मेरा नाम आशा है। मैं एक 22 साल की शादीशुदा औरत हूँ। मेरा एक 3 साल का बेटा भी है। लेकिन मेरी चुदाई की कहानी आज से लगभग चार साल पहले शुरू हुई थी, जब मैं 18 साल की थी। मैंने जवानी की सीढ़ी पर कदम रखा ही था। उस वक्त मैं थोड़ी आवारा टाइप की थी। इंटरनेट पर सब कुछ देख चुकी थी, हर लड़के को देखकर मन में आता कि काश ये मुझे चोद दे। लेकिन ऐसा होना मुमकिन नहीं था। तभी मेरी मुलाकात एक सहेली से हुई, जिसने मेरे दिमाग में गंदगी भर दी। उसने बताया कि वो अपने बाप से रोज़ चुदवाती है। जब उसने अपने पहले सेक्स के बारे में बताया, मेरी चूत पानी छोड़ गई। उसने कहा कि उसके बाप ने उसे कैसे रगड़ के चोदा था। ये सुनकर मेरे मन में भी अपने बापू के लिए गलत ख्याल आने लगे। मैं उन्हें उसी नजर से देखने लगी और सोचने लगी कि बापू मुझे कैसे चोदेंगे।
इसके बाद मैंने एक प्लान बनाया। मैंने बापू को रिझाना शुरू कर दिया। मैंने उनके सामने चादर पहनना छोड़ दिया और गहरे गले की कमीज़ पहनने लगी, ताकि जब मैं उनके सामने जाऊँ, तो मेरी चूचियाँ साफ दिखें। ये सब मेरे मन में चल रहा था। एक दिन मैं घर पर थी, बापू बैठे अखबार पढ़ रहे थे। मैंने झाड़ू ली और कमरे में पहुँच गई। मैंने झाड़ू लगाना शुरू किया, बार-बार झुक-झुक कर, ताकि मेरी चूचियाँ लटकें और कमीज़ के बाहर झाँकें। ऐसा ही हुआ। मैंने नज़र उठाकर देखा तो बापू मेरी चूचियों को घूर रहे थे। मैं शर्मा के वहाँ से चली आई। अगले दिन मैंने फिर वही किया। बापू फिर मेरी चूचियों को देख रहे थे। तीसरे दिन मैंने टाइट सलवार और कमीज़ पहनी और बापू के सामने झाड़ू लगाने गई। पहले मैंने अपनी गांड उनकी तरफ की, फिर उनके पलंग के नीचे से कूड़ा निकालने के लिए पूरी झुक गई। बापू मेरी चूचियों को बड़े गौर से देख रहे थे। जैसे ही मैं मुड़ी, बापू ने मेरे चूतड़ों पर हाथ फेर दिया। मैं सिहर गई। मैंने सोचा नहीं था कि मेरी ये अदा इतना काम कर जाएगी। मैं वहाँ से हिल भी नहीं पाई। मैंने मुड़कर बापू को देखा, उन्होंने फिर मेरे चूतड़ों पर हाथ फेरे और एक चूतड़ को दबाया। मैं भागने लगी तो बापू ने मेरी कमर पकड़कर मुझे अपनी गोद में बिठा लिया। हे राम! ये क्या? उनका लंड मेरे चूतड़ों को छू रहा था। उनका लंड पूरी तरह खड़ा था। मैंने ज़ोर लगाया कि भाग जाऊँ, लेकिन बापू की पकड़ मज़बूत थी। उन्होंने मेरी चूचियों को कमीज़ के ऊपर से ही दबाना शुरू कर दिया। मैंने कहा, “ये क्या कर रहे हो, बापू? ये पाप है।”
लेकिन मैं वहाँ से उठी नहीं। बापू ने अपना मुँह मेरी एक चूची पर, कपड़े के ऊपर से ही, रख दिया। मुझे बड़ा मज़ा आया। लेकिन तभी मम्मी की आवाज़ आई, “आशा!”
