पहले गांडू बेटा फिर उसकी माँ की चुदाई

मेरा नाम ठाकुर चंद्रसिंह है और मैं भोपाल में रहता हूँ। आज मैं आपको अपनी एक गर्मागर्म कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जो मेरे दिल और जिस्म की आग को बयाँ करती है। बात उस वक्त की है जब मेरे पड़ोस में एक मकान खाली पड़ा था। हम सब चाहते थे कि जल्दी कोई किरायेदार आए ताकि हमारा पड़ोस भी गुलज़ार हो जाए। कुछ दिनों बाद उस मकान में एक परिवार आकर रहने लगा।

उस परिवार में चार लोग थे—शौकत अली, उनकी बेगम नूर बानो, उनका बेटा तौफ़ीक और बेटी रज़िया। जिस दिन वो लोग अपना सामान लेकर आए, मैं घर पर नहीं था। शाम को जब लौटा तो मेरी बीवी ने बताया कि पड़ोस में नए लोग आ गए हैं। अगले दिन सुबह मुझे शौकत भाई मिले, जो घर के बाहर खड़े थे। मैंने औपचारिकता में उनसे बात शुरू की। शौकत भाई दुबई में किसी कंपनी में काम करते थे और एक महीने की छुट्टी पर आए थे। पहले वो छोटे से घर में रहते थे, इसलिए यहाँ बड़े मकान में शिफ्ट हो गए। बातचीत के दौरान तौफ़ीक और रज़िया भी बाहर आ गए। तौफ़ीक करीब 18 साल का जवान लड़का था, और रज़िया 16 साल की थी।

मगर मेरा मन तो शौकत मियां की बीवी नूर बानो को देखने के लिए बेकरार था। पर उस दिन वो नज़र नहीं आई। कई दिन बीत गए, शौकत भाई से कभी-कभार बात हो जाती थी, लेकिन नूर बानो मुझे दिखी ही नहीं। मेरी बीवी ने बताया कि वो 2-3 बार हमारे घर आ चुकी थी, पर मुझे उनके दीदार का मौका नहीं मिला। बीवी ने नूर बानो की तारीफ में कहा कि वो बहुत गोरी, सुंदर और भरे-पूरे जिस्म वाली औरत है। उसका अगाड़ा-पिछाड़ा सब लाजवाब है। ये सुनकर मेरे मन में आग सी लग गई। सोचा, इतनी सेक्सी औरत को देखने का मौका मिले तो क्या बात हो! मगर मेरी किस्मत, तीन महीने बीत गए, और मैं नूर बानो को देख न सका।

उनके बच्चे मेरी 2 साल की बेटी गुड़िया के साथ खेलने हमारे घर आते रहते थे। एक दिन मैं कुछ उलझन में घर बैठा था। तौफ़ीक आया और गुड़िया के साथ खेलने लगा। खेलते-खेलते मेरी नज़र अचानक तौफ़ीक की गांड पर गई। उसकी गोल-मटोल, भरी हुई गांड देखकर मेरा मन डोल गया। मैंने पहले कभी कोई समलैंगिक हरकत नहीं की थी, न ही ऐसा शौक था, लेकिन उस दिन न जाने क्यों मेरी नज़र बार-बार उसकी गांड पर अटक रही थी। मैं अपनी बीवी और दूसरी औरतों की गांड मार चुका था, पर किसी लड़के की गांड मारने का ख्याल पहली बार आया।

तौफ़ीक की गांड देखकर मन में आया कि इसे सहलाकर देखूँ। मैं सोच ही रहा था कि मेरा हाथ अनजाने में उसकी गांड पर चला गया और मैंने उसके चूतड़ को दबा दिया। मैंने सोचा वो चौंकेगा, लेकिन उसने मेरी तरफ देखकर हल्की सी मुस्कान दी और बोला, “क्या हुआ अंकल?” उसकी मुस्कान में एक न्योता सा था। मैंने मज़ाक में कहा, “कुछ नहीं, बस देख रहा था, खा-खाकर तूने पिछवाड़ा कितना भारी कर लिया!” वो हँसा और बोला, “खाते-पीते घर का हूँ न!”

