखून उसकी नरम चूचियों में गड़ रहे थे। “आह्ह… धीरे… दर्द हो रहा है…” दीदी ने सिसकारी भरी, लेकिन उसकी गाँड अब भी मेरे लंड पर जोर-जोर से टकरा रही थी।

अचानक मेरे शरीर ने एक जोरदार झटका लिया। मैंने दीदी को कसकर जकड़ लिया। फिर एक और झटका… फिर तीसरा… इन झटकों के साथ मुझे वो मजा मिला, जो मैंने पहले कभी नहीं महसूस किया था। वो कुछ पलों का सुख था, जो ऐसा सुकून दे गया, जिसका कोई मोल नहीं। दीदी भी अब ढीली पड़ चुकी थी। उसने थोड़ा आगे खिसककर मेरे से दूरी बना ली। “पुच…” की आवाज के साथ मेरा लंड उसकी चूत से बाहर आ गया। उसने लेटे-लेटे ही अपनी फ्रॉक पहन ली और मुझसे दूर खिसककर आँखें बंद करके सो गई। उसने मुझसे कोई बात नहीं की, न ही मेरी तरफ देखा। मैंने भी अपने कपड़े पहने और पता नहीं कब नींद ने मुझे अपनी आगोश में ले लिया।

क्या आपको लगता है कि ये सब गलत था, या ये सिर्फ बचपन की नादानी थी? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएँ।

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