मैं जल्दी से भाग गई। बापू ने भी मुझे छोड़ दिया।
अब तो बापू ने मेरा जीना हराम कर दिया। जब भी मैं उन्हें नज़र आती, वो कुछ न कुछ कर देते। कभी मेरे होंठ चूम लेते, कभी चूची दबा देते, कभी चूतड़ों पर हाथ फेर देते। और तो और, मेरी चूत में भी उंगली कर देते। मुझे इसमें बड़ा मज़ा आ रहा था, इसलिए मैं कुछ नहीं कह रही थी। एक दिन मैं रसोई में चाय बना रही थी। बापू पीछे से आए और मुझसे सटकर खड़े हो गए। उनका लंड खड़ा था, जो लुंगी के ऊपर से दिख रहा था। फिर वो और पास आए, इतना पास कि उनका लंड मेरे चूतड़ों को छूने लगा। मैंने भी जानबूझकर अपने चूतड़ पीछे कर दिए। उनका लंड मेरे चूतड़ों के बीच में आ गया। मैं अपने चूतड़ों को मटकाने लगी। उन्हें भी मज़ा आने लगा। उन्होंने एक हाथ से मेरी एक चूची पकड़ी और मसलने लगे। मैं चुपचाप खड़ी ये सब करवा रही थी कि अचानक मम्मी की आवाज़ आई, “अरे आशा! चाय बनी या नहीं?”
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“जी, लाती हूँ,” मैंने कहा।
बापू धीरे से बोले, “ये मादरचोद बीच में कहाँ से आ जाती है?”
मैं मुस्कुराकर चाय निकालने लगी और रसोई से बाहर चली गई।
मुझे लगने लगा था कि बापू मेरी इन अदाओं से बहुत परेशान हो रहे थे। वो मुझे चोदने की तलाश में थे। उन्हें बस मौका चाहिए था कि मैं अकेले मिल जाऊँ। लेकिन सच कहूँ, मुझे उन्हें रिझाने में बड़ा मज़ा आ रहा था।
अगले दिन मैं नहाने जा रही थी कि बापू ने मुझे बाथरूम में घसीट लिया। मैंने देखा कि बापू ज़्यादा ही उत्तेजना में थे। मैं चिल्ला पड़ी। बापू गुस्सा गए, “क्या हुआ, मादरचोद? तुझसे चुप नहीं रहा जाता?”
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मैंने कहा, “बापू, स्कूल को देर हो रही है।”
तभी मेरी चीख सुनकर मम्मी आ गईं, “क्या हुआ?”
मैंने कहा, “जी, वो मैं फिसल गई थी।”
“क्या, चूत तो नहीं लगी?” मम्मी ने पूछा।
“नहीं, शायद बापू को लगी है,” मैंने बापू की तरफ देखकर आँख मार दी।
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“क्या, बापू को क्यों लगी होगी?” मम्मी ने पूछा।
“जी, वो मुझे पकड़ने के चक्कर में दीवार से लड़ गए थे,” मैंने कहा।
“ओह, ओह! ये तो बूढ़े हो गए हैं, मगर बच्चों की तरह करने की कोशिश करेंगे? अब इस उमर में हड्डी टूट जाती तो?” मम्मी बोलीं।
“यही तो मैं बापू से कह रही थी कि बापू, आप बूढ़े हो गए हैं। ज़्यादा उछल-कूद मत किया करो,” मैं हँसने लगी। बापू को बड़ा गुस्सा आया। वो वहाँ से चले गए।
अब तो बापू ने मुझे चोदने का फुल मूड बना लिया था। मैंने एक चालाकी और की। मैं रात को अपने कमरे का दरवाज़ा लॉक करके सोने लगी।