मुझे उसकी बात अच्छी लगी। मैंने कहा, “ज़्यादा मोटा मत कर ले, वरना लोग गलत समझेंगे।” वो बोला, “जो समझना है समझें, मुझे क्या!” मैंने मज़ाक को और बढ़ाया, “अरे, मैं तेरे मोटापे की बात नहीं कर रहा, इस मटकती गांड की बात कर रहा हूँ!” वो हँसकर बोला, “अंकल, इस पिछवाड़े की तो दुनिया दीवानी है!” मैं चौंक गया। मैंने पूछा, “किस-किस ने देखा तेरा पिछवाड़ा?” वो बोला, “जिसने एक बार देख लिया, फिर वो और कुछ देखता ही नहीं!”

मुझे लगा, ये तो पक्का गांडू है। मैंने मज़ाक में कहा, “मुझे भी दिखा, देखें तो क्या खास है तेरे इस पिछवाड़े में!” मैंने सोचा वो हँसेगा, पर वो गंभीर हो गया और बोला, “यहाँ कहाँ दिखाऊँ?” मैंने कहा, “चल, ऊपर चौबारे में चलते हैं।” मैं ऊपर गया, और वो मेरे पीछे-पीछे आ गया। वहाँ मैं कुर्सी पर बैठ गया और बोला, “चल, अब दिखा!” वो बोला, “पर आप किसी को बताना मत।” फिर उसने अपनी लोअर और चड्डी नीचे खींच दी।

उसका 5 इंच का गोरा लंड, जिसका टोपा बाहर निकला था, ऊपर ढेर सारी झांटें, गोरी मोटी जांघें, और जब वो घूमा तो दो गोल-मटोल गोरे चूतड़! मैंने उसका एक चूतड़ पकड़कर दबाया तो उसने हल्के से “हाय” कहा। मैंने पूछा, “क्या हुआ?” वो बोला, “आपने छुआ तो कुछ-कुछ हुआ।” मैंने आँख मारकर पूछा, “क्या हुआ?” उसकी स्माइल रंडी जैसी थी। वो बोला, “बस, कुछ हुआ।”

मैं खड़ा हुआ और उसे पीछे से बाहों में भर लिया। मेरा लंड उसकी गांड से टकराया तो उसने अपना सिर मेरे कंधे पर टिका दिया। मैंने उसकी जांघों को सहलाया तो वो सिसककर बोला, “हाय अंकल, मार ही डालोगे क्या!” मैंने पूछा, “बता, तू गांडू है क्या?” वो बोला, “हाँ, हूँ।” मैंने पूछा, “ये नवाबों वाला शौक कहाँ से लगा?” वो बोला, “मेरे शकील चाचा ने 4 साल पहले मुझे इसका चस्का लगाया।” मैंने कहा, “तो चार साल से गांड मरवा रहा है?” वो बोला, “मरवा रहा नहीं, मरवा रही हूँ।”

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मैंने हँसकर कहा, “साली, तू तो पक्की छिनाल है!” वो सिसकारियाँ भरने लगा, “हाय मेरे मालिक, ऐसे प्यारे-प्यारे नाम मत पुकारो!” मैंने कहा, “मेरा लंड चूसेगा?” वो बोला, “बड़ी इनायत होगी, वैसे भी कई दिन हो गए विटामिन की खुराक लिए!” मैंने तुरंत अपनी निकर और चड्डी उतारी। वो नीचे बैठ गया, मेरे लंड को हाथ में पकड़ा, चमड़ी पीछे खींची, और मेरी आँखों में देखते हुए टोपा मुँह में ले लिया।

पहली बार कोई मर्द मेरा लंड चूस रहा था। वो भी कोई औरत या हिजड़ा नहीं, बल्कि जवान लड़का। उसने टोपे को मुँह में लेकर जीभ से ऐसे चाटा जैसे कोई लॉलीपॉप चूस रहा हो। मैंने पूछा, “मज़ा आया?” उसने खुशी से सिर हिलाया। मैं कुर्सी पर बैठ गया, वो फर्श पर मेरे सामने बैठा और मेरी जांघों को सहलाने लगा। मैंने पूछा, “क्यों बे गांडू, गांड मरवाएगा?” वो बोला, “ज़रूर मेरे मालिक, पर पहले इस खूबसूरत लंड को चूसकर अपने अरमान पूरे कर लूँ!”

वो मेरे लंड को मुँह में लेकर चूसने लगा। मेरी बीवी भी लंड अच्छा चूसती है, पर इस लड़के का चूसने का अंदाज़ अलग था। मैंने आँखें बंद कीं और मज़े लेने लगा। उसने चूस-चूसकर मेरा लंड पत्थर कर दिया। अब मुझसे रहा नहीं गया। मैंने कहा, “यार, तेरी गांड मारनी है।” वो फर्श पर घोड़ी बन गया। मैंने कहा, “ऐसे नहीं!” मैंने अलमारी से पुरानी चादरें निकालीं, बिछाईं, और उसे उल्टा लेटा दिया।

मैंने अपनी निकर और चड्डी पूरी उतार दी और उसकी कमर पर चढ़कर बैठ गया। ढेर सारा थूक उसकी गांड के छेद पर और अपने लंड के टोपे पर लगाया। मैंने पूछा, “डालूँ?” वो बोला, “हाँ अंकल, डाल दो।” मैंने हल्का ज़ोर लगाया तो टोपा उसकी गांड में आसानी से घुस गया। उसे कोई तकलीफ नहीं हुई। मैंने और थूक लगाया और आधा लंड अंदर डाल दिया। वो दर्द की जगह मज़े में अपनी गांड उठा-उठाकर मुझे और डालने को उकसा रहा था।

मैंने सोचा, बड़ा गांडू है, इसे दर्द भी देना चाहिए। मैंने थूक लगाना बंद किया और सूखा लंड पेलने लगा। मगर वो मज़े में सिसक रहा था। मैंने पूरा 7 इंच का लंड उसकी गांड में उतार दिया। पहले औरतों की गांड मारते वक्त आधा लंड ही डालता था, क्योंकि उन्हें दर्द होता था। पर ये तो सारा लंड खा गया! मेरी झांटें उसकी गांड से टकरा रही थीं। उसकी गांड अंदर से गीली थी, बस छेद पर सूखापन था, जिसे मैं थूक से चिकना कर लेता था।

मैंने पूछा, “तौफ़ीक, ये बता, तू गांडू बना कैसे?” वो बोला, “शकील चाचा ने मुझे चस्का लगाया। उनका लंड भी आपके जैसा कड़क है। चार साल पहले एक रात उन्होंने मुझे बहुत प्यार किया, खूब सारी चीज़ें दीं, कुछ पिलाया, और मैं सो गया। सुबह उठा तो गांड में दर्द था। शकील चाचा नंगे पड़े थे। मैं समझ गया कि उन्होंने मेरी इज़्ज़त लूट ली। पहले रोया, फिर सोचा, मैं कोई लड़की थोड़े हूँ। कुछ दिन बाद उन्होंने होश में ज़बरदस्त चोदा। तेल लगाकर गांड मारी। दर्द कम हुआ, मज़ा आया।”

वो बोला, “शकील चाचा को जैसे घर में रंडी मिल गई। हर दूसरे-तीसरे दिन मेरी गांड मारते। दो साल में मुझे लंड चूसना और माल पीना भी सिखाया।” मैंने पूछा, “तो मेरा माल भी पिएगा?” वो बोला, “अब तो मज़ा आने लगा है। माल न पिऊँ तो अधूरा लगता है।” मैंने कसकर उसकी गांड मारी। जब झड़ने का वक्त आया, मैंने लंड उसकी गांड से निकाला और उसके मुँह में दे दिया। मेरा गरम माल उसके मुँह में गिरा, और वो घूँट-घूँट पी गया। आखिरी बूँद तक चाट गया।

लड़के की गांड मारने का मज़ा ही अलग था। इसके बाद मेरा मन बार-बार उसकी गांड मारने को करने लगा। कभी-कभी तो बीवी को सेक्स के लिए मना कर देता, ये सोचकर कि तौफ़ीक की गांड मारनी है। बीवी मेरा माल नहीं पीती थी, पर तौफ़ीक के मुँह में माल गिराने का स्वाद ही अलग था। एक दिन तौफ़ीक बोला, “अंकल, आप मुझे इंग्लिश ट्यूशन देने के बहाने मेरे घर आया करो, तो मिलने का रास्ता खुल जाएगा।”