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लेकिन एक दिन बापू की भगवान ने सुन ली। मेरे मौसा का देहांत हो गया। मम्मी को जाना पड़ा। अब तो बापू की निकल पड़ी थी। मैं और बापू 4-5 दिनों के लिए घर में अकेले थे। जब बापू मम्मी को ट्रेन में बिठाकर वापस आए, मैं किचन में थी। मुझे मालूम था कि बापू आते ही मुझे चोदना शुरू कर देंगे। इसलिए मैंने एक हल्के जर्जर की नीली कमीज़ पहनी थी, जो मुझ पर खूब खिलती थी। बापू जैसे ही आए, वो मेरे पीछे से आकर मुझसे लिपट गए, जैसे एक पति अपनी पत्नी से प्यार से लिपटता है। मैं भी उनके लंड और प्यार की भूखी थी। उन्होंने मेरी गर्दन पर चूमना शुरू कर दिया। मैं उनकी बाहों में पिघलने लगी। उनका एक हाथ मेरे चूतड़ों पर और दूसरा मेरी चूचियों पर चल रहा था। मैंने गैस बंद कर दी। उन्होंने मुझे गोद में उठा लिया और बेडरूम में ले आए।
मेरे बापू बड़े बलिष्ठ थे। उनकी उम्र उस समय 41 साल थी, लेकिन वो 35 के लगते थे। उन्होंने मुझे बेड पर लिटाकर कमरा बंद किया और मेरे पास आ गए। मैं आँखें बंद करके लेट गई। मैं जानती थी कि अब मेरी चुदाई होगी। मैं आँखें बंद किए लेटी थी कि बापू कुछ करेंगे, लेकिन काफी देर तक कुछ न होने पर मैंने आँखें खोलीं। हे राम! ये क्या? बापू ने अपने सारे कपड़े उतार दिए थे। मैंने देखा कि उनकी टाँगों के बीच में एक काले मोटे रॉड जैसी चीज़ थी। ये देखकर मैं शर्मा गई। मैं समझ गई कि यही बापू का लंड है। बापू मेरे पास आए और मेरे सामने खड़े होकर बोले, “बेटी, मुझे देखोगी नहीं?”
मैंने आँखें खोलकर देखा। उनका बलिष्ठ शरीर देखकर मैं झुकी और बापू के लंड को अपने हाथों में लिया। वो तप रहा था, बिल्कुल कड़ा था।
मैंने कहा, “बापू, क्या इसे मैं चूसूँ? प्लीज़?”
“हाँ बेटी, ये तेरा ही तो है। चूस ले, चूस ले,” बापू बोले।
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मैंने उनका लंड चूसना शुरू कर दिया। क्या मोटा लंड था! उसका लाल-लाल सुपाड़ा आगे निकला हुआ था। मैंने उस पर अपनी जीभ चलाई। बापू को मज़ा आने लगा। मैं लॉलीपॉप समझकर लंड को कस-कस के चूस रही थी। लेकिन बापू के हाथ कहीं और चल रहे थे। उन्होंने मेरी कमीज़ के गहरे गले से अपना हाथ अंदर डाल दिया और मेरी एक चूची को कस-कस के दबाने लगे। मैं उठी और अपनी कमीज़ निकाल दी, फिर ब्रा भी। मेरी दोनों चूचियाँ आज़ाद थीं। बापू उन्हें देखकर पागल हो गए। वो मेरी चूचियों पर टूट पड़े। उन्होंने मेरी चूचियों को दबाना शुरू कर दिया। मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था। मुझे अपनी सहेली की बात याद आ रही थी कि वो अपने बाप से कैसे चुदवाती थी। बापू बड़े मज़े से मेरी चूचियों को चूस रहे थे और दबा रहे थे। जैसे कोई बच्चा अपनी माँ की चूचियों से दूध पीता है, वैसे ही बापू मेरी चूचियों से दूध पीने की कोशिश कर रहे थे। उनसे कुछ निकल तो रहा नहीं था, लेकिन बापू ने उन्हें चूस-चूसकर लाल कर दिया।