मैंने हाँ कर दी। मैं रोज़ तौफ़ीक को ट्यूशन देने उसके घर जाने लगा। पर उसकी अम्मी नूर बानो के दीदार नहीं हुए। वो चाय-नाश्ता भेजती थी, जो बहुत स्वादिष्ट होता था, पर पर्दे में रहती थी। मैं अक्सर तौफ़ीक से उसकी अम्मी के बारे में पूछता। वो बताता कि उसकी अम्मी बहुत हसीन हैं। एक दिन मैंने कहा, “तौफ़ीक, मुझे तेरी अम्मी को देखना है।” वो बोला, “अम्मी यूं किसी के सामने नहीं आतीं, पर मैं इंतज़ाम कर सकता हूँ।”

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एक दोपहर तौफ़ीक मुझे अपने घर ले गया। उसका रूम ऊपर चौबारे में था। अब तौफ़ीक मेरी रंडी बन चुका था। मिलते ही वो मेरे होंठ चूमता। पहले मुझे मर्द के होंठ चूमने में अजीब लगा, पर अब आदत हो गई थी। मैं भी उसकी जीभ तक चूस लेता था। उसकी गांड मारते वक्त मैं उसका लंड भी हिलाता, जिससे उसका पानी निकल जाता और मेरा माल वो पी लेता।

हम ऊपर खिड़की से नीचे देख रहे थे। तभी एक गोरी-चिट्टी, भरे-पूरे जिस्म वाली औरत नज़र आई। खूबसूरत चेहरा, दूध जैसा रंग, गुलाबी होंठ, कजरारी आँखें, गुदाज़ जिस्म। मैं तो देखकर हैरान रह गया। इतना शानदार हुस्न मेरे पड़ोस में था, और मैंने इतने दिन नहीं देखा! वो कपड़े धो रही थी, और मैं ऊपर उसके बेटे को रगड़ रहा था। मैंने तौफ़ीक से कहा, “मुझे तेरी अम्मी को चोदना है। जैसे भी हो, अपनी अम्मी को मेरे नीचे ला, वरना अपनी कुट्टी!”

वो बोला, “अरे अंकल, अपनी कुट्टी नहीं हो सकती।” मैंने कहा, “तो अपनी अम्मी को चुदवा!” वो बोला, “मैं अम्मी को ये कैसे बोलूँ? वैसे अम्मी अब्बा से कहती हैं कि उनके बिना उनका दिल नहीं लगता।” मैंने कहा, “दिल नहीं, उनकी चूत को चुदवाने का मन करता है। तू जाने, कैसे करेगा, मुझे हर हाल में तेरी अम्मी की चूत चाहिए, वरना दूसरा अंकल ढूँढ ले!” वो बोला, “नहीं अंकल, यारी मत तोड़ो, मैं कुछ करता हूँ।”

कुछ दिन बाद ट्यूशन के वक्त तौफ़ीक बोला, “आज अम्मी चाय-नाश्ता देने आएगी।” पहली बार नूर बानो मेरे सामने चाय लेकर आई। क्या खूबसूरत चेहरा! बिना मेकअप के गोरा रंग, गालों पर हल्का गुलाबीपन, भरे-पूरे मम्मे, जो ब्लाउज़ में समा नहीं रहे थे। वो 2 मिनट रुकी, कुछ रस्मी बातें की, और चली गई। उसकी मटकती गांड देखकर मैं अपना लंड सहलाने लगा।

मैंने तौफ़ीक से कहा, “तेरी अम्मी मादरचोद, कुछ कर साले! इसे नहीं चोदा तो ज़िंदगी झंड हो जाएगी!” वो बोला, “चिंता मत करो, अम्मी अब रोज़ नाश्ता लाएगी। मैंने उसे कहा कि पढ़ते वक्त उठने में दिक्कत होती है।” इसके बाद नूर बानो रोज़ चाय-नाश्ता लाने लगी। मैंने धीरे-धीरे बातों का जाल बुनना शुरू किया। कभी-कभी उनके लिए गिफ्ट लाने लगा। बातें दोस्ती में बदल गईं।