फिर बापू मेरी दोनों टाँगों के बीच में आ गए और नीचे बैठकर मेरी चूत को बड़े गौर से देखने लगे। मेरी चूत पानी छोड़ रही थी, गीली हो रही थी। बापू ने मेरी चूत को मुँह में लिया और चूसना शुरू कर दिया। मेरे बदन में जैसे आग लग गई हो। मेरी चूत को आज तक किसी ने छुआ नहीं था, और अब बापू उसे मुँह से चूस रहे थे। मुझे सचमुच बड़ा मज़ा आ रहा था। मैंने अपनी टाँगें खोल दीं ताकि बापू मेरी चूत को अच्छी तरह चूस लें। बापू ने मेरी चूत में अपनी जीभ डाल दी और अंदर तक चूसाई करने लगे।
थोड़ी देर तक मेरी चूत चूसने के बाद बापू मेरे ऊपर आ गए। मैं चित लेटी थी। बापू ने मेरी चूत के मुँह को खोलकर अपने तने हुए लंड को टिकाया और मेरे ऊपर लद गए। मेरे दिल की धड़कन तेज़ थी कि अब क्या होगा। मैं ये भी सोच रही थी कि जिस चूत में मैं उंगली डालते हुए डरती थी, उसमें इतना मोटा लंड कैसे जाएगा। लेकिन मुझे बापू के लंड की चुदास इतनी ज़्यादा थी कि मैं सब कुछ सहने को तैयार थी। मैंने टाँगें खोलीं और तभी बापू ने कमर को धक्का दे दिया। आह! मेरी साँस मेरे गले में ही अटक गई। मैं चीख पड़ी, “आआआआह्ह्ह्ह्ह! ऊऊऊऊऊफ्फ्फ्फ! ईईईईईस्स्स्स्स! आआआह्ह्ह्ह्ह!”
बापू का लंड मेरी चूत को फाड़ता हुआ अंदर घुस गया था। मैंने सिर उठाकर देखा तो अभी बापू का लंड आधा बाहर ही था। मैं कुछ कह पाती कि बापू ने एक और ज़ोरदार धक्का दे दिया। मैं तड़प उठी, “ईईईईआआआह्ह्ह्ह्ह! मम्मम्म्म्म्म! आआआह्ह्ह्ह्ह!”
अब बापू का पूरा लंड मेरे अंदर था। मेरी आँखें दर्द से बंद हो रही थीं। बापू वैसे ही पड़े रहे। मैंने हाथ लगाकर देखा तो पूरा लंड मेरी चूत में जा चुका था, लेकिन कुछ गीला-गीला भी लग रहा था। मैंने छूकर देखा तो मेरे हाथ खून से रंग चुके थे। मैंने तुरंत बापू से कहा, “बापू, ये देखो! तुमने मेरी चूत फाड़ दी। उससे खून निकल रहा है।”
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“अरे पगली, ये तेरी सील टूट गई है,” बापू बोले।
मेरी सहेली ने मुझे ये बात पहले बताई थी, इसलिए मैं ज़्यादा घबराई नहीं। बापू ने फिर मेरी चूचियों के साथ खेलना शुरू कर दिया। मेरा दर्द कम होने लगा। बापू मेरी चूचियों को चूस भी रहे थे। फिर बापू ने मेरी चूत पर धक्के मारना शुरू कर दिए। उनका लंड मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ा रहा था। मेरी चूत माफी माँग रही थी, लेकिन मैं कर क्या सकती थी? मेरे मन में तो बापू से चुदने की इच्छा ही थी। और मैं चुद भी रही थी।
बापू के धक्के बढ़ने लगे और मेरी चुदाई का मज़ा भी बढ़ने लगा। बापू मेरे होंठों को ज़बर्दस्त तरीके से चूस रहे थे। मेरे हाथ बापू के बालों में चल रहे थे। मुझे सचमुच बड़ा मज़ा आने लगा था। बापू के धक्के तेज़ होने लगे और मेरी साँसें बढ़ने लगीं। “आआआआह्ह्ह्ह्ह! हम्म्म्म्म्म! आआह्ह्ह! ईईईईस्स्स्स्स्स! आआआह्ह्ह्ह्ह! हम्म्म्म्म्म!”