एक दिन मैंने कहा, “आपके लिए साड़ी लाऊँ?” थोड़ा इंकार करने के बाद वो मान गई। मैंने बेशर्मी से पूछा, “साड़ी के साथ सर से पाँव तक सब ला दूँ?” वो मेरा मतलब समझकर हँस दी। अगले दिन मैंने बाज़ार से साड़ी, ब्लाउज़, ब्रा और पेंटी खरीदी। सब पैक करवाकर नूर बानो के रूम में ले गया। वो बेड पर टीवी देख रही थी। मुझे देखकर मुस्कुराई और गिफ्ट ले लिया।

अगले दिन ट्यूशन के वक्त वो चाय लेकर आई। मैंने पूछा, “गिफ्ट पसंद आया?” वो बोली, “जी, बहुत हसीन है।” मैंने कहा, “हसीन तो आपके पहनने से हुआ। फिटिंग ठीक आई?” वो बोली, “बिल्कुल, पर इतनी मेहनत की ज़रूरत क्या थी?” मैंने रोमांटिक अंदाज़ में कहा, “आपके लिए तो जान हाज़िर है।” वो शरमाकर हँस दी और बोली, “आपकी पसंद और नज़रों की दाद देनी पड़ेगी। सब कुछ मेरे लिए बना हुआ लगता है।”

मैंने कहा, “हमें क्या पता, आपने तो पहनकर दिखाया नहीं!” वो शरारत से बोली, “वो भी दिखा देंगे।” मैंने कहा, “तो अभी दिखा दीजिए!” वो चली गई। तौफ़ीक बोला, “अम्मी को साड़ी पहननी नहीं आती।” मेरे लिए ये सुनहरा मौका था। मैंने तौफ़ीक से कहा, “तू पढ़, मैं पहनाकर आता हूँ।” मैं नीचे गया। बाथरूम के बाहर साड़ी बेड पर रखी थी। मतलब ब्रा, पेंटी, ब्लाउज़ और पेटीकोट वो बाथरूम में ले गई थी।

थोड़ी देर में वो बाहर निकली। हरे रंग का पेटीकोट, गोरा मांसल पेट, गहरी नाभि, और ऊपर दो गोल मम्मे। ब्लाउज़ का गला गहरा था, क्लीवेज साफ दिख रहा था। मुझे देखकर वो चौंकी और अपने सीने पर हाथ रखकर स्टूल पर बैठ गई। मैंने कहा, “इतना हुस्न आज तक नहीं देखा।” वो शरमाई। मैंने कहा, “मैं तो ये कहने आया था कि क्या मैं आपको ये कपड़े अपने हाथों से पहना सकता हूँ?” वो चुप रही। मैंने कहा, “क्या साड़ी बांध दूँ?”

वो बोली, “आपको बांधनी आती है?” मैंने कहा, “जी, बहुत अच्छे से।” वो खड़ी हो गई। मैंने साड़ी खोलकर उसके सामने खड़े होकर पूछा, “इजाज़त है?” उसने हाँ में सिर हिलाया। मैंने साड़ी उसकी कमर पर लगाई। मेरा हाथ उसकी नर्म कमर से टकराया तो उसने आँखें बंद कर लीं। मैंने बड़े अदब से साड़ी बांधी और आँचल उसके सर पर डाला। उसने शीशे में खुद को देखा और देखती रह गई।

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मैंने मौका देखकर उसे पीछे से बाहों में लिया। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। मैंने उसके नर्म हाथ पकड़े तो उसने अपनी उंगलियाँ मेरी उंगलियों में फँसा दी। मैंने उसके कान के पास चूमा और कहा, “आई लव यू, नूर बानो।” वो मुस्कुराई। मैंने उसका चेहरा घुमाकर माथे, आँखों, गालों और होंठों पर चूमा। उसका निचला होंठ चूसने लगा। उसकी गर्म साँसें मेरे गाल पर टकरा रही थीं।

मैंने एक हाथ उसके मम्मे पर रखा। इतना नर्म, मखमली मम्मा! मैंने दोनों मम्मे दबाए तो उसने मेरा ऊपरी होंठ चूस लिया। उसकी साँसें तेज़ हो गईं। मैंने उसे घुमाकर कसकर बाहों में जकड़ा। वो भी मुझे बाहों में लेकर मेरे होंठ चूसने लगी। मैंने उसके चेहरे को चूम-चूमकर लाल कर दिया। उसकी गर्दन चूमते हुए उसके मम्मों तक गया। क्लीवेज में जीभ घुमाकर चाटने लगा।

वो बोली, “आह, बस करो चंद्र जी, मार डालोगे क्या!” मैंने कहा, “इतनी हसीन औरत को मारूँगा नहीं, तुम पर मरूँगा।” वो हँसी, “तो देर किस बात की?” मैंने उसे बेड पर पटका और उसके कपड़े उतारने लगा। ब्लाउज़, ब्रा, पेटीकोट, पेंटी—सब उतारकर उसे नंगी कर दिया। मैंने भी अपने कपड़े उतारे और नंगा हो गया। मेरा 7 इंच का कड़क लंड देखकर वो टकटकी लगाए देखने लगी।

उसका गोरा जिस्म काले चादर पर दूध की नदी जैसा लग रहा था। साफ शेव की चूत, बगलें, सब कुछ परफेक्ट। मैंने कहा, “नूर, तुमसे सुंदर औरत मैंने नहीं देखी। इतनी सफाई!” वो बोली, “मेरे शौहर को एक भी फालतू बाल पसंद नहीं।” मैं उसके ऊपर लेट गया। मेरा लंड उसकी नाभि से टकरा रहा था। उसने टाँगें खोलीं, मैंने कमर उसकी जांघों के बीच सेट की। मेरे लंड का टोपा उसकी चूत पर टिका।

मैंने टोपे से उसकी चूत का दाना मसला। वो सिसकने लगी, “उम्म्ह… आह…” उसने मेरा चेहरा पकड़ा और बोली, “अब और मत तरसाओ, डाल दो!” उसने मेरा लंड पकड़कर अपनी चूत पर रखा। गीली गुलाबी चूत में मेरा लंड मखमल में लिपट गया। मैंने धीरे-धीरे उसके मम्मे दबाते, होंठ चूसते हुए चुदाई शुरू की।

थोड़ी देर बाद वो बोली, “अब आराम का वक्त गया, चंद्र जी। गाड़ी की रफ्तार बढ़ाओ, पेलो! जितना तेज़ हो सके!” मैंने रफ्तार बढ़ाई। “घपाघप… घपाघप…” लंड पेलते ही उसकी चूत ने पानी छोड़ा। वो चिल्लाई, “उम्म्ह… आह… हाय… अल्लाह बचा लो… हाय अम्मी, मैं मर गई!” वो तड़प रही थी, पर टाँगें खुली रखीं। मैंने उसे सीधे चोदा, फिर घोड़ी बनाया। तीन-चार आसन बदलकर चोदा। वो कई बार झड़ी।

20 मिनट की चुदाई में मेरे पसीने छूट गए। तभी तौफ़ीक अंदर आया। उसने अपनी अम्मी को घोड़ी बनाकर चुदते देखा, मुस्कुराया और चला गया। मैंने ज़ोर-ज़ोर से पेला और अपनी धारें उसकी चूत में मार दीं। वो माल गिरने से खुश हो गई। मैं भी गिर पड़ा। साँसें थमने का नाम नहीं ले रही थीं।

थोड़ी देर बाद नूर ने पिस्ता-बादाम वाला गर्म दूध लाकर दिया और बोली, “पियो, ताकत बढ़ाओ।” मैंने कहा, “क्यों, कम था क्या?” वो बोली, “नहीं, बहुत है, पर मुझे ऐसे कई राउंड चाहिए।” मैंने कहा, “चिंता मत करो, सारी रात पेल सकता हूँ।” वो बोली, “तो ठीक है, किसी रात सुहागरात मनाएँगे।”

मैं ट्यूशन खत्म करके घर लौट गया। दो महीने बीत गए। अब बीवी शिकायत करती है कि मैं उसकी तरफ ध्यान नहीं देता। पर क्या करूँ, ट्यूशन के वक्त कभी माँ खींच लेती है, कभी बेटा। दोनों की चुदाई के बाद बीवी के लिए प्यार कहाँ बचता है।

दोस्तों, मेरी ये गर्मागर्म कहानी(Muslim Lady Pink Chut, Adult Story, Hinglish Sex Story, Chudai Kahani, Gand Marna, Lund Choosna, Gay Story, Desi Kahani) आपको कैसी लगी? अपनी राय ज़रूर बताएँ।

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