मैं झड़ गई। बापू के धक्के और तेज़ हो गए और थोड़ी देर में वो भी झड़ गए। मुझे अपने पेट में कुछ गर्म-गर्म जाता महसूस हुआ। मैं खुश हो गई कि बापू ने मेरी चुदाई कर दी। मैं लेटी रही, बापू भी मेरे ऊपर ही लेटे रहे। उनका लंड अभी तक मेरे अंदर था, शायद मुरझा गया था। मैंने उठकर देखा, बापू का लंड मेरे और उनके वीर्य से पूरी तरह भीगा हुआ था। मैंने उसे जीभ से चाटकर साफ किया और फिर उनके लंड को दोबारा चूसने लगी। थोड़ी देर में ही बापू का लंड फिर तन गया। बापू मुझे बड़े गौर से देख रहे थे।
“क्या तुमको और चुदना है?” बापू ने पूछा।
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मैंने बापू के होंठों पर किस किया और बोली, “मेरे राजा, आज तो मौका मिला है। अब 4 दिन तक लगातार चुदाई करवाऊँगी, समझे? और हाँ, मैं अभी तो एक नया मज़ा चखना चाहती हूँ।”
“वो क्या?” बापू ने पूछा।
“जी, वो… मैं… अपनी… गांड… आपसे…” मैं शर्मा के बोली और अपना मुँह दोनों हाथों में छुपा लिया।
बापू ने मेरे कंधों को पकड़ा और बड़े प्यार से बोले, “मेरी लाडो, क्या तेरा ये मन भी है? चलो, कोई बात नहीं। चल, मैं तेरी गांड भी मार देता हूँ।”
मैं उनकी बात सुनकर बहुत खुश हुई क्योंकि मुझे गांड मरवाने का बड़ा शौक था। मैं अकेले में कई बार अपनी गांड में बैंगन या खीरा डाल लेती थी। मैंने जल्दी से बेड पर जाकर कुतिया बन गई, यानी अपने घुटनों और कोहनियों के ऊपर बैठ गई। मेरे चूतड़ ऊपर थे। बापू मेरे पीछे आए और मेरी गांड को अच्छी तरह देखने लगे। उन्होंने मेरी गांड को अपनी उंगली से छुआ, मैं सिहर गई। फिर उन्होंने उस पर थूक लगाया और अपने लंड को मेरी गांड से टिकाकर खड़े हो गए। फिर बापू ने मेरे दोनों चूतड़ों को पकड़ा और मेरी गांड पर अपने लंड को धक्का दे दिया। मैं पहले पतले खीरे अपनी गांड में लेती थी, इसलिए जैसे ही बापू का लंड मेरी गांड में घुसा, मेरी जान निकल गई। बापू ने ज़ोर-ज़ोर से मेरी गांड मारना शुरू कर दिया। काफी देर तक वो धक्के देते रहे। मैं थक गई थी, लेकिन बापू जैसे सुपरमैन बने हुए थे। मेरी गांड कसके मार रहे थे। मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था। उनका लंड मेरी गांड पर फच-फच, फच-फच की आवाज़ें निकाल रहा था। उन्होंने मेरी कमर को कुतिया की तरह कसके पकड़ा हुआ था। वो कभी-कभी हाथ बढ़ाकर मेरी चूची पकड़ लेते और दबाने लगते।
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काफी देर बाद बापू झड़ गए और मैं भी थककर एक ओर बैठ गई। मैं जितना समझ रही थी, बापू उससे बड़ा चुदक्कड़ निकला। उसने मुझे हर 2 घंटे बाद चोदा। कभी गांड मारता, कभी चूत। वो मुझे एक पत्नी समझकर भोग रहा था। मैं बहुत खुश थी। मैंने कॉलेज से भी 4 दिन की छुट्टी ले रखी थी। मैं मज़े के साथ चुदाई करवाती रही। ये बात मुझे और बापू के सिवा किसी को मालूम नहीं है कि मैंने उन दिनों बापू से चुदाई करवा ली थी। मैंने गोलियों से अपनी प्रेगनेंसी रोक ली थी। आज भी जब बापू को मौका मिलता है, वो मुझे ज़रूर चोदता है। मुझे भी आज तक उससे चुदने में ज़्यादा मज़ा आता है।
क्या आपको लगता है कि आशा और बापू की ये चुदाई की कहानी सही थी? अपनी राय कमेंट में ज़रूर बताएँ।